प्राचीन भारत का इतिहास

सिंधु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization)

  • पशुपालन का प्रारंभ (start of animal husbandry) मध्य पाषाण काल में हुआ।
  • पशुपालन के साक्ष्य भारत में आदमगढ़ (Adamgarh )(होशंगाबाद, म.प्र.)  तथा बागोर (Bagore ) (भीलवाड़ा, राजस्थान) से प्राप्त हुए।
  • मध्य पाषाण कालीन महदहा (Mahdaha ) (प्रतापगढ़, उ. प्र.) से हड्डी एवं सींग निर्मित उपकरण प्राप्त हुए।
  • भारत में मानव का सर्वप्रथम साक्ष्य (first evidence of humans ) मध्य प्रदेश के पश्चिमी नर्मदा क्षेत्र से मिला है।
  • नर्मदा क्षेत्र की खोज वर्ष 1982 (Year 1982) में की गई थी।
  • मानव कंकाल के साथ कुत्ते का कंकाल बुर्जहोम (dog skeleton burzahom) (जम्मू-कश्मीर) से प्राप्त हुआ।
  • गर्त आवास के साक्ष्य (Evidence of pit dwelling ) भी बुर्जहोम से प्राप्त हुए।
  • बुर्जहोम (Burzholm)  पुरास्थल की खोज वर्ष 1935 में डी टेरा एवं पीटरसन ने की थी।
  • ‘सर्वप्रथम खाद्यान्नों का उत्पादन (production of food grains)  नवपाषाण काल में प्रारंभ हुआ।
  • ब्लूचिस्तान के कच्छ मैदान स्थित मेहरगढ़ (Mehrgarh) से सर्वप्रथम प्राचीनतम स्थायी जीवन के प्रमाण मिले।
  • चालकोलिथिक युग (Chalcolithic Age ) को ताम्र पाषाण युग के नाम से भी जाना जाता है।
  • ‘नवदाटोली, (‘Navdatoli)मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण ताम्रपाषाणिक पुरास्थल है, जो खारगोन जिले में स्थित है। नवदाटोली का उत्खनन एच.डी. सांकलिया (HD Sankaliya ) ने कराया था।
  •  नवपाषाण कालीन पुरास्थल से ‘राख के टीले’(‘Mounds of Ashes’) कर्नाटक में मैसूर के पास वेल्लारी जनपद में स्थित संगनकल्लू (Sangankallu ) नामक स्थान से प्राप्त हुए।
  • गेरूवर्णी गैरिक मृद्भांड पात्र (OCP) के साक्ष्य हस्तिनापुर (Hastinapur ) एवं अतरंजीखेड़ा (Ataranjikheda )से प्राप्त हुए हैं।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India )संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक विभाग है।

सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उत्खननकर्ता/ खोजकर्ता

(Major sites and excavators/discoverers of Indus Valley Civilization)

प्रमुख स्थल (Major Sites)उत्खननकर्ता/खोजकर्ता (Excavator/Explorer)वर्ष (Year)
हड़प्पादयाराम साहनी1921
मोहनजोदड़ोराखालदास बनर्जी1922
रोपड़यज्ञदत्त शर्मा1953-55
कालीबंगाबी.बी. लाल1961-69
रंगपुरएम. एस. वत्स1934-35
सुरकोटदाजे. पी. जोशी1964
बनावलीआर. एस. विष्ट1974-77
आलमगीरपुरयज्ञदत्त शर्मा1958
कोटदीजीफजल अहमद खां1957-58
सुत्कानडोरऑरेल स्टाइन1927
माण्डाजे.पी. जोशी1982
बालाकोटजॉर्ज एफ. डेल्स1973-76
धौलावीराजे.पी. जोशी1967-68
मिताथलसूरजभान1968
राखीगढ़ीसूरजभान1969
  • भारत में सर्वप्रथम 1861 ई. में एलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham in 1861 AD )को पुरातत्व सर्वेक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • लॉर्ड कर्जन (Lord Curzon )के समय वर्ष 1901 में इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रूप में केंद्रीकृत कर जॉन मार्शल (John Marshall ) को इसका प्रथम महानिदेशक बनाया गया।
  • राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, जिसका नाम बदलकर ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय'(‘Indira Gandhi National Human Museum’) कर दिया गया है, भोपाल (म.प्र.) में स्थित है।
  • सैंधव सभ्यता (Indus Valley Civilization) आद्य ऐतिहासिक काल की सभ्यता है।
  • पुरातात्विक साक्ष्यों में अलग-अलग कालों में पाए गए मृद्मांड (clay soil )ही सिंधु घाटी सभ्यता को आर्यों से पूर्व का सिद्ध करते हैं।
  • काले रंग की आकृतियों से चित्रित लाल मृद्भांड (Painted Red Ware)जहां हड़प्पा सभ्यता की विशेषता हैं, वहीं धूसर एवं चित्रित घूसर मृद्मांड (gray and painted gray clay) (जो बाद के हैं) आर्यों से संबंधित माने गए हैं।

