मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी ।
विशाखदत्त कृत ‘मुद्राराक्षस’ से चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।
मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ भी कहा गया है।
धुंडिराज ने मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी।
विलियम जोंस पहले विद्वान थे, जिन्होंने ‘सैंड्रोकोट्स’ की पहचान मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य से की
एरियन तथा प्लूटार्क ने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है।
प्रमुख भारतीय शासक तथा उनकी उपाधियां –Major Indian rulers and their Titles
भारतीयशासक
उपाधियां
बिन्दुसार
अमित्रघात
अशोक
देवनागपिय, प्रियदर्शी
समुद्रगुप्त
कृतान्त परशु
चंद्रगुप्त प्रथम
महाराजाधिराज
चंद्रगुप्त द्वितीय
विक्रमादित्य
हर्षवर्धन
शिलादित्य
कनिष्क
देवपुत्र
जस्टिनने ‘सैंड्रोकोट्स‘ (चंद्रगुप्तमौर्य)(Chandra Gupta Mourya)और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया है।
कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा मौर्य काल में रचित अर्थशास्त्र शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है। अर्थशास्त्र में 15 अभिकरण हैं।
अर्थशास्त्रमें राज्य के सप्तांग सिद्धांत– राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंडएवंमित्र-( King, Amatya, District, Fort, Treasury, Penalty andFriend) की सर्वप्रथम व्याख्या मिलती है।
बिहार में पटन (पाटलिपुत्र ) के समीप बुलंदीबाग एवं कुम्रहार में की गई खुदाई से मौर्य काल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष प्रकाश में आए हैं।
प्रमुख राजवंश, संस्थापक एवं राजधानियां (Major Dynasties, Founders and Capitals):
राजवंश
संस्थापक
संस्थापक
हर्यक वंश
बिम्बिसार
राजगृह
मौर्य वंश
चंद्रगुप्त मौर्य
पाटलिपुत्र
शुंग वंश
पुष्यमित्र शुंग
पाटलिपुत्र
सातवाहन
सिमुक
प्रतिष्ठान
गुप्त वंश
श्रीगुप्त
पाटलिपुत्र
वर्धन वंश
पुष्यभूति
थानेश्वर
गहड़वाल
चंद्रदेव
कन्नौज
पल्लव वंश
सिंह विष्णु
कांचीपुरम
राष्ट्रकूट
दंतिदुर्ग
मान्यखेट
चंद्रगुप्तमौर्य ने दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी।
जैनएवंतमिलसाक्ष्य भी चंद्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय की पुष्टि करते हैं।
चंद्रगुप्तमौर्यनेसिकंदर के साम्राज्य के पूर्वी भाग के शासक सेल्यूकस की आक्रमणकारीसेनाको 305 ई. पू. में परास्त किया था।
269 ई.पू. के लगभग अशोक का राज्याभिषेक हुआ।
अशोक के अभिलेखों में सर्वत्र उसे ‘देवनामपिय‘, ‘देवानांपियदसि‘‘Devanampiya’, ‘Devanam Piyadasi’ कहा गया है जिसका अर्थ है-देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर। पुराणों में उसे ‘अशोकवर्द्धन’ कहा गया है।
दशरथ भी अशोक की तरह ‘देवनामपिय‘ ‘Devanampiya’की उपाधि धारण करता था।
अशोक के अभिलेखों में ‘रज्जुक‘ (rope) नामक अधिकारी का उल्लेख मिलता है।
रज्जुकों की स्थिति आधुनिक जिलाधिकारी जैसी थी, जिसे राजस्व तथा न्याय दोनों क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त थे।
मौर्यकाल में व्यापारिक काफिलों (कारवां) (Caravan) को सार्थवाह की संज्ञा दी गई थी।
सारनाथस्तंभSarnath Pillar का निर्माण अशोक ने कराया था।
बौद्धधर्मग्रहण करने के उपरांत अशोक ने आखेट तथाविहारयात्राएं रोक दीं तथा उनके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ कीं ।
इतिहासकार विंसेट ऑर्थर स्मिथ -Historian Vincent Arthur Smith ने अपनी पुस्तक इंडियन लीजेंड ऑफ अशोक में साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर उपगुप्त के साथ अशोक की धम्म यात्राओं का क्रम इस प्रकार दिया है- लुम्बिनी, कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर और श्रावस्ती।Lumbini, Kapilvastu, Bodh Gaya, Sarnath, Kushinagar and Shravasti.
कालसी, गिरनार और मेरठ के अभिलेखब्राह्मी लिपि में हैं।
अशोक के अभिलेखों का विभाजन 3 वर्गों में किया जा सकता हैं-
शिलालेख,
स्तंभलेख
गुहालेख
अशोक के शिलालेख (Ashoka’s inscriptions):
प्रथम शिलालेख
पशुबलि की निंदा
दूसरा शिलालेख
मनुष्य एवं पशु की चिकित्सा
तीसरा शिलालेख
अधिकारियों का पांचवें वर्ष दौरा
पांचवां शिलालेख
धर्म – महामात्रों की नियुक्ति
छठां शिलालेख
आत्म-नियंत्रण की शिक्षा
ग्यारहवां शिलालेख
धम्म की व्याख्या
तेरहवां शिलालेख
कलिंग युद्ध का वर्णन
प्रमुख भारतीय दर्शन एवं उनके संस्थापक (Major Indian Philosophies and their founders):
दर्शन
संस्थापक
न्याय दर्शन
महर्षि गौतम
सांख्य दर्शन
महर्षि कपिल
मीमांसा दर्शन
महर्षि जैमिनी
योग दर्शन
महर्षि पतंजलि
वैशेषिक दर्शन
महर्षि कणाद
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मीलिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों शाहबाजगढ़ीएवंमानसेहरा
की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है।
तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है।
जेम्सप्रिंसेप James Prinsep को अशोक के अभिलेखों को पढ़ने का श्रेय हासिल किया।
प्राचीन भारत में खरोष्ठीलिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी।
अशोक ने अपने राज्याभिषेककेबीसवेंवर्षलुम्बिनी(Lumbini in the 20th year of the coronation) की यात्र की।
अशोक ने बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण लुम्बिनी ग्राम का – धार्मिक कर माफ कर दिया तथा भू–राजस्व 1/6 सेघटाकर। 8 कर दिया।
अशोककेतेरहवें (XIII) शिलालेखसेकलिंग युद्ध के संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं।
अशोककेदीर्घशिलालेख XII में सभी संप्रदायों के सार की वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु उपाय बता गए हैं।
अशोककेदूसरे (II) एवंतेरहवें (XIII) शिलालेखमेंसंगराज्यों–चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्तएवंकेरलपुत्तसहितताम्रपर्ण
(श्रीलंका) कीसूचनामिलतीहै।
मौर्यशासकअशोककेतेरहवेंशिलालेख से यह ज्ञात होता कि अशोक के पांच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे जिनमें अंतियोक (एटियोकस – II थियोस– सीरियाकाशासक ) तुरमय या तुरमाय (टालेमी II फिलाडेल्फस–मिस्रका राजा अंतकिनी (एंटीगोनसगोनातासमेसीडोनियायामकदूनियाकराजा), मग (साइरीनकाशासक), अलिकसुंदर (एलेक्जेंडरएपाइरसयाएपीरसकाराजा)।
मेगस्थनीज, सेल्यूकसनिकेटर‘ द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज सभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था ।
मेगस्थनीज ने तत्कालीन भारतीय समाज को सात श्रेणियों में विभाजित किया था, जो इस प्रकार हैं – (1) दार्शनिक, (2) कृषक, (3) पशुपालक, (4) कारीगर, (5) योद्धा, (6) निरीक्षकएवं (7) मंत्री
मेगस्थनीज भारतीय समाज में दास प्रथा के प्रचलित होने क उल्लेख नहीं करता है।
प्रांत
राजधानी
उत्तरापथ
तक्षशिला
अवंतिरट्ठ
उज्जयिनी
कलिंग
तोसली
दक्षिणापथ
सुवर्णगिरि
प्राच्य या पूर्वी प्रदेश
पाटलिपुत्र
अशोक के अभिलेखों में मौर्य साम्राज्य के 5 प्रांतों के नाम मिलते हैं-
भाग एवं बलि प्राचीन भारत में राजस्व के खोत थे।
मौर्यमंत्रिपरिषदमें राजस्व एकत्र करने का कार्य समाहर्ता के द्वारा किया जाता था।
अंतपाल सीमा रक्षक या सीमावर्तीदुर्गों की देखभाल करता था, जबकि प्रदेष्टा विषयों या कमिशनरियों का प्रशासक था।
मौर्ययुगीन अधिकारी पौतवाध्यक्ष तौल-मान का प्रभारी था।
पण्याध्यक्ष वाणिज्य विभाग तथा सूनाध्यक्षबूचड़खाने के प्रभारी थे।
मौर्य युग में नगरों का प्रशासननगरपालिकाओं द्वारा चलाया जाता था, जिसका प्रमुख ‘नागरक‘ या ‘पुरमुख्य’ था।
यूनानीलेखकोंनेबिंदुसारको अमित्रोकेडीज कहा है, विद्वानों के अनुसार अमित्रोकेडीज का संस्कृत रूप है अमित्रघात (शत्रुओंकानाशकरनेवाला)।
पुष्यमित्रशुंगने 184 ई.पू. में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके शुंग राजवंश की स्थापना की।
‘वायुपुराणकेअनुसार, अंतिम कण्व शासक सुशर्मा अपने आंध्र जातीय भृत्य सिमुक (सिंधुक) द्वारा मार दिया गया था।
गिरनार क्षेत्र में चंद्रगुप्त मौर्य ने सुदर्शन झील खुदवाई तथा अशोक ने ई.पू. तीसरी शताब्दी में इससे नहरें निकालीं ।
शक क्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में इन दोनों के कार्यों का वर्णन है।