सल्तनत काल
- मक्का’ सऊदी अरब में स्थित है, यहीं पर 570 ई. में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद का जन्म (Birth of Hazrat Muhammad )हुआ था।
- मुहम्मद साहब मक्का से मदीना 622 ई. में प्रस्थान किए थे।
- हिजरी संवत् (Hijri era )का प्रारंभ 622 ई. में हुआ था।
- मुहम्मद साहब की मृत्यु 632 ई. में हुई थी।
- फारसी ग्रंथ ‘चचनामा’ (‘Chachnama’ )से अरबों द्वारा सिंध विजय की जानकारी मिलती है।
- 999 से 1027 ई. के बीच महमूद गजनी (Mahmood Ghazni )(या गजनवी) ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए।
- महमूद गजनवी का दरबारी इतिहासकार उत्वी (Utvi )था।
- उसने ‘किताब-उल- यामिनी’ (‘Kitab-ul-Yamini’)अथवा ‘तारीख-ए- यामिनी’ (‘Tarikh-e-Yamini’ )नामक ग्रंथ की रचना की।
- फिरदौसी (firdausi )को पूर्व के होमर की उपाधि दी जाती है।
- पुराणों का अध्ययन करने वाला प्रथम मुसलमान अलबरूनी (Alberuni )था।
- अलबरूनी ने अरबी भाषा में ‘तहकीक-ए-हिंद‘ (‘Tahkeek-e-Hind’)की रचना थी।
- शिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी का प्रथम आक्रमण 1175 ई.में मुल्तान पर हुआ।
- 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान और गोरी के मध्य तराइन के प्रथम युद्ध (First Battle of Tarain )हुआ। इस युद्ध में शिहाबुद्दीन की सेना के दोनों पार्श्व (lateral )परास्त हो गए।
- 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध (Second Battle of Tarain )में मुहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद भारत में मुस्लिम शक्ति की स्थापना हुई।
- 1194 ई. में चंदावर के युद्ध (Battle of Chandawar )में मुहम्मद गोरी ने कन्नौज के गहड़वाल राजा जयचंद को पराजित किया था।
- मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी की आकृति (Goddess Lakshmi figure )बनी है और दूसरे तरफ कलमा (Kalma on the other hand )(अरबी में) खुदा हुआ है।
- 1206 से 1290 ई. तक दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के सुल्तानों (sultans of slave dynasty ) के नाम से विख्यात हुए।
- भारत में गुलाम वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक (Qutubuddin Aibak )(1206-10 ई.) था।
- ऐबक की राजधानी लाहौर (Lahore )थी।
- ऐबक ने कभी ‘सुल्तान’ (‘Sultan’) की उपाधि धारण नहीं की।
- उसने केवल ‘मलिक’ (‘Malik’) और ‘सिपहसालार’ (‘Warlord’)की पदवियों से ही अपने को संतुष्ट रखा।
- अपनी उदारता के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक इतना अधिक दान करता था कि उसे ‘लाख बख्श’ (‘Lakh Baksh’ )(लाखों को देने वाला) के नाम से पुकारा गया।
सल्तनतकालीन प्रमुख भवन | ||
भवन | निर्माता | स्थल |
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कुतुबमीनार का निर्माण अढ़ाई दिन का झोपड़ा अतारकिन का दरवाजा इल्तुतमिश का मकबरा सीरी का किला अलाई दरवाजा गयासुद्दीन का मकबरा आदिलाबाद का किला जहांपनाह नगर अदीना मस्जिद कोटला फिरोजशाह किला अटाला मस्जिद हिंडोला महल जहाज महल चांद मीनार ( चार मीनार) विजय स्तंभ | कुतुबुद्दीन ऐबक कुतुबुद्दीन ऐबक कुतुबुद्दीन ऐबक इल्तुतमिश इल्तुतमिश अलाउद्दीन खिलजी अलाउद्दीन खिलजी गयासुद्दीन तुगलक मुहम्मद तुगलक मुहम्मद तुगलक सिकंदर शाह फिरोज तुगलक इब्राहिम शाह शर्की हुशंगशाह हुशंगशाह कुली कुतुबशाह राणा कुम्भा | दिल्ली दिल्ली अजमेर नागौर दिल्ली दिल्ली दिल्ली दिल्ली दिल्ली दिल्ली पांडुआ(बंगाल) दिल्ली जौनपुर मांडू मांडू हैदराबाद चित्तौड़ |
- सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चौगान के खेल (quadrangular games )( आधुनिक पोलो की भांति का एक खेल) में घोड़े से गिरने के दौरान 1210 ई. में हुई थी। उसे लाहौर में दफनाया गया।
- दिल्ली का पहला सुल्तान इल्तुतमिश (first sultan iltutmish )था।
- खलीफा ने 1229 ई. में इल्तुतमिश के शासन की पुष्टि उन सारे क्षेत्रों में कर दी, जो उसने विजित किया और उसे ‘सुल्तान-ए-आजम’ (‘Sultan-e-Azam’) की उपाधि प्रदान की।
- सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चांदी का टंका (silver tank )(175 ग्रेन) और तांबे का जीतल (copper jital )इल्तुतमिश ने आरंभ किए तथा सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परंपरा शुरू की।
- मंगोल नेता चंगेज खां (Genghis Khan ) भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर इल्तुतमिश के शासनकाल में आया था।
- मध्यकालीन भारत की प्रथम महिला शासिका रजिया सुल्तान (razia sultan )(1236-40) थीं।
- 3 सुल्तान बलबन का पूरा नाम गयासुद्दीन बलबन (Ghiyasuddin Balban ) था।
- उसे उलूग खां (ulugh khan )के नाम से भी जाना जाता है।
- 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान नासिरुद्दीन (sultan nasiruddin )से किया।
- इस अवसर पर उसे ‘उलूग खां’ (‘Ulugh Khan’ )की उपाधि और ‘नायब-ए- ममलिकात’ (‘Naib-e-Mamlikat’ )का पद दिया गया।
- बलबन के विषय में कहा गया है कि उसने ‘रक्त और लौह’ (‘Blood and Iron’)की नीति अपनाई थी।
- बलबन (Balban )ने फारस के लोक-प्रचलित वीरों से प्रेरणा लेकर अपना राजनीतिक आदर्श निर्मित किया था।
- राजा को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि ‘नियामत-ए-खुदाई’ (‘Niyamat-e-Khudai’)माना गया।
- उसके अनुसार मान-मर्यादा (dignity )में वह केवल पैगंबर के बाद है।
- राजा ‘जिल्ले अल्लाह’ (‘Jille Allah’ ) या ‘जिल्ले इलाही’ (‘Shadow of God’)अर्थात ‘ईश्वर का प्रतिबिंब’ (‘Reflection of God’)है।
- बलवन ने ईरानी बादशाहों की कई परंपराओं को अपने दरबार में आरंभ किया।
- बलवन ने सिजदा (prostrate ) (भूमि पर लेटकर अभिवादन करना) और पावोस (Pavos )(सुल्तान के चरणों को चूमना) की रीतियां आरंभ कीं।
- बलबन ने अपने दरबार में प्रतिवर्ष फारसी त्यौहार ‘नौरोज’ (‘Nauroz’) बड़ी शानो-शौकत के साथ मनाने की प्रथा आरंभ की।
- अलाउद्दीन (Alauddin ) दिल्ली (का पहला सुल्तान था, जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया।
- उसने अपने आपको ‘यामिन-उल-खिलाफत नासिरी अमीर- उल-मुमनिन’ बताया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने ‘सिकंदर द्वितीय सानी’ (‘Sikander II Sani’ ) की उपाधि धारण की और उसे अपने सिक्कों पर अंकित करवाया।
- पद्मिनी, (Padmini,)राणा रतन सिंह की पत्नी थीं।
- पदमिनी की कहानी का आधार 1540 ई. में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखित काव्य-पुस्तक ‘पद्मावत’ (‘Padmavat’) है।
- अलाउद्दीन के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक रामचंद्रदेव (Ramchandradev, ruler of Devagiri ) था।
- मलिक काफूर (Malik Kafur )को अलाउद्दीन ने अपनी गुजरात विजय के दौरान प्राप्त किया था।
- मलिक काफूर को ‘हजार-दीनारी’ (‘thousand-denari’) भी कहा जाता था।
- अलाउद्दीन (Alauddin ) पहला सुल्तान था जिसने भूमि की पैमाइश करा कर लगान वसूल करना आरंभ किया।
- अलाउद्दीन ने एक पृथक विभाग “दीवान-ए-मुस्तखराज” (Diwan-i-Mustakhraj )की स्थापना की।
- अलाउद्दीन (Alauddin )ने परंपरागत लगान अधिकारियों (खुत्त, मुकद्दम एवं चौधरी) से लगान वसूल करने का अधिकार छीन लिया था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने उपज का 50 प्रतिशत भूमिकर (50 percent land tax on produce )(खराज ) के रूप में निश्चित किया।
- सल्तनतकालीन शासक अलाउद्दीन खिलजी ने ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (‘Public Distribution System’ )प्रारंभ की थी।
- अलाउद्दीन खिलजी द्वारा लगाए गए दो नवीन कर थे- ‘घरी कर’ (‘household tax’)जो कि घरों एवं झोपड़ियों पर लगाया जाता था तथा ‘चराई कर’ ‘(grazing tax’ )जो कि दुधारू पशुओं पर लगाया जाता था।
- अलाउद्दीन के सेनापतियों में गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyasuddin Tughlaq ) या गाजी मलिक (Ghazi Malik ) तुगलक वंश का प्रथम शासक था।
- दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351) सर्वाधिक विद्वान most learned एवं शिक्षित शासक (educated ruler )था।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि की उन्नति के लिए एक नए विभाग ‘दीवान-ए-अमीर-ए-कोही’ (‘Diwan-e-Amir-e-Kohi’) की स्थापना की।
- इब्नबतूता (Ibn Battuta )(1333-1347 ) मोरक्को मूल का अफ्रीकी यात्री था।
- रेहला (Rehla )इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है।
- यह मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughlaq ) के कार्यकाल (1325-51 ) में भारत आया।
- मुहम्मद बिन तुगलक के निधन पर बदायूंनी ने लिखा है, “सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।”
- फिरोज शाह तुगलक (Firoz Shah Tughlaq )ने एक विभाग ‘दीवान-ए-खैरात’ (‘Diwan-e-Khairat’ ) स्थापित किया था, जो गरीब मुसलमानों, अनाथ स्त्रियों एवं विधवाओं को आर्थिक सहायता देता था और निर्धन मुसलमान लड़कियों के विवाह की व्यवस्था करता था।
- सल्तनत काल में सर्वप्रथम फिरोज शाह तुगलक ने ही लोक निर्माण विभाग की स्थापना की थी।
- सिंचाई की सुविधा के लिए फिरोज तुगलक ने पांच बड़ी नहरों का निर्माण कराया तथा 1200 बागों को लगवाया था।
- फिरोज तुगलक उलेमा वर्ग की स्वीकृति के पश्चात ‘हक्क-ए-शर्व’ (‘Haq-e-Sharv’ )नामक सिंचाई कर लगाने वाला दिल्ली का प्रथम सुल्तान था।
- फिरोज तुगलक द्वारा ब्राह्मणों पर भी जजिया लगाया गया था।
- फिरोज शाह तुगलक (Firoz Shah Tughlaq ) (द्वारा अशोक के दो स्तंभों को मेरठ एवं टोपरा (अब अम्बाला जिले में) से दिल्ली लाया गया।
- राज्य के खर्च पर हज की व्यवस्था करने वाला पहला भारतीय शासक फिरोज तुगलक (First Indian ruler Firoz Tughlaq ) था।
- फिरोज शाह तुगलक ने ‘दारुलशफा’(‘Darulshafa) नामक एक खैराती अस्पताल की स्थापना भी की और उसमें कुशल हकीम रखे।
- नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में मध्य एशिया के महान मंगोल सेनानायक तैमूर ने भारत पर आक्रमण (1398 ई.) किया।
- खिलजी वंश का संस्थापक – जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (Jalaluddin Firoz Khilji)
- तुगलक वंश का संस्थापक – गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyasuddin Tughlaq)
- सैय्यद वंश का संस्थापक – खिज्र खां (Khizr Khan)
- लोदी वंश का संस्थापक – बहलोल लोदी (Bahlol Lodi)
- आगरा की स्थापना – सिकंदर लोदी (Sikandar Lodhi)
- 1518 ई. में महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य घटोली का युद्ध (Battle of Ghatoli )हुआ। इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुआ था।
- नाप का पैमाना ‘गज-ए-सिकंदरी’ (‘Gaj-e-Sikandari’)सिकंदर लोदी के समय में आरंभ किया गया।
- सिकंदर लोदी के समय में गायन विद्या के एक श्रेष्ठ ग्रंथ ‘लज्जत-ए-सिकंदरशाही’ (‘Lajjat-e-Sikandarshahi’ )की रचना हुई। सिकंदर लोदी शहनाई सुनने का बहुत शौकीन था ।
- सिकंदर लोदी ‘गुलरुखी’ (‘Gulrukhi’)उपनाम से कविताएं लिखता था।
- सुल्तान सिकंदर ने अनाज से जकात (संपत्ति कर) समाप्त कर दिया।
- जौनपुर (Jaunpur )की स्थापना फिरोज तुगलक ने अपने चचेरे भाई जौना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में की थी।
- जौनपुर का संस्थापक मलिक सरवर (Malik Sarwar ) था, जिसने स्वतंत्र शर्की राज्य की स्थापना की।
- शर्की शासकों ने लगभग 85 वर्षों तक जौनपुर की स्वतंत्रता को स्थापित रखा, किंतु 1479 ई. में बहलोल लोदी (Bahlol Lodi ) ने इसके अंतिम शासक हुसैन शाह शर्की को पराजित कर जौनपुर को पुनः दिल्ली सल्तनत का अंग बना लिया।
- इब्राहिम शाह शर्की (Ibrahim Shah Sharqi ) (1402-40 ई.) जौनपुर के शर्की वंश का सबसे महान शासक था।
- फैल गई और जौनपुर ‘भारत का सिराज’ (‘Siraj of India’ )नाम से विख्यात गया।
- 1420 ई. में अलीशाह का भाई शाही खां जैन -उल- आबेदीन (Shahi Khan Zain-ul-Abedin )के नाम से कश्मीर के सिंहासन पर बैठा ।
- इनका शासनकाल 1420-1470 ई. तक था।
- उसकी धार्मिक उदारता के कारण उसकी तुलना मुगल बादशाह अकबर से की जाती है। उसे ‘कश्मीर का अकबर’ (‘Akbar of Kashmir’ )कहा जाता था।
- ‘वूलर झील’ में ‘जौना लंका’ जौनूक लेक (द्वीप) नामक द्वीप का निर्माण जैन-उल आबेदीन ने ही करवाया था।
- बहमनी राज्य से स्वतंत्र हुए राज्य हैं-
राज्य | संस्थापक | राजवंश |
बरार बीजापुर अहमदनगर गोलकुंडा बीदर | फ़तेहउल्ला इमादशाह यूसुफ आदिलशाह मलिक अहमद कुली कुतुबशाह अमीर अली बरीद | इमादशाही वंश आदिलशाही वंश निजामशाही वंश कुतुबशाही वंश वरीदशाही वंश |
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर (Harihar )तथा बुक्का (Bukka )ने 1336 ने ई. में की थी। विजयनगर साम्राज्य के चार राजवंशों – संगम वंश (1336-1485), सालुव वंश (1485-1505), तुलुव वंश (1505- 1570) एवं अरावीडु वंश ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया।
- 1377 ई. में बुक्का की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय (Harihara II )(1377-1404 ई.) सिंहासन पर बैठा ।
- उसने ‘महाराजाधिराज‘ (‘Maharajadhiraj’) की उपाधि धारण की।
- कृष्णदेव राय का शासनकाल (1509-1529 ई.) विजयनगर में साहित्य का क्लासिकी युग (classical period of literature ) माना जाता है।
- उसके दरबार को तेलुगू के ‘आठ महान विद्वान एवं कवि’, (‘Eight great scholars and poets’, )(जिन्हें अष्ट दिग्गज कहा जाता है) सुशोभित करते थे।
- कृष्णदेव राय के शासनकाल को तेलुगू साहित्य का स्वर्ण युग (Golden Age of Telugu Literature )भी कहा जाता है।
- उनकी प्रमुख रचना – ‘अमुक्तमाल्यद’ (‘Amuktmalyad’)थी, जो तेलुगू भाषा पांच महाकाव्यों में से एक है।
- कृष्णदेव राय ने नागलपुर (Nagalpur )नामक नगर की स्थापना की। उसके समय में पुर्तगाली यात्री ‘डोमिंगो पायस’ (‘Domingo Pies’ )ने विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा (बाबरनामा- तुर्की भाषा में) में कृष्णदेव राय को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है।
- 1565 ई. में तालीकोटा (Talikota )के प्रसिद्ध युद्ध में बहमनी राज्यों की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर को पराजित किया। इस संयुक्त सेना में केवल बरार शामिल नहीं था।
- होयसल राजवंश की राजधानी द्वारसमुद्र (Dwarasamudra ) का वर्तमान नाम हलेबिड (Halebid )है, जो कर्नाटक के हासन जिले में है।
- हम्पी (Hampi) के खंडहर (वर्तमान उत्तरी कर्नाटक में अवस्थित) विजयनगर साम्राज्य की प्राचीन राजधानी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- विजयनगर काल में बना विरूपाक्ष मंदिर (Virupaksha Temple )यहीं पर अवस्थित है।
- विट्ठल मंदिर (हम्पी) का निर्माण (Construction of Vittala Temple (Hampi) )विजयनगर साम्राज्य के तुलुव वंश के महाप्रतापी राजा कृष्णदेव राय (1509-29 ई.) ने करवाया था।
- प्रशासनिक विभाग एवं इसे प्रारंभ करने वाले शासक निम्न हैं-
विभाग | संस्थापक शासक |
दीवान-ए-मुस्तखराज (राजस्व विभाग) दीवान-ए-रियासत (बाजार नियंत्रण विभाग) दीवान-ए- अमरकोही (कृषि विभाग) दीवान-ए- खैरात (दान विभाग) दीवान-ए-बन्दगान | अलाउद्दीन खिलजी अलाउद्दीन खिलजी मुहम्मद बिन तुगलक फिरोज तुगलक फिरोज तुगलक |
विभाग एवं उनकी कार्यविधियां | |
दीवाने अर्ज दीवाने रिसालत दीवाने इन्शा दीवाने वजारत | सेना विभाग से सम्बंधित धार्मिक मुद्दों से सम्बंधित सरकारी पत्र व्यवहार से सम्बंधित वित्तीय मामलात से सम्बंधित |
- अलाउद्दीन मसूद शाह (Alauddin Masood Shah )( 1242-46 ई.) के सिक्के पर सर्वप्रथम बगदाद के अंतिम खलीफा का नाम अंकित हुआ था।
- ‘अलाई दरवाजा’ (‘Alai Darwaza’) का निर्माण सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने ‘कुतुबमीनार’ के निकट करवाया था।
- मालवा विजय के उपलक्ष्य में मेवाड़ के राणा कुंभा ने कीर्ति स्तंभ (Kirti Stambh ) का निर्माण करवाया था।
- सही सुमेलित हैं –
स्मारक | शासक |
दोहरा गुबंद अष्टभुजीय मकबरा जहाँगीरी महल गोल गुंबद | सिकंदर लोदी शेरशाह अकबर मुहम्मद आदिलशाह |
- अबुल हसन यामिनुद्दीन खुसरो (Abul Hasan Yaminuddin Khusro ) जिसे प्रायः अमीर खुसरो के नाम से जाना जाता है, का जन्म 1253 ई. (651 हिजरी ) में उत्तर प्रदेश के वर्तमान कासगंज जिले के पटियाली नामक स्थान पर हुआ था।
- ‘खुसरो ने स्वयं को ‘तूती-ए-हिंद’ (‘Tutti-e-Hind’ ) कहा है।
- अमीर खुसरो की रचनाओं में मिफ्ताह-उल- फुतूह, तारीख-ए- दिल्ली, खजाइन – उल – फुतूह (तारीख-ए-अलाई), आशिका, नूह सिपिहर तथा तुगलकनामा प्रमुख हैं।
- खुसरो पहला मुसलमान था, जिसने भारतीय होने का दावा (claim to be an indian )किया था।
- नई फारसी काव्य शैली ‘सबक-ए-हिंदी’ (‘Sabak-e-Hindi’) या हिंदुस्तानी शैली का जन्मदाता अमीर खुसरो को माना जाता है।
- जियाउद्दीन बरनी ने फारसी में ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ (‘Tarikh-e-Firozshahi’ ) की रचना की थी।
- संगीत यंत्रों ‘तबला’ (‘Tabla’) तथा ‘सितार’ (‘Sitar’) का प्रचलन 13वीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने ही किया था।
- राणा कुंभा (Rana Kumbha ) ने संगीतशास्त्र पर संगीत मीमांसा, संगीत राज आदि ग्रंथों का प्रणयन किया।
- तुगलक वंशीय शासक फिरोजशाह तुगलक ने अपना संस्मरण ‘फुतुहात – ए फिरोजशाही’ (‘Futhuhat – A Firozshahi’ ) के नाम से लिखा है।
- कबीर (Kabir )(1398-1518 ई.) रामानंद के 12 शिष्यों में से प्रमुख थे।
- ‘सबद’, ‘साखी’ (‘Sabad’, ‘Sakhi’) एवं ‘रमैनी’ (‘Ramini’) कबीर की रचनाएं हैं।
- गुरुनानक (gurunanak )(1469-1539 ई.) ने सिख धर्म की स्थापना सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.) के समय में की थी।
- मीराबाई मेड़ता के रतन सिंह राठौर की इकलौती पुत्री थीं।
- नामदेव (Namdev )वारकरी संप्रदाय से संबंधित थे।
- सुप्रसिद्ध भक्त संत कवि गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidas )अकबर तथा जहांगीर के समकालीन थे।
- तुलसीदास ने लगभग 25 ग्रंथ लिखे, जिनमें ‘रामचरितमानस‘(‘Ramcharitmanas’) तथा ‘विनयपत्रिका’ (‘Vinayapatrika’) सर्वोत्तम हैं।
- तुकाराम (Tukaram )का काल 1608 से 1649 ई. के मध्य माना जाता है।
- तुकाराम वारकरी संप्रदाय (Varkari sect )से संबंधित थे।
- चिश्तिया सूफी मत (Chishtiyya Sufism) की स्थापना अफगानिस्तान के चिश्त में अबू इस्हाक सामी और उनके शिष्य ख्वाजा अबू अब्दाल चिश्ती ने की थी, किंतु भारत में सर्वप्रथम इसका प्रचार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Moinuddin Chishti ) के द्वारा हुआ था।
- शेख निजामुद्दीन औलिया के आध्यात्मिक गुरु हजरत बाबा फरीदुद्दीन मसूद गंजशकर (Hazrat Baba Fariduddin Masood Ganjshakar ) थे, जिन्हें बाबा फरीद (Baba Farid )के नाम से भी जाना जाता है।
- शेख निजामुद्दीन औलिया (Sheikh Nizamuddin Auliya )की दरगाह दिल्ली में स्थित है।
- 1325 ई. में निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु हुई।
- शेख निजामुद्दीन औलिया (Sheikh Nizamuddin Auliya )ने सात से अधिक सुल्तानों का राज्य देखा।
- निजामुद्दीन औलिया, महबूब-ए-इलाही और ‘सुल्तान-उल-औलिया’ (संतों का राजा) के नाम से प्रसिद्ध थे।
- कादरी शाखा (Kadri branch )के सर्वप्रथम संस्थापक बगदाद के शेख मुहीउद्दीन कादिर जिलानी थे।
- नक्शबंदी सिलसिले (Naqshbandi series )की स्थापना 14वीं सदी में ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंद ने की थी।
- सूफी संत शाह मोहम्मद गौस (Shah Mohammad Ghaus )ने कृष्ण को औलिया के रूप में स्वीकार किया है।
- सूफी संतों के निवास स्थान को ‘खानकाह’ (‘Khanqah’)कहते हैं।
- ‘प्रेमवाटिका‘ (‘Premvatika’)काव्यग्रंथ की रचना रसखान ने की थी।
- बारहमासा‘ (Perennial’)की रचना मलिक मोहम्मद जायसी ने की।
- जायसी की ‘पद्मावत’, ‘अखरावट’ (‘Padmavat’, ‘Akharavat’) तथा ‘आखिरी कलाम’(‘last sentence’) में से ‘पद्मावत’ का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।
मुगल साम्राज्य- Mughal Empire
बाबर का पूरा नाम जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर(Zaheeruddin Mohammad Babar) था।
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 को बाबर तथा इब्राहि लोदी(ibrahi lodi) के बीच हुआ।
27 अप्रैल, 1526 को बाबर ने अपने आप को बादशाह घोषित कर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली।
भारत में सर्वप्रथम पानीपत की पहली लड़ाई में तोपों का प्रयोग किया गया।
खानवा का युद्ध 17 मार्च, 1527 को बाबर और राणा सांगा के मध्य हुआ था।
खानवा के युद्ध में बाबर द्वारा जेहाद का नारा दिया गया था।
‘इस युद्ध में राणा सांगा पराजित हुआ।
इसी युद्ध में विजयश्री मिलने के उपरांत बाबर ने ‘गाजी’ (काफिरों को मारने वाला) (killer of infidels) की उपाधि धारण की।
घाघरा का युद्ध 5 मई, 1529 को बाबर और महमूद लोदी(Mahmood Lodi) के मध्य हुआ था। इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ। बाबर का यह अंतिम युद्ध था।
बाबर ने अपनी आत्मकथा (तुजुक ए बाबरी या बाबरनामा) (Tuzuk-e-Babri or Baburnama )में जिन दो हिंदू राज्यों का उल्लेख किया है उनमें एक विजयनगर है तथा दूसरा मेवाड़।
अकबर ने अब्दुर्रहीम खानेखाना द्वारा ‘बाबरनामा'(‘Baburnama’) का फारसी भाषा(Persian language) में रूपांतरण करवाया।
26 जून, 1539 को चौसा के युद्ध में हुमायूं को शेरशाह(Shershah to Humayun) से पराजित होना पड़ा, इसी युद्ध में निजाम नामक भिश्ती(Bhishti named Nizam) ने हुमायूं की जान बचाई थी।
17 मई, 1540 को कन्नौज या बिलग्राम के युद्ध में भी हुमायूं को शेरशाह से पराजित होना पड़ा और विवश होकर एक निर्वासित की भांति इधर-उधर भटकना पड़ा।
22 जून, 1555 को सरहिंद युद्ध की विजय ने हुमायूं को एक बार पुनः उसका खोया राज्य वापस दिला दिया।
शेरशाह ने पुराने घिसे-पिटे सिक्कों के स्थान पर शुद्ध सोने, चांदी एवं तांबे के सिक्कों का प्रचलन किया।
शेरशाह ने शुद्ध चांदी का रुपया (178 ग्रेन) तथा तांबे का दाम (380 ग्रेन) चलाया।
रुपया और दाम की विनिमय दर 1:64 थी।
हाजी बेगम ने अपने पति हुमायूं के मकबरे का निर्माण दिल्ली (टीन पनार) में ८ ई. में करवाम था
अकबर ने सर्वप्रथम कछवाहा राजपूतों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे।
बिहारीमल (भारमल) पहला राजपूत राजा था, जिसने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार(accept submission) की।
अकबर ने सूफी मत में अपनी आस्था जताते हुए चिश्तिया संप्रदाय को समर्थन दिया था।
माहम अनगा के पुत्र अधम खां को 1562 ई. में अकबर ने स्वयं मारा था, क्योंकि उसने अकबर के प्रधानमंत्री अतगा खां की हत्या कर दी थी।
दुर्गावती गोंडवाना के हिंदू राज्य की योग्य शासिका थीं, अकबर के आक्रमण (1564 ई.) के फलस्वरूप शत्रु से घिर जाने पर इस वीर रानी ने आत्महत्या कर ली थी।
हल्दी घाटी युद्ध के पीछे अकबर का मुख्य उद्देश्य राणा प्रताप को अपने अधीन लाना था।
अकबर ने अप्रैल, 1576 में मानसिंह के नेतृत्व में 5 हजार सैनिकों को राणा प्रताप के विरुद्ध भेजा।
राणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा अमर सिंह ने 1615 ई. में जहांगीर से संधि की थी।
मुगल शासन व्यवस्था को स्थापित करने का श्रेय अकबर को ही है।
अपनी उदार धार्मिक नीति के अंतर्गत अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा, 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 ई. में जजिया कर को समाप्त कर दिया।
अकबर ने 1573 ई. में घोड़ों को दागने की प्रथा का पुनः प्रचलन किया, जिससे सेनापति अपने घोड़े न बदल सकें।
1574-75 ई. में अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर सैनिक संगठित किया।
अकबर की मनसबदारी व्यवस्था दशमलव प्रणाली पर आधारित थी।
मुगल मनसबदारी प्रणाली मध्य एशिया से ली गई थी।
मुगल बादशाह अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था अपने शासनकाल के 11 वें वर्ष में प्रारंभ किया था।
अकबर के शासनकाल में भू-राजस्व वसूली के लिए जाब्ती प्रणाली का प्रचलन हुआ।
मुगल शासकों के वास्तविक नाम और उनकी उपाधियां- Real names of Mughal rulers and their titles
शासक- Ruler | उपाधियां |
बबर-Babar | पादशाह, मिर्जा, गाजी |
हुमायूँ-Humayun | नासिरुद्दीन मुहम्मद |
अकबर-Akbar | जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह गाजी |
जहांगीर-Jahagir | नूरुदीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी |
शाहजहां-Shajahan | अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी |
औरंगजेब-Aurangzeb | अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी |
मुहम्मद मुअज्जम-Muhammad Muazzam | बहादुरशाह |
अकबर ने अपने शासन के 24वें वर्ष ( 1580 ई.) में आइने- दहसाला (टोडरमल बंदोबस्त )( (Todarmal settlement) नामक नई कर प्रणाली को शुरू करके मुगलकालीन व्यवस्था को स्थायी स्वरूप प्रदान किया।
इस प्रणाली का वास्तविक प्रणेता टोडरमल था। इसी कारण इसे टोडरमल बंदोबस्त भी कहते हैं।
अकबर कालीन भू-राजस्व व्यवस्था की दहसाला पद्धति को बंदोबस्त व्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है।
जहांगीर के समकालीन मोहसिन फानी ने अपनी रचना ‘दविस्तान– ए-मजाहिब’ में पहली बार दीन-ए-इलाही का एक स्वतंत्र धर्म(- For the first time in ‘e-Mazahib’ an independent religion of Deen-e-Ilahi) के रूप में उल्लेख किया था।
तुर्की सुल्तान का महल इतना सुंदर है कि पर्सी ब्राउन ने उसे ‘स्थापत्य कला का मोती'(‘Pearl of Architecture’) कहा है।
अकबर ने 1582 ई. में ‘तौहीद-ए-इलाही’ या ‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना की
इस नवीन संप्रदाय का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था।
‘हिंदुओं में केवल बीरबल ने इसे स्वीकार किया था।
मुगलकालीन साहित्य- Mughal Literature
ग्रंथ | लेखक |
बाबरनामा | बाबर |
हुमायूँनामा | गुलबदन बेगम |
अकबरनामा | अबुल फजल |
तुजुक-ए-जहांगीरी | जहांगीर |
पादशाहनामा | अब्दुल हमीद लाहौरी |
खुलासत-उत-तवारीख | फुतुहात-ए-आलमगीरी |
नुस्खा-ए-दिलकुशा | तबकात-ए-अकबरी |
सुजान राय ईश्वरदास नागर भीमसेन बुरहानपुरी | निजामुद्दीन अहमद |
यह महजरनामा अबुल फजल के पिता शेख मुबारक ने तैयार किया था।
महजर को स्मिथ और वूल्जले हेग ने अचूक आज्ञा-पत्र कहा है।
महजर जारी करने के बाद अकबर ने ‘सुल्तान-ए-आदिल’ या ‘इमाम-ए-आदिल'(‘Sultan-e-Adil’ or ‘Imam-e-Adil’ की उपाधि धारण की।
आगरा के किले में 1605 ई. में जहांगीर का राज्याभिषेक 22 वर्ष 24 दिन की अवस्था में हुआ और उसने ‘नूरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी’ की उपाधि धारण की।
दु अस्पा एवं सिह अस्पा प्रथा जहांगीर ने चलाई थी।
1615 ई. में राणा अमर सिंह तथा मुगल बादशाह जहांगीर के मध्य चित्तौड़गढ़ की संधि हुई
प्रसिद्ध स्थापत्य, स्थल, निर्माणकर्ता एवं वर्ष- famous architecture, place, builder and year
स्थापत्य एवं स्थल | निर्माणकर्ता | वर्ष |
आगरा फोर्ट | अकबर | 1565-73ई. |
फतेहपुर सीकरी | अकबर | 1571-85ई. |
चारमीनार | कुली कुतुबशाह | 1591 ई. |
निशात बाग | आसिफ खान | 1633 ई. |
ताजमहल | शाहजहां | 1631-48ई. |
जामा मस्जिद | शाहजहां | 1650-56ई. |
लाल किला | शाहजहां | 1638-48ई. |
हवामहल (जयपुर) | सवाई प्रताप सिंह | 1799 ई. |
विलियम हॉकिंस (1608-1611 ई.) जहांगीर के दरबार (आगरा) में भेजा जाने वाला ब्रिटिश राजा जेम्स प्रथम का अंग्रेज राजदूत तथा मुगल दरबार में उपस्थित होने वाला पहला अंग्रेज था।
जहांगीर के दरबार में आने वाले दूसरे शिष्टमंडल का नेतृत्वकर्ता सर थॉमस रो (जहांगीर से अजमेर में मिला था ) थे।
जहांगीर ने हॉकिंस को ‘इंग्लिश खां’ की उपाधि देकर आर्मीनिया की एक स्त्री से उसका विवाह कर दिया।
पीटर मुंडी ब्रिटेन का यात्री था, जो शाहजहां के समय आया था।
जहांगीर के समय के सर्वोत्कृष्ट चित्रकार उस्ताद मंसूर और अबुल हसन थे।
सम्राट जहांगीर ने उन दोनों को क्रमशः नादिर-उल-अख (उस्ताद मंसूर) तथा नादिर-उद्-जमा (अबुल हसन) की उपाधि प्रदान की थी।
उस्ताद मंसूर प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ चित्रकार था, जबकि अबुल हसन को व्यक्ति चित्र में महारत हासिल थी।
जहांगीर ने अपनी आत्मकथा फारसी भाषा में लिखी और उसका नाम ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ रखा।
एत्मादुद्दौला का मकबरा नूरजहां ने 1622-28 ई. के मध्य में अपने पिता मिर्जा गयास बेग की याद में बनवाया।
यह पहली कृति है जो पूर्णतया संगमरमर से बनाई गई।
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा फतेहपुर सीकरी में है।
शेख निजामुद्दीन औलिया का मकबरा दिल्ली में है।
लाडली बेगम शेर अफगान एवं मेहरुन्निसा की पुत्री थी,
जिसकी शादी जहांगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई थी। महावत खां ने वर्ष 1626 में जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह किया था।
5 फरवरी, 1592 को लाहौर में शाहजादा खुर्रम का जन्म हुआ था।
मुगल शासक और उनके प्रसिद्ध नाम- मुगल शासक और उनके प्रसिद्ध नाम
शासक | प्रसिद्ध नाम |
औरंगजेब | जिंदा पीर |
जहांदारशाह | लम्पट मूर्ख |
फर्रुखसियर | घृणित कायर |
रफी-उद-दरजात | कठपुतली शासक |
मुहम्मद शाह | रंगीला |
बहादुरशाह 1 | शाहे बेखबर |
बहादुरशाह II | जफर |
उसकी माता मारवाड़ के शासक उदयसिंह की पुत्री जगतगोसाई थीं
1612 ई. में आसफ खां की पुत्री अर्जुमंद बानो बेगम से उसका विवाह हुआ, जो बाद में इतिहास में ‘मुमताज महल’ के नाम से विख्यात हुई।
1628 ई. में शाहजहां ‘अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी’ की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा।
दिल्ली की जामा मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने करवाया था।
उपनिषदों का फारसी अनुवाद शाहजहां के शासनकाल में शहजादे दारा शिकोह ने ‘सिर्र-ए-अकबर’ शीर्षक के तहत किया।
दारा को उसकी सहिष्णुता एवं उदारता के लिए लेनपूल ने “लघु अकबर” की संज्ञा दी है।
शाहजहां ने भी दारा को “शाह बुलंद इकबाल” की उपाधि प्रदान की थी।
मुगल बादशाह शाहजहां ने बलबन द्वारा प्रारंभ ईरानी दरबारी रिवाज ‘सिजदा समाप्त कर दिया था।
मुगल बादशाह औरंगजेब का राज्याभिषेक दो बार हुआ था। मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन के निकट धरमत नामक स्थान पर
15 अप्रैल, 1658 को औरंगजेब तथा दारा शिकोह के मध्य युद्ध हुआ था।
‘सामूगढ़ का युद्ध 29 मई, 1658 को औरंगजेब और मुराद की संयुक्त सेनाओं एवं दारा शिकोह के मध्य हुआ था, जिसमें दार शिकोह पराजित हुआ था।
उत्तराधिकार का अंतिम युद्ध देवराई का था।
औरंगजेब ने बीजापुर (1686) एवं गोलकुंडा (1687) पर आधिपत्य स्थापित किया।
औरंगजेब के शासनकाल के दौरान मुगल सेना में सर्वाधिक हिंदू सेनापति थे।
औरंगजेब के शासनकाल में कुल सेनापतियों में 31.6 प्रतिशत 17 हिंदू थे, जिसमें मराठों की संख्या आधे से अधिक थी। अकबर के काल में यह अनुपात 22.5 प्रतिशत तथा शाहजहां के काल में 22.4 प्रतिशत था।
अकबर महान ने अपने साम्राज्य से ‘जजिया कर’ की समाप्ति की घोषणा की थी, किंतु औरंगजेब ने उसे 1679 ई. में पुनर्जीवित | कर दिया।
औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपनी प्रिय पत्नी राविया -उद्-दौरानी के मकबरे का निर्माण 1651-61 ई. में कराया था।
इसे ‘बीबी का मकबरा’ भी कहा जाता है। इसको द्वितीय ताजमहल भी कहा जाता है। मेहरुन्निसा औरंगजेब की पुत्री थीं।
औरंगजेब ने जहांआरा को ‘साहिबात-उज़-ज़मानी’ की उपाधि प्रदान की थी।
दिल्ली के लाल किले में औरंगजेब ने मोती मस्जिद का निर्माण किया था मुगल प्रशासन में मुहतसिव जन आचरण के निरीक्षण विभाग का प्रधान था।
वेश्याओं को नगर से निष्कासित कर एक नए स्थान पर बसाया गया और उसका नाम ‘शैतानपुरी’ रखा गया।
मनसबदारी व्यवस्था के अंतर्गत 33 वर्ग थे।
अकबर ने 40वें वर्ष में जात एवं सवार जैसी दोहरी व्यवस्था लागू की।
मुगल प्रशासनिक शब्दावली में ‘माल’ शब्द भू-राजस्व से संबंधित था।
पुर्तगालियों द्वारा 1605 ई. में तंबाकू भारत लाया गया। अकबर द्वारा राम-सीता की आकृतियों और ‘रामसीय’ देवनागरी
लेख से युक्त सिक्के चलाए गए थे। ‘मुगलकाल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
चांदी का सिक्का ‘रुपया’ कहलाता था। ‘दाम’ अकबर द्वारा चलाया गया तांबे का सिक्का था।
चित्रकला के क्षेत्र में मुगल शैली का प्रारंभ हुमायूं ने किया था। अकबर ने अनेक ग्रंथों को चित्रित करवाया था। इसमें सर्वप्रथम
‘दास्तान-ए-अमीर हम्जा”Dastan-e-Amir Hamza’ है। जहांगीर के काल को ‘मुगल चित्रकला ‘Mughal painting का स्वर्ण युग’ कहा जाता है।
औरंगजेब ने संगीत को इस्लाम विरोधी मानकर उस पर पाबंदी लगा दी।
औरंगजेब के काल में सर्वाधिक संगीत की पुस्तकें लिखी गई।
औरंगजेब संगीत विरोधी होने के बावजूद स्वयं एक कुशल वीणावादक था।
‘तोड़ी‘ राग प्रातः कालीन गाया जाने वाला राग है। हरिदास संप्रदाय के संगीत अर्चना केंद्रों की संख्या 5 थी। वे
गायन और वादन दोनों कलाओं में प्रवीण थे। इनके अनेक शिष्य थे जिनमें से तानसेन, बैजू बावरा, गोपाल नायक, मदन लाल का नाम उल्लेखनीय है।
अकबर के शासनकाल के दौरान तानसेन और स्वामी हरिदास प्रमुख ध्रुपद गायक थे।
तानसेन अकबर के दरबार का प्रसिद्ध संगीतज्ञ था। तानसेन का मूल नाम रामतनु पांडेय था।
अकबर ने तानसेन को ‘कंठामरणवाणीविलास’ की उपाधि प्रदान की थी।
विलास खां जहांगीर के दरबार का प्रमुख संगीतज्ञ था।
माहम अनगा ने दिल्ली के पुराने किले में ‘खैरुल मनजिल’ अथवा ‘खैर उल मनजिल’ नामक मदरसे की स्थापना कराई थी, जिसे ‘मदरसा-ए-बेगम’ भी कहा जाता था।
मुगल कालीन लेखन एवं उनकी पुस्तकें हैं- The writings and his books of the Mughal period are
लेखक | पुस्तक |
निजामुद्दीन अहमद | तबकाते अकबरी |
अब्बास खां शरवानी | तारीखे शेरशाही |
हसन निजामी | ताजुल मासिर |
मिर्जा मोहम्मद काजिम | आलमगीरनामा |
चन्द्रभान ब्रह्मन | चहार चमन |
मोतमिद खां | इकबालनामा-ए-जहांगीरी |
अब्दुल हमीद लाहौरी शाहजहां के शासनकाल का एक राजकीय इतिहासकार था।
उसने अपनी पुस्तक ‘पादशाहनामा’ में शाहजहां कालीन इतिहास का वर्णन किया है।
1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके 63 वर्षीय पुत्र मुअज्जम ( शाह आलम) ने ‘बहादुर शाह’ (प्रथम) के नाम से सत्ता संभाली।
शाहजहां द्वारा बनवाए गए प्रसिद्ध मयूर सिंहासन पर बैठने वाला अंतिम मुगल शासक मुहम्मद शाह (1719-1748 ई.) था।
शाह आलम द्वितीय का कार्यकाल 1759 से 1806 ई. तक था। उसका वास्तविक नाम अली गौहर था।
फारसी मुगलों की राजभाषा थी।
नस्तालीक’ एक फारसी लिपि है, जो मध्यकालीन भारत में प्रयुक्त होती थी।
मुगल बादशाह औरंगजेब नस्तालीक तथा शिकस्त लिखने (Beat write )में निपुण था।
अजमेर की किशनगढ़ रियासत के राजा सावंत सिंह (17वीं- 18वीं शती) का वैष्णव उपनाम नागरीदास (राधा का सेवक ) (Servant of Radha) था।
रामचंद्रिका’ एवं ‘रसिकप्रिया’ हिंदी कविता के रीतिकालीन कवि केशवदास (1555-1617 ई.) की रचनाएं हैं।
चौथे गुरु रामदास के समय में मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें 500 बीघा भूमि दान में दी, जिसमें एक प्राकृतिक तालाब भी था।
सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने 1604 ई. में सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ‘आदि ग्रंथ का संकलन किया।
राजकुमार खुसरो की सहायता करने के कारण जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को फांसी पर चढ़वा दिया।
गुरु अर्जुन देव ने तरनतारन और करतारपुर नामक नगर बसाए तथा मसनद प्रथा चलाई, जिसके अनुसार सिक्खों को अपनी आय का दसवां भाग गुरु को देना पड़ता था।
” सिख संप्रदाय के ‘आदि ग्रंथ’ अथवा ‘गुरु ग्रंथ साहेब’ में सिक्खों के छः गुरुओं, अनेक हिंदू भक्तों तथा कबीर बाबा फरीद, नामदेव और रैदास (Six Gurus, many Hindu devotees and Kabir Baba Farid, Namdev and Raidas) के उपदेश समाहित हैं।