हड़प्पा कालीन नदियों के किनारे बसे नगर

(Harappan period cities situated on the banks of rivers)

नगर (City)नदी / सागर तट (River/Sea Shore)
हड़प्पारावी
मोहनजोदड़ोसिंधु
रोपड़सतलज
कालीबंगाघग्घर
लोथलभोगवा
सुत्कानडोरदाश्त
सोत्काकोहशादीकौर
आलमगीरपुरहिन्डन
रंगपुरभादर
कोटदीजीसिंधु
कुणालसरस्वती
चन्हूदड़ोसिंधु
बनावलीसरस्वती
माण्डाचिनाव
भगवानपुरासरस्वती
दैमाबादप्रवरा
आमरीसिंधु
राखीगढ़ीघग्घर
  • सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization ) नगरीय थी, जबकि वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization)ग्रामीण थी।
  • पुरातात्विक खुदाई हड़प्पा संस्कृति (Harappan culture) की जानकारी का प्रमुख स्रोत है।
  • ‘हड़प्पावासियों को तांबा, कांसा, स्वर्ण और चांदी (copper, bronze, gold and silver) की जानकारी थी।
  • प्रारंभिक हड़प्पा सभ्यता में पैर से चालित चाक का प्रयोग (use of foot wheel) किया जाता था।
  • परिपक्व हड़प्पा के दौर में हाथ से चालित चाकों का (use of hand wheel) प्रयोग किया जाने लगा था।
  • मूर्ति पूजा का प्रारंभ (Beginning of idol worship) पूर्व आर्य काल से माना जाता है।
  • हड़प्पा संस्कृति की मुहरों एवं टेराकोटा (seals and terracotta) कलाकृतियों में गाय का चित्रण नहीं मिलता जबकि हाथी, गैंडा, बाघ, हिरण, भेड़ा आदि का अंकन मिलता है।
  • हड़प्पा सभ्यता के स्थलों में से खंभात की खाड़ी के निकट स्थित लोथल से गोदीबाड़ा के साक्ष्य (Evidence of Dockyard from Lothal) मिले हैं।
  • राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे स्थित कालीबंगा से जुते हुए खेत के साक्ष्य (evidence of plowed fields) मिले हैं।
  • गुजरात के धौलावीरा (Dholavira) से हड़प्पा लिपि के बड़े आकार के 10 चिह्नों वाला एक शिलालेख (an inscription with 10 symbols)मिला है।
  • हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित बनावली (Bnawali) से पकी मिट्टी की बनी हुई हल की प्रतिकृति मिली है।
  • सैंधव सभ्यता के महान स्नानागार के साक्ष्य मोहनजोदड़ो (Evidence of the Great Bath Mohenjodaro) से प्राप्त हुए हैं।
  • सैंधव सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता (bronze age civilization) थी तथा यहां के लोग लोहे से परिचित नहीं थे।
  • राखीगढ़ी (Rakhigarhi) हरियाणा के हिसार जिले में घग्घर नदी (Ghaggar River) पर स्थित है।
  • राखीगढ़ी स्थल की खोज वर्ष 1969 में सूरजमान (Surajman in the year 1969) ने की थी।
  • मोहनजोदड़ो (Mohenjodaro) तथा चन्हूदड़ो (Chanhudaro) दोनों सिंध प्रांत में तथा सुरकोटदा (surkotada) गुजरात में स्थित हैं।
  • रंगपुर (Rangpur) गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में भादर नदी (Bhadar River)के पास स्थित है।
  • रंगपुर (Rangpur)  गुजरात के सौराष्ट्र (Saurashtra) क्षेत्र में है।
  • रंगपुर में धान की भूसी के ढेर (paddy straw heap) मिले हैं।
  • रंगपुर की खुदाई वर्ष 1953-1954 में ए. रंगनाथ राव (A. Ranganatha Rao) द्वारा की गई थी।
