सल्तनत काल

सल्तनतकालीन प्रमुख भवन
भवननिर्मातास्थल
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
कुतुबमीनार का निर्माण
अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अतारकिन का दरवाजा
इल्तुतमिश का मकबरा   
सीरी का किला         
अलाई दरवाजा
गयासुद्दीन का मकबरा 
आदिलाबाद का किला 
जहांपनाह नगर 
अदीना मस्जिद   
कोटला फिरोजशाह किला
अटाला मस्जिद         
हिंडोला महल
जहाज महल
चांद मीनार ( चार मीनार) विजय स्तंभ                       
कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुबुद्दीन ऐबक
इल्तुतमिश
इल्तुतमिश
अलाउद्दीन खिलजी
अलाउद्दीन खिलजी
गयासुद्दीन तुगलक
मुहम्मद तुगलक
मुहम्मद तुगलक 
सिकंदर शाह
फिरोज तुगलक
इब्राहिम शाह शर्की
हुशंगशाह 
हुशंगशाह 
कुली कुतुबशाह
राणा कुम्भा                       
दिल्ली
दिल्ली
अजमेर
नागौर
दिल्ली
दिल्ली
दिल्ली
दिल्ली
दिल्ली
दिल्ली
पांडुआ(बंगाल)
दिल्ली
जौनपुर
मांडू
मांडू
हैदराबाद
चित्तौड़
राज्यसंस्थापकराजवंश
बरार
बीजापुर
अहमदनगर गोलकुंडा
बीदर
फ़तेहउल्ला इमादशाह
यूसुफ आदिलशाह
मलिक अहमद
कुली कुतुबशाह
अमीर अली बरीद
इमादशाही वंश
आदिलशाही वंश
निजामशाही वंश
कुतुबशाही वंश
वरीदशाही वंश
विभागसंस्थापक शासक
दीवान-ए-मुस्तखराज (राजस्व विभाग)
दीवान-ए-रियासत (बाजार नियंत्रण विभाग)
दीवान-ए- अमरकोही (कृषि विभाग)
दीवान-ए- खैरात (दान विभाग)
दीवान-ए-बन्दगान
अलाउद्दीन खिलजी    
अलाउद्दीन खिलजी  
मुहम्मद बिन तुगलक  
फिरोज तुगलक    
फिरोज तुगलक
विभाग एवं उनकी कार्यविधियां
दीवाने अर्ज
दीवाने रिसालत
दीवाने इन्शा
दीवाने वजारत
सेना विभाग से सम्बंधित
धार्मिक मुद्दों से सम्बंधित
सरकारी पत्र व्यवहार से सम्बंधित
वित्तीय मामलात से सम्बंधित
स्मारकशासक
दोहरा गुबंद
अष्टभुजीय मकबरा
जहाँगीरी महल
गोल गुंबद
सिकंदर लोदी
शेरशाह
अकबर
मुहम्मद आदिलशाह

मुगल साम्राज्य- Mughal Empire

बाबर का पूरा नाम जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर(Zaheeruddin Mohammad Babar) था।

पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 को बाबर तथा इब्राहि लोदी(ibrahi lodi) के बीच हुआ।

27 अप्रैल, 1526 को बाबर ने अपने आप को बादशाह घोषित कर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली।

 भारत में सर्वप्रथम पानीपत की पहली लड़ाई में तोपों का प्रयोग किया गया।

खानवा का युद्ध 17 मार्च, 1527 को बाबर और राणा सांगा के मध्य हुआ था।

खानवा के युद्ध में बाबर द्वारा जेहाद का नारा दिया गया था।

‘इस युद्ध में राणा सांगा पराजित हुआ।

इसी युद्ध में विजयश्री मिलने के उपरांत बाबर ने ‘गाजी’ (काफिरों को मारने वाला) (killer of infidels) की उपाधि धारण की।

घाघरा का युद्ध 5 मई, 1529 को बाबर और महमूद लोदी(Mahmood Lodi) के मध्य हुआ था। इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ। बाबर का यह अंतिम युद्ध था।

बाबर ने अपनी आत्मकथा (तुजुक ए बाबरी या बाबरनामा) (Tuzuk-e-Babri or Baburnama )में जिन दो हिंदू राज्यों का उल्लेख किया है उनमें एक विजयनगर है तथा दूसरा मेवाड़।

अकबर ने अब्दुर्रहीम खानेखाना द्वारा ‘बाबरनामा'(‘Baburnama’) का फारसी भाषा(Persian language) में रूपांतरण करवाया।

26 जून, 1539 को चौसा के युद्ध में हुमायूं को शेरशाह(Shershah to Humayun) से पराजित होना पड़ा, इसी युद्ध में निजाम नामक भिश्ती(Bhishti named Nizam) ने हुमायूं की जान बचाई थी।

17 मई, 1540 को कन्नौज या बिलग्राम के युद्ध में भी हुमायूं को शेरशाह से पराजित होना पड़ा और विवश होकर एक निर्वासित की भांति इधर-उधर भटकना पड़ा।

22 जून, 1555 को सरहिंद युद्ध की विजय ने हुमायूं को एक बार पुनः उसका खोया राज्य वापस दिला दिया।

शेरशाह ने पुराने घिसे-पिटे सिक्कों के स्थान पर शुद्ध सोने, चांदी एवं तांबे के सिक्कों का प्रचलन किया।

शेरशाह ने शुद्ध चांदी का रुपया (178 ग्रेन) तथा तांबे का दाम (380 ग्रेन) चलाया।

रुपया और दाम की विनिमय दर 1:64 थी।

हाजी बेगम ने अपने पति हुमायूं के मकबरे का निर्माण दिल्ली (टीन पनार) में ८ ई. में करवाम था

अकबर ने सर्वप्रथम कछवाहा राजपूतों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे।

बिहारीमल (भारमल) पहला राजपूत राजा था, जिसने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार(accept submission) की।

अकबर ने सूफी मत में अपनी आस्था जताते हुए चिश्तिया संप्रदाय को समर्थन दिया था।

माहम अनगा के पुत्र अधम खां को 1562 ई. में अकबर ने स्वयं मारा था, क्योंकि उसने अकबर के प्रधानमंत्री अतगा खां की हत्या कर दी थी।

दुर्गावती गोंडवाना के हिंदू राज्य की योग्य शासिका थीं, अकबर के आक्रमण (1564 ई.) के फलस्वरूप शत्रु से घिर जाने पर इस वीर रानी ने आत्महत्या कर ली थी।

हल्दी घाटी युद्ध के पीछे अकबर का मुख्य उद्देश्य राणा प्रताप को अपने अधीन लाना था।

अकबर ने अप्रैल, 1576 में मानसिंह के नेतृत्व में 5 हजार सैनिकों को राणा प्रताप के विरुद्ध भेजा।

राणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा अमर सिंह ने 1615 ई. में जहांगीर से संधि की थी।

मुगल शासन व्यवस्था को स्थापित करने का श्रेय अकबर को ही है।

अपनी उदार धार्मिक नीति के अंतर्गत अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा, 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 . में जजिया कर को समाप्त कर दिया।

अकबर ने 1573 ई. में घोड़ों को दागने की प्रथा का पुनः प्रचलन किया, जिससे सेनापति अपने घोड़े न बदल सकें।

1574-75 ई. में अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर सैनिक संगठित किया।

अकबर की मनसबदारी व्यवस्था दशमलव प्रणाली पर आधारित थी।

 मुगल मनसबदारी प्रणाली मध्य एशिया से ली गई थी।

मुगल बादशाह अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था अपने शासनकाल के 11 वें वर्ष में प्रारंभ किया था।

अकबर के शासनकाल में भू-राजस्व वसूली के लिए जाब्ती प्रणाली का प्रचलन हुआ।

मुगल शासकों के वास्तविक नाम और उनकी उपाधियां- Real names of Mughal rulers and their titles

शासक- Rulerउपाधियां
बबर-Babarपादशाह, मिर्जा, गाजी
हुमायूँ-Humayunनासिरुद्दीन मुहम्मद
अकबर-Akbarजलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह गाजी
जहांगीर-Jahagirनूरुदीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी
शाहजहां-Shajahanअबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी
औरंगजेब-Aurangzebअबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी
मुहम्मद मुअज्जम-Muhammad Muazzamबहादुरशाह

अकबर ने अपने शासन के 24वें वर्ष ( 1580 ई.) में आइने- दहसाला (टोडरमल बंदोबस्त )( (Todarmal settlement) नामक नई कर प्रणाली को शुरू करके मुगलकालीन व्यवस्था को स्थायी स्वरूप प्रदान किया।

इस प्रणाली का वास्तविक प्रणेता टोडरमल था। इसी कारण इसे टोडरमल बंदोबस्त भी कहते हैं।

अकबर कालीन भू-राजस्व व्यवस्था की दहसाला पद्धति को बंदोबस्त व्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है।

जहांगीर के समकालीन मोहसिन फानी ने अपनी रचना ‘दविस्तान– ए-मजाहिब’ में पहली बार दीन-ए-इलाही का एक स्वतंत्र धर्म(- For the first time in ‘e-Mazahib’ an independent religion of Deen-e-Ilahi)  के रूप में उल्लेख किया था।

तुर्की सुल्तान का महल इतना सुंदर है कि पर्सी ब्राउन ने उसे ‘स्थापत्य कला का मोती'(‘Pearl of Architecture’) कहा है।

अकबर ने 1582 ई. में ‘तौहीद-ए-इलाही’ या ‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना की

इस नवीन संप्रदाय का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था।

‘हिंदुओं में केवल बीरबल ने इसे स्वीकार किया था।

मुगलकालीन साहित्य- Mughal Literature

ग्रंथलेखक
बाबरनामाबाबर
हुमायूँनामागुलबदन बेगम
अकबरनामाअबुल फजल
तुजुक-ए-जहांगीरीजहांगीर
पादशाहनामाअब्दुल हमीद लाहौरी
खुलासत-उत-तवारीखफुतुहात-ए-आलमगीरी
नुस्खा-ए-दिलकुशातबकात-ए-अकबरी
सुजान राय ईश्वरदास नागर भीमसेन बुरहानपुरीनिजामुद्दीन अहमद

यह महजरनामा अबुल फजल के पिता शेख मुबारक ने तैयार किया था।

महजर को स्मिथ और वूल्जले हेग ने अचूक आज्ञा-पत्र कहा है।

महजर जारी करने के बाद अकबर ने ‘सुल्तान-ए-आदिल’ या ‘इमाम-ए-आदिल'(‘Sultan-e-Adil’ or ‘Imam-e-Adil’ की उपाधि धारण की।

आगरा के किले में 1605 ई. में जहांगीर का राज्याभिषेक 22 वर्ष 24 दिन की अवस्था में हुआ और उसने ‘नूरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी’ की उपाधि धारण की।

दु अस्पा एवं सिह अस्पा प्रथा जहांगीर ने चलाई थी।

1615 ई. में राणा अमर सिंह तथा मुगल बादशाह जहांगीर के मध्य चित्तौड़गढ़ की संधि हुई

प्रसिद्ध स्थापत्य, स्थल, निर्माणकर्ता एवं वर्ष- famous architecture, place, builder and year

स्थापत्य एवं स्थलनिर्माणकर्तावर्ष
आगरा फोर्टअकबर1565-73ई.
फतेहपुर सीकरीअकबर1571-85ई.
चारमीनारकुली कुतुबशाह1591 ई.
निशात बागआसिफ खान1633 ई.
ताजमहलशाहजहां1631-48ई.
जामा मस्जिदशाहजहां1650-56ई.
लाल किलाशाहजहां1638-48ई.
हवामहल (जयपुर)सवाई प्रताप सिंह 1799 ई.

विलियम हॉकिंस (1608-1611 ई.) जहांगीर के दरबार (आगरा) में भेजा जाने वाला ब्रिटिश राजा जेम्स प्रथम का अंग्रेज राजदूत तथा मुगल दरबार में उपस्थित होने वाला पहला अंग्रेज था।

जहांगीर के दरबार में आने वाले दूसरे शिष्टमंडल का नेतृत्वकर्ता सर थॉमस रो (जहांगीर से अजमेर में मिला था ) थे।

जहांगीर ने हॉकिंस को ‘इंग्लिश खां’ की उपाधि देकर आर्मीनिया की एक स्त्री से उसका विवाह कर दिया।

पीटर मुंडी ब्रिटेन का यात्री था, जो शाहजहां के समय आया था।

जहांगीर के समय के सर्वोत्कृष्ट चित्रकार उस्ताद मंसूर और अबुल हसन थे।

सम्राट जहांगीर ने उन दोनों को क्रमशः नादिर-उल-अख (उस्ताद मंसूर) तथा नादिर-उद्-जमा (अबुल हसन) की उपाधि प्रदान की थी।

उस्ताद मंसूर प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ चित्रकार था, जबकि अबुल हसन को व्यक्ति चित्र में महारत हासिल थी।

जहांगीर ने अपनी आत्मकथा फारसी भाषा में लिखी और उसका नाम ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ रखा।

एत्मादुद्दौला का मकबरा नूरजहां ने 1622-28 ई. के मध्य में अपने पिता मिर्जा गयास बेग की याद में बनवाया।

यह पहली कृति है जो पूर्णतया संगमरमर से बनाई गई।

शेख सलीम चिश्ती का मकबरा फतेहपुर सीकरी में है।

शेख निजामुद्दीन औलिया का मकबरा दिल्ली में है।

लाडली बेगम शेर अफगान एवं मेहरुन्निसा की पुत्री थी,

जिसकी शादी जहांगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई थी। महावत खां ने वर्ष 1626 में जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह किया था।

5 फरवरी, 1592 को लाहौर में शाहजादा खुर्रम का जन्म हुआ था।

मुगल शासक और उनके प्रसिद्ध नाम- मुगल शासक और उनके प्रसिद्ध नाम

शासकप्रसिद्ध नाम
औरंगजेबजिंदा पीर
जहांदारशाहलम्पट मूर्ख
फर्रुखसियरघृणित कायर
रफी-उद-दरजातकठपुतली शासक
मुहम्मद शाहरंगीला
बहादुरशाह 1शाहे बेखबर
बहादुरशाह IIजफर

उसकी माता मारवाड़ के शासक उदयसिंह की पुत्री जगतगोसाई थीं

1612 ई. में आसफ खां की पुत्री अर्जुमंद बानो बेगम से उसका विवाह हुआ, जो बाद में इतिहास में ‘मुमताज महल’ के नाम से विख्यात हुई।

1628 ई. में शाहजहां ‘अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी’ की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा।

दिल्ली की जामा मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने करवाया था।

उपनिषदों का फारसी अनुवाद शाहजहां के शासनकाल में शहजादे दारा शिकोह ने ‘सिर्र-ए-अकबर’ शीर्षक के तहत किया।

दारा को उसकी सहिष्णुता एवं उदारता के लिए लेनपूल ने “लघु अकबर” की संज्ञा दी है।

शाहजहां ने भी दारा को “शाह बुलंद इकबाल” की उपाधि प्रदान की थी।

मुगल बादशाह शाहजहां ने बलबन द्वारा प्रारंभ ईरानी दरबारी रिवाज ‘सिजदा समाप्त कर दिया था।

मुगल बादशाह औरंगजेब का राज्याभिषेक दो बार हुआ था। मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन के निकट धरमत नामक स्थान पर

15 अप्रैल, 1658 को औरंगजेब तथा दारा शिकोह के मध्य युद्ध हुआ था।

‘सामूगढ़ का युद्ध 29 मई, 1658 को औरंगजेब और मुराद की संयुक्त सेनाओं एवं दारा शिकोह के मध्य हुआ था, जिसमें दार शिकोह पराजित हुआ था।

उत्तराधिकार का अंतिम युद्ध देवराई का था।

औरंगजेब ने बीजापुर (1686) एवं गोलकुंडा (1687) पर आधिपत्य स्थापित किया।

औरंगजेब के शासनकाल के दौरान मुगल सेना में सर्वाधिक हिंदू सेनापति थे।

 औरंगजेब के शासनकाल में कुल सेनापतियों में 31.6 प्रतिशत 17 हिंदू थे, जिसमें मराठों की संख्या आधे से अधिक थी। अकबर के काल में यह अनुपात 22.5 प्रतिशत तथा शाहजहां के काल में 22.4 प्रतिशत था।

अकबर महान ने अपने साम्राज्य से ‘जजिया कर’ की समाप्ति की घोषणा की थी, किंतु औरंगजेब ने उसे 1679 ई. में पुनर्जीवित | कर दिया।

औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपनी प्रिय पत्नी राविया -उद्-दौरानी के मकबरे का निर्माण 1651-61 ई. में कराया था।

इसे ‘बीबी का मकबरा’ भी कहा जाता है। इसको द्वितीय ताजमहल भी कहा जाता है। मेहरुन्निसा औरंगजेब की पुत्री थीं।

औरंगजेब ने जहांआरा को ‘साहिबात-उज़-ज़मानी’ की उपाधि प्रदान की थी।

दिल्ली के लाल किले में औरंगजेब ने मोती मस्जिद का निर्माण किया था मुगल प्रशासन में मुहतसिव जन आचरण के निरीक्षण विभाग का प्रधान था।

वेश्याओं को नगर से निष्कासित कर एक नए स्थान पर बसाया गया और उसका नाम ‘शैतानपुरी’ रखा गया।

मनसबदारी व्यवस्था के अंतर्गत 33 वर्ग थे।

 अकबर ने 40वें वर्ष में जात एवं सवार जैसी दोहरी व्यवस्था लागू की।

मुगल प्रशासनिक शब्दावली में ‘माल’ शब्द भू-राजस्व से संबंधित था।

पुर्तगालियों द्वारा 1605 ई. में तंबाकू भारत लाया गया। अकबर द्वारा राम-सीता की आकृतियों और ‘रामसीय’ देवनागरी

लेख से युक्त सिक्के चलाए गए थे। ‘मुगलकाल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।

चांदी का सिक्का ‘रुपया’ कहलाता था। ‘दाम’ अकबर द्वारा चलाया गया तांबे का सिक्का था।

चित्रकला के क्षेत्र में मुगल शैली का प्रारंभ हुमायूं ने किया था। अकबर ने अनेक ग्रंथों को चित्रित करवाया था। इसमें सर्वप्रथम

‘दास्तान-ए-अमीर हम्जा”Dastan-e-Amir Hamza’ है। जहांगीर के काल को ‘मुगल चित्रकला ‘Mughal painting का स्वर्ण युग’ कहा जाता है।

औरंगजेब ने संगीत को इस्लाम विरोधी मानकर उस पर पाबंदी लगा दी।

औरंगजेब के काल में सर्वाधिक संगीत की पुस्तकें लिखी गई।

औरंगजेब संगीत विरोधी होने के बावजूद स्वयं एक कुशल वीणावादक था।

‘तोड़ी‘ राग प्रातः कालीन गाया जाने वाला राग है। हरिदास संप्रदाय के संगीत अर्चना केंद्रों की संख्या 5 थी। वे

गायन और वादन दोनों कलाओं में प्रवीण थे। इनके अनेक शिष्य थे जिनमें से तानसेन, बैजू बावरा, गोपाल नायक, मदन लाल का नाम उल्लेखनीय है।

अकबर के शासनकाल के दौरान तानसेन और स्वामी हरिदास प्रमुख ध्रुपद गायक थे।

तानसेन अकबर के दरबार का प्रसिद्ध संगीतज्ञ था। तानसेन का मूल नाम रामतनु पांडेय था।

अकबर ने तानसेन को ‘कंठामरणवाणीविलास’ की उपाधि प्रदान की थी।

विलास खां जहांगीर के दरबार का प्रमुख संगीतज्ञ था।

माहम अनगा ने दिल्ली के पुराने किले में ‘खैरुल मनजिल’ अथवा ‘खैर उल मनजिल’ नामक मदरसे की स्थापना कराई थी, जिसे ‘मदरसा-ए-बेगम’ भी कहा जाता था।

मुगल कालीन लेखन एवं उनकी पुस्तकें हैं- The writings and his books of the Mughal period are

लेखकपुस्तक
निजामुद्दीन अहमदतबकाते अकबरी
अब्बास खां शरवानीतारीखे शेरशाही
हसन निजामीताजुल मासिर
मिर्जा मोहम्मद काजिमआलमगीरनामा
चन्द्रभान ब्रह्मनचहार चमन
मोतमिद खांइकबालनामा-ए-जहांगीरी

अब्दुल हमीद लाहौरी शाहजहां के शासनकाल का एक राजकीय इतिहासकार था।

उसने अपनी पुस्तक ‘पादशाहनामा’ में शाहजहां कालीन इतिहास का वर्णन किया है।

1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके 63 वर्षीय पुत्र मुअज्जम ( शाह आलम) ने ‘बहादुर शाह’ (प्रथम) के नाम से सत्ता संभाली।

शाहजहां द्वारा बनवाए गए प्रसिद्ध मयूर सिंहासन पर बैठने वाला अंतिम मुगल शासक मुहम्मद शाह (1719-1748 ई.) था।

शाह आलम द्वितीय का कार्यकाल 1759 से 1806 ई. तक था। उसका वास्तविक नाम अली गौहर था।

फारसी मुगलों की राजभाषा थी।

नस्तालीक’ एक फारसी लिपि है, जो मध्यकालीन भारत में प्रयुक्त होती थी।

मुगल बादशाह औरंगजेब नस्तालीक तथा शिकस्त लिखने (Beat write )में निपुण था।

अजमेर की किशनगढ़ रियासत के राजा सावंत सिंह (17वीं- 18वीं शती) का वैष्णव उपनाम नागरीदास (राधा का सेवक ) (Servant of Radha) था।

रामचंद्रिका’ एवं ‘रसिकप्रिया’ हिंदी कविता के रीतिकालीन कवि केशवदास (1555-1617 ई.) की रचनाएं हैं।

चौथे गुरु रामदास के समय में मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें 500 बीघा भूमि दान में दी, जिसमें एक प्राकृतिक तालाब भी था।

सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने 1604 ई. में सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ‘आदि ग्रंथ का संकलन किया।

राजकुमार खुसरो की सहायता करने के कारण जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को फांसी पर चढ़वा दिया।

गुरु अर्जुन देव ने तरनतारन और करतारपुर नामक नगर बसाए तथा मसनद प्रथा चलाई, जिसके अनुसार सिक्खों को अपनी आय का दसवां भाग गुरु को देना पड़ता था।

” सिख संप्रदाय के ‘आदि ग्रंथ’ अथवा ‘गुरु ग्रंथ साहेब’ में सिक्खों के छः गुरुओं, अनेक हिंदू भक्तों तथा कबीर बाबा फरीद, नामदेव और रैदास (Six Gurus, many Hindu devotees and Kabir Baba Farid, Namdev and Raidas) के उपदेश समाहित हैं।