  • रंगपुर से प्राक्- हड़प्पा, हड़प्पा और उत्तर- हड़प्पाकालीन सम्यता के साक्ष्य (Evidence of Pre-Harappan, Harappan and Post-Harappan civilization) मिले हैं। रंगपुर से कच्ची ईंट के दुर्ग, नालिया, मृदभांड मिले हैं।
  • दधेरी (Dadheri) एक परवर्ती पुरास्थल है, जो पंजाब प्रांत के लुधियाना जिले में गोविंदगढ़ के पास स्थित है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार उत्तर में झेलम नदी के पूर्वी तट से दक्षिण में यमुना की सहायक नदी हिंडन के तट तक (From the east bank of the Jhelum river in the north to the banks of the Hindon river, a tributary of the Yamuna, in the south) माना जाता है।
  • सिंधु घाटी के लोग पशुपति शिव (Pashupati Shiva) की पूजा भी करते थे
  • इसका प्रमाण मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर (seal) है, जिस पर योगी की आकृति बनी है।
  • उस योगी के दाई ओर बाघ (tiger on right side of yogi) और हाथी तथा बाई ओर गैंडा एवं भैंसा चित्रित किए गए हैं।
  • योगी के सिर पर एक त्रिशूल जैसा आभूषण (trident ornament) है तथा इसके तीन मुख हैं।
  • मार्शल महोदय ने इसे रूद्र शिव से संबंधित किया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देश पर वर्ष 1921 में दयाराम साहनी (Dayaram Sahni in 1921) ने पंजाब (पाकिस्तान) के तत्कालीन मांटगोमरी सम्प्रति शाहीवाल जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित हड़प्पा के टीले की खुदाई की
  • वर्ष 1922 में राखालदास बनर्जी (Rakhaldas Banerjee in the year 1922) ने सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिने तट पर स्थित मोहनजोदड़ो के टीलों का पता लगाया।
  • सर्वप्रथम मानव द्वारा तांबा धातु का प्रयोग (use of copper metal) किया गया।
  • वस्त्रों के लिए कपास (Cotton) का उत्पादन सर्वप्रथम भारत में किया गया।
  • सिंधु घाटी (Indus Valley) में कपास के उत्पादन का प्रमाण मिला।
  • मोहनजोदड़ो (Mohenjodaro) (वर्तमान पाकिस्तान के लरकाना जिले में स्थित) वे उत्खनन से कपास के सूत की प्राप्ति की गई थी। मोहनजोदड़ो से कूबड़ वाले बैल (ककुदमान वृषभ) की आकृति वाली मुहर प्राप्त हुई है।
  • मोहनजोदड़ो से कूबड़ वाले बैल (Humped bull) (ककुदमान वृषभ) की आकृति वाली मुहर प्राप्त हुई है।
  • सिंधु सभ्यता की मुहरों पर सर्वाधिक अंकन एक श्रृंगी बैलों (Horned bulls) का है उसके बाद कूबड़ वाले बैल(Humped bull)  का है।
  • कालीबंगा के मृण-पट्टिका पर एक ओर दोहरे सींग वाले देवता (double horned god) का अंकन है।
  •  दूसरी ओर बकरी को दिखाया गया है, जिसे एक पुरुष ला रहा (bringing a man) है।
  • सिधु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी।
  • मिस्र की सभ्यता का विकास नील नदी (Nile River) की द्रोणि में हुआ।
  • मिस्र को नील नदी का उपहार (gift of the river nile) कहा जाता है, क्योंकि इस नदी के अभाव में यह भू-भाग रेगिस्तान होता ।
  • सुमेरिया सभ्यता के लोग प्राचीन विश्व के प्रथम लिपि – आविष्कर्ता (First Script – Inventor) थे।
  • सुमेरिया की क्यूनीफार्म लिपि को सामान्यतः प्राचीनतम लिपि (oldest script) माना जाता है।
  • सिंधु सभ्यता की लिपि भाव चित्रात्मक थी। यह लिपि दाएं से बाएं ओर लिखी जाती थी।

प्रमुख धातु एवं प्राप्ति स्थल

(Major metals and mining sites)

कच्चा माल (raw material)स्थल (venue)
तांबाखेतड़ी (राजस्थान) एवं ब्लूचिस्तान
लाजवर्दबदख्शां (अफगानिस्तान)
फिरोजा, टिनईरान
चांदीराजस्थान की जावर एवं अजमेर खानों से, अफगानिस्तान एवं ईरान
सीसाअफगानिस्तान
शिलाजीतहिमालय
गोमेदगुजरात

वैदिक संस्कृति

आर्य संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ श्रेष्ठ (Best) या कुलीन(noble) है।

‘क्लासिकीय संस्कृति में ‘आर्य’ शब्द का अर्थ होता है- एक उत्तम व्यक्ति।

वेद चार(four) हैं- सामवेद, यजुर्वेद, ऋग्वेद, , तथा अथर्ववेद।

वेदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऋग्वेद(Rigveda) है तथा इसे सर्वाधिक प्राचीन (Most ancient) भी माना जाता है।

ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद को वेदत्रयी (Vedatrayi) या त्रयी(Trayi) कहा जाता है।

‘वर्ण’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद(Rigveda) में मिलता है।

प्रारंभ में हम तीन वर्णों का उल्लेख पाते हैं- ब्रह्म, क्षत्र तथा विश (Brahma, kshatra and Vish)

ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम शूद्र(Shudra) शब्द मिलता है।

यहां चारों वर्णों की उत्पत्ति एक विराट पुरुष(Great man) के विभिन्न अंगों से बताई गई है।

अथर्ववेद औषधियों (Medician)से संबंधित है।

ऋग्वेद में ईश्वर महिमा (देवताओं की स्तुति), यजुर्वेद में कर्मकांड (बलिदान विधि) एवं सामवेद में संगीत का विस्तृत उल्लेख है।

ऋग्वेद में स्तोत्र एवं प्रार्थनाएं हैं, इसमें कुल 1028 सूक्त (1028  hymn)हैं।

ऋग्वेद में कुल 10 मंडल (10 Board) हैं।

ऋग्वेद के दूसरे (secondly)एवं सातवें मंडल (Seventh division )की ऋचाएं सबसे प्राचीन हैं।

पहला और दसवां मंडल नवीनतम (latest) है।

ऋग्वेद के नौवें मंडल के सभी 114 सूक्त सोम(Mon)को समर्पित हैं।

अथर्ववेद में कुल 20 अध्याय एवं 730 सूक्त तथा 5987 मंत्र हैं, इनमें 1200 मंत्र ऋग्वेद से लिए गए। इसमें तंत्र-मंत्र एवं वशीकरण के संदर्भ में साक्ष्य हैं।

यज्ञसंबंधी विधि-विधानों (Rules and ragulation related to ‘Yagya’) का पता यजुर्वेद से चलता है।

यजुर्वेद के दो भाग हैं-शुक्ल यजुर्वेद,(Shukla yajurveda) जो केवल पद्य में है तथा कृष्ण यजुर्वेद, (Krishna Yajurved ) जो कि पद्य और गद्य दोनों में है।

शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता ( Vajasaneyi sanghita )भी कहा जाता है।

यजुर्वेद का अंतिम भाग ईशोपनिषद (Ishopanishad) है, जिसका संबंध याज्ञिक अनुष्ठान से न होकर आध्यात्मिक चिंतन से है।

सामवेद में कुल 1875ऋचाएं(Verses) हैं, जिनमें से 75 जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार 99 को छोड़कर शेष सभी ॠग्वेद में भी उपलब्ध हैं।

सामवेद की 3 मुख्य शाखाएं हैं- 1. कौमुथीय, 2. राणायनीय तथा 3. जैमिनीय

उपनिषद (Upnishad) दर्शन पर आधारित पुस्तकें हैं।

उपनिषद को वेदांत (Vedanta) भी कहा जाता है।

उपनिषदों में प्रथम बार मोक्ष की चर्चा (discussion of salvation )मिलती है।

कठोपनिषद में यम (Yam) और नचिकेता का संवाद (Nachiketa’s dialogue ) उल्लिखित है।

उपनिषदों में कुछ क्षत्रिय राजाओं (kshatriya kings )के उल्लेख प्राप्त होते हैं।

विदेह के राजा जनक, पांचाल के राजा प्रवाहणजाबालि केकय के राजा अश्वपति और काशी के राजा अजातशत्रु प्रमुख थे।

वैदिक संहिताओं का सही क्रम है- वैदिक संहिताएं, ब्राह्मण, आरण्यक उपनिषद (Vedic Samhitas, Brahmana, Aranyaka Upanishad )|

सिंधु नदी (Indus River )का ऋग्वैदिक काल में सर्वाधिक महत्व था, इसी कारण इसका उल्लेख ऋग्वेद में सर्वाधिक हुआ है।

सरस्वती (Saraswati )(ऋग्वैदिक आर्यों की सर्वाधिक पवित्र नदी थी।

सरस्वती को मातेतमा‘, ‘देवीतमाएवं नदीत्मा (‘Matetma’, ‘Devitama’ and ‘Naditma’)कहा गया है।

ऋग्वेद में उल्लिखित कुभा (काबुल), क्रुमु (कुर्रम ), गोमती (गोमल) एवं सुवास्तु (स्वात) नदियां अफगानिस्तान में बहती थीं।

ऋग्वैदिक नदियांआधुनिक नाम
दृसद्धती
शतुद्रि
परुष्णी
कुभा
वितस्ता
अस्किनी
विपाशा
गोमती
कुमु
सदानीरा
सुवास्तु
चितंग या घग्घर
सतलज
रावी
काबुल
झेलम
चिनाव
व्यास
गोमल
कुर्रम
गंडक
स्वात

आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) का प्रचलन वेदोत्तर काल में हुआ।

छांदोग्य उपनिषद (chhandogya upanishad )में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख है, जबकि जाबालोपनिषद (Jabalopanishad )में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।

‘वरुण’ देवता को वैदिक सभ्यता में नैतिक व्यवस्थाका प्रधान (head of ‘moral order’) माना जाता था।

इसी कारण वरुण को ऋतस्पगोपा (‘Ritaspagopa’)भी कहा जाता था।

बृहस्पति को वैदिक देवताओं का पुरोहित (priest of the gods )माना जाता था।

वैदिक साहित्य में कई ऐसी विदुषी स्त्रियों (wise women )का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने वेद मंत्रों की रचना की थी। यथा – अपाला, घोषा, विश्ववारा, लोपामुद्रा (Apala, Ghosha, Vishvavara, Lopamudra) आदि ।

लोपामुद्रा अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं।

वैदिक काल में सोने के हार को निष्क (‘Nishk’) कहा जाता था।

बौद्ध जातक (Buddhist Jathakas) में तीन प्रकार के स्वर्ण सिक्कों का उल्लेख मिलता है।

प्रथम क्रम में निशाका( Nishaka) दूसरे क्रम में सुवर्ण (Suvarna) और तीसरे क्रम में मशाका (Mashaka)।

1400 ई.पू. के बोगजकोई (एशिया माइनर ) के अभिलेख में ऋग्वैदिक काल के देवताओं (इंद्र, वरुण, मित्र तथा नासत्य ) का उल्लेख मिलता है।

बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak ) ने आर्यों के आदि देश के बारे में लिखा था।

शतपथ ब्राह्मण (Shatapath Brahmin )यजुर्वेद का ब्राह्मण है।

पुरुष मेघ (Male cloud )का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में हुआ है।

गोत्र (Gotra )शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में हुआ था।

ऋग्वैदिक काल में यज्ञ की प्रधानता (primacy of sacrifice )थी।

ऋग्वैदिक आर्यों के पंचजनों (panchajanas )में यदु, दुहा, पुरु, अनु, सुर्वशु शामिल थे।

ऋग्वेद में उल्लिखित यव (‘yaw’)शब्द का जौ(barley) से तादात्म्य स्थापित किया गया है।

वैदिक काल में सभा (gathering )एवं समिति (Committee )  नामक दो संस्थाएं राजा की निरंकुशता पर नियंत्रण रखती थीं।

सभा श्रेष्ठ एवं सभ्रांत लोगों की संस्था थी, जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी।

अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां (Prajapati’s two daughters )कहा गया है।

ऋग्वेद में इंद्र (Indra )का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया। जाता है, जिसे 250 सूक्त समर्पित हैं।

ऋग्वेद में अग्नि (fire) को 200 सूक्त समर्पित हैं और वह इस काल का दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता है, तीसरा स्थान वरुण (Varun )का है जो समुद्र का देवता एवं ऋत का नियामक माना जाता है।

गायत्री मंत्र (‘Gayatri Mantra’ )ऋग्वेद में उल्लिखित है। इसके रचनाकार विश्वामित्र हैं।

गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है।

पुराणों की संख्या 18 है।

पुराणों की रचना लोमहर्ष ऋषि (Lomaharsh Rishi )तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा (Ugrashrava )द्वारा की गई थी।

पुराणों में भविष्यत काल शैली (future tense style )में कलियुग के राजाओं क विवरण मिलता है।

सत्यमेव जयते (‘Satyamev Jayate’ ) शब्द मुंडकोपनिषद से लिया गया है, जिसक अर्थ है – सत्य की ही विजय होती है।’

यह भारत के राजचिह्न (coat of arms) पर भी अंकित है।

ऋग्वेद (Rigveda )की मूल लिपि ब्राह्मी थी।

ऐतरेय तथा कौषीतकी ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ (Brahmin texts )हैं।

वैदिक काल में गाय को अघन्या‘ (न मारे जाने योग्य) कहा जाता था।

बौद्ध धर्म : गौतम बुद्ध (जीवनी एवं शिक्षएं) Buddhism : Gautam Buddha (Biography and Teachings)

•     गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी (Lumbini) में 563 पू. में हुआ था।

•     बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्यगण के प्रधान थे तथा माता माय देवी कोलिय गणराज्य (कोलिय वंश) Koliya dynasty की कन्या थीं।

•     गौतम बुद्ध बचपन में सिद्धार्थ (Siddharth) के नाम से जाने जाते थे।

•     29 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गृह त्याग दिया, जिसे बौद्ध ग्रंथ में महाभिनिष्क्रमण (Great Confluence) की संज्ञा दी गई।

•     मौर्य वंशीय शासक अशोक के रुम्मिनदेई अभिलेख (Rummindei Records) से सूचन मिलती है कि शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ था।

•     महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया इस प्रथम उपदेश को ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’  (Dharmachakrapravartana ) कहा जाता है।

•     महात्मा बुद्ध ने मल्ल गणराज्य की राजधानी कुशीनारा (Kushinara was the capital of the Malla Republic) में 483 ई.पू. में 80 वर्ष की अवस्था में शरीर त्याग दिया थाI

•     बौद्ध ग्रंथों में इसे ‘महापरिनिर्वाण’ (Maha Parinirvana) कहा जाता है। छ वर्षों की कठिन साधना के पश्चात 35 वर्ष की अवस्था में वैशाख पूर्णिमा की रात्रि को एक पीपल के वृक्ष (peepal tree ) के नीचे गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

•     ज्ञान प्राप्ति के बाद यह ‘बुद्ध’ ‘Buddha) कहलाए। बुद्ध के सबसे अधिक शिष्य कोसल (Kosal ) राज्य में हुए थे।

•     महात्मा बुद्ध वत्सराज उदयन (Vatsaraj Udyan ) के शासनकाल में कौशाम्बी आए थे I

•     प्रथम बौद्ध संगीति (first buddhist council) (प्रथम बौद्ध परिषद) बुद्ध की मृत्यु के तत्काल बाद राजगृह की सप्तपर्ण गुफा में हुई।

•     ‘अजातशत्रु (Ajatashatru ) महात्मा बुद्ध के समकालीन शासक थे।

•     प्रथम बौद्ध संगीति (First Buddhist music) की अध्यक्षता महाकस्सप (presiding greatness ) या महाकश्यप ने की।

•     द्वितीय बौद्ध संगीति (second buddhist music) का आयोजन कालाशोक (शिशुनाग वंशी) के शासनकाल में किया गया। बुद्ध की मृत्यु के 100 वर्ष बाद वैशाली में

•     तृतीय बौद्ध संगीति (Third Buddhist Sangeet) मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में हुई थी।

•     ” मोग्गलिपुत्त तिस्स (Moggaliputta Tiss) तृतीय बौद्ध संगीति के अध्यक्ष थे।

•     चतुर्थ बौद्ध संगीति (Fourth Buddhist Sangeet) कनिष्क के शासनकाल में कुंडलवन (कश्मीर)में संपन्न हुई।

•     इसकी अध्यक्षता वसुमित्र एवं उपाध्यक्षता अश्वघोष ने की। देवदत्त, बुद्ध का चचेरा भाई था।

•     देवदत्त (Devadatta) पहले उनका अनुगत बना और फिर उनका विरोधी बन गया।

•     सर्वप्रथम बुद्ध ने जिन चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया, वे इस प्रकार हैं- दुःख, दुःख समुदाय, दुःख निरोध तथा दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा।

•     महात्मा बुद्ध कर्म सिद्धांत (karma theory ) में विश्वास करते थे।

•     अपने प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर बुद्ध ने वैशाली में स्त्रियों को बौद्ध संघ में भिक्षुणी के रूप में प्रवेश की अनुमति (Women allowed to enter Buddhist Sangha as nuns in Vaishali) प्रदान की थी।

•     बौद्ध संघ में सर्वप्रथम शामिल होने वाली स्त्री महाप्रजापति गौतमी (Mahaprajapati Gautami) थीं।

•     ‘ ‘त्रिपिटक’ (Tripitak) बौद्ध ग्रंथों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

•     बुद्ध की मृत्यु के बाद उनकी शिक्षाओं को संकलित कर तीन भागों में बांटा गया, इन्हीं को त्रिपिटक कहते हैं। ये हैं- विनय पिटक Vinay Pitaka (संघ संबंधी नियम तथा आचार की शिक्षाएं), सुत्त पिटक Sutta Pitaka (धार्मिक सिद्धांत) तथा अभिधम्म पिटक Abhidhamma Pitaka (दार्शनिक सिद्धांत)।

•     थेरीगाथा बौद्ध साहित्य (Therigatha Buddhist literature)  है, इसमें 32 बौद्ध कवयित्रियों की कविताएं संकलित हैं।

•     बिहार में राजगीर की पहाड़ियों ( 400 मीटर की ऊंचाई) पर स्थित ‘शांति स्तूप’ विश्व का सबसे ऊंचा कहा जाने वाला ‘विश्व शांति स्तूप’ (World Peace Stupa) है।

•     भरहुत (Bharhut ) एवं सांची के स्तूप (sanchi stupa) की स्थापना मौर्य शासक अशोक के शासनकाल में हुई थी।

•     अमरावती स्तूप (Amaravati Stupa) का निर्माण सातवाहन के समय में हुआ था।

•     सातवाहनों की राजधानी प्रतिष्ठान या पैठन थी। इनकी प्रारंभिक राजधानी अमरावती (Amravati) मानी जाती है।

•     महास्तूप (Mahastupa) का निर्माण अशोक के समय में ईंटों की सहायता से हुआ था, जिसके चारों ओर काष्ठ की वेदिका बनी थी।

•     शुंगकाल में उसे पाषाण पट्टिकाओं (stone tablets) से जड़ा गया तथा वेदिका भी पत्थर की ही बनाई गई। सातवाहन युग में वेदिका के चारों दिशाओं में चार तोरण (four pylons) लगा दिए गए।

•     बौद्ध दर्शन में क्षणिकवाद (Transcendentalism) को स्वीकार किया गया है।

•     गौतम बुद्ध को ‘एशिया के ज्योति पुंज’ ‘Light of Asia) के तौर पर जाना जाता है।

•     गौतम बुद्ध के जीवन पर एडविन अर्नाल्ड ने ‘Light of Asia’ ‘एशिया की रोशनी) नामक काव्य पुस्तक की रचना की थी। यह लंदन में 1879 ई. में प्रकाशित हुई थी।

•     ‘Light of Asia’ पुस्तक ललितविस्तार (Lalitvistar) के विषय-वस्तु पर आधारित है।

•     कुषाण काल में ही गांधार (Gandhara) एवं मथुरा कला शैली (mathura art style) के तहत बुद्ध एवं बोधिसत्वों की बहुसंख्यक मूर्तियों का (बैठी एवं खड़ी स्थिति में निर्माण हुआ।

•     भूमिस्पर्श मुद्रा (Ground touch posture) की सारनाथ की बुद्ध मूर्ति गुप्तकाल से संबंधित है।

•     बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में वर्णित षोडश महाजनपदों में से ‘मल्ल’ एक महाजनपद था।

•     नागार्जुन (Nagarjuna) कनिष्क के दरबार की एक महान विभूति था। उसकी तुलना मार्टिन लूथर से की जाती है।

•     कनिष्क के दरबार में वसुमित्र अश्वघोष, चरक (Vasumitra Ashvaghosha, Charak) भी थे।

•     ह्वेनसांग (Hiuen Tsang) ने उसे ‘संसार की चार मार्गदर्शक शक्तियों में से एक कहा है।

हर्षवर्द्धन (Harshvardhan)

•     हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज (Thaneshwar to Kannauj) स्थानांतरित की।

•     हर्ष के समय प्रति पांचवें वर्ष प्रयाग के संगम क्षेत्र में। समारोह का आयोजन किया जाता था, जिसे ‘महामोक्ष परिषद (Mahamoksha Parishad) कहा गया है।

•     ह्वेनसांग स्वयं छठें समारोह में उपस्थित था।

•     हर्षवर्धन ( Harsh Vardhan ) के समय की सर्वप्रमुख घटना चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आगमन की है।

•     अपनी भारत यात्रा के ऊपर उसने एक ग्रंथ लिखा जिसे ‘सी. यू-की’ ( C. U-ki ) कहा जाता है। इसने भीनमाल की भी यात्रा की थी।

•     ह्वेनसांग को ‘यात्रियों का राजकुमार’ (Prince of Travellers) कहा जाता है।

•     637 ई. में ह्वेनसांग नालंदा विश्वविद्यालय गया। इस समय यह के कुलपति आचार्य शीलभद्र (Acharya Shilbhadra) थे।

•     ह्वेनसांग के अनुसार, मथुरा (Mathura) उस समय सूती वस्त्रों के लि प्रसिद्ध था, जबकि वाराणसी रेशमी वस्त्रों के लिए (Varanasi for silk clothes) प्रसिद्ध

•     प्राचीनकालीन चीनी लेखकों ने भारत का उल्लेख ‘विन् (Yintu) तथा ‘थिआन-तु’ (Thian-tu) नाम से किया है।

-मौर्य वंश सम्राट अशोक-Maurya Dynasty Emperor Ashoka

-मौर्य राजवंश 323-184 ई.पू. तक था।

-मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी ।

– विशाखदत्त कृत ‘मुद्राराक्षस’ से चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।

-मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ भी कहा गया है।

-धुंडिराज ने मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी।

-विलियम जोंस पहले विद्वान थे, जिन्होंने ‘सैंड्रोकोट्स’ की पहचान मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य से की

-एरियन तथा प्लूटार्क ने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है

प्रमुख भारतीय शासक तथा उनकी उपाधियां – Major Indian rulers and their titles

भारतीय शासकउपाधियां
बिन्दुसारअमित्रघात
अशोकदेवनागपिय, प्रियदर्शी
समुद्रगुप्तकृतान्त परशु
चंद्रगुप्त प्रथममहाराजाधिराज
चंद्रगुप्त द्वितीयविक्रमादित्य
हर्षवर्धनशिलादित्य
कनिष्कदेवपुत्र

जस्टिन ने ‘सैंड्रोकोट्स’ (चंद्रगुप्त मौर्य) (Chandra Gupta Mourya)और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया है।

कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा मौर्य काल में रचित अर्थशास्त्र शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है। अर्थशास्त्र में 15 अभिकरण हैं।

अर्थशास्त्र में राज्य के सप्तांग सिद्धांत– राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंड एवं मित्र  -( King, Amatya, District, Fort, Treasury, Penalty and Friend) की सर्वप्रथम व्याख्या मिलती है।

-बिहार में पटन (पाटलिपुत्र ) के समीप बुलंदीबाग एवं कुम्रहार में की गई खुदाई से मौर्य काल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष प्रकाश में आए हैं।

                          –प्रमुख राजवंश, संस्थापक एवं राजधानियां-

राजवंश
हर्यक वंश    
मौर्य वंश
शुंग वंश
सातवाहन
गुप्त वंश
वर्धन वंश
गहड़वाल
पल्लव वंश राष्ट्रकूट
  संस्थापक
बिम्बिसार
चंद्रगुप्त मौर्य
पुष्यमित्र शुंग
सिमुक
श्रीगुप्त
पुष्यभूति
चंद्रदेव सिंह
विष्णु
दंतिदुर्ग
राजधानी
राजगृह
पाटलिपुत्र
पाटलिपुत्र
प्रतिष्ठान
पाटलिपुत्र
थानेश्वर
कन्नौज
कांचीपुरम
मान्यखेट

-चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी।

जैन एवं तमिल साक्ष्य भी चंद्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय की पुष्टि करते हैं।

– चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के साम्राज्य के पूर्वी भाग के शासक सेल्यूकस की आक्रमणकारी सेना को 305 ई. पू. में परास्त किया था।

-269 ई.पू. के लगभग अशोक का राज्याभिषेक हुआ।

– अशोक के अभिलेखों में सर्वत्र उसे ‘देवनामपिय’, ‘देवानां पियदसि’ ‘Devanampiya’, ‘Devanam Piyadasi’ कहा गया है जिसका अर्थ है-देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर। पुराणों में उसे ‘अशोकवर्द्धन’ कहा गया है।

-दशरथ भी अशोक की तरह ‘देवनामपिय’ ‘Devanampiya’की उपाधि धारण करता था।

-अशोक के अभिलेखों में ‘रज्जुक‘ (rope) नामक अधिकारी का उल्लेख मिलता है।

-रज्जुकों की स्थिति आधुनिक जिलाधिकारी जैसी थी, जिसे राजस्व तथा न्याय दोनों क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त थे।

-मौर्यकाल में व्यापारिक काफिलों (कारवां) (Caravan) को सार्थवाह की संज्ञा दी गई थी।

सारनाथ स्तंभ Sarnath Pillar का निर्माण अशोक ने कराया था।

बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत अशोक ने आखेट तथा विहार यात्राएं रोक दीं तथा उनके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ कीं ।

इतिहासकार विंसेट ऑर्थर स्मिथ -Historian Vincent Arthur Smith ने अपनी पुस्तक इंडियन लीजेंड ऑफ अशोक में साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर उपगुप्त के साथ अशोक की धम्म यात्राओं का क्रम इस प्रकार दिया है- लुम्बिनी, कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर और श्रावस्ती। Lumbini, Kapilvastu, Bodh Gaya, Sarnath, Kushinagar and Shravasti.

कालसी, गिरनार और मेरठ के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं।

-अशोक के अभिलेखों का विभाजन 3 वर्गों में किया जा सकता हैं।

 (1) शिलालेख, (2) स्तंभलेख तथा (3) गुहालेख ।

        अशोक के शिलालेख- Ashoka’s inscriptions

प्रथम शिलालेख
दूसरा शिलालेख
तीसरा शिलालेख
छठां शिलालेख
पांचवां शिलालेख
छठां शिलालेख
ग्यारहवां शिलालेख तेरहवां शिलालेख
पशुबलि की निंदा
मनुष्य एवं पशु की चिकित्सा
अधिकारियों का पांचवें वर्ष दौरा  
धर्म- महामात्रों की नियुक्ति  
आत्म-नियंत्रण की शिक्षा  
धम्म की व्याख्या
कलिंग युद्ध का वर्णन

प्रमुख भारतीय दर्शन एवं उनके संस्थापक- Major Indian philosophies and their founders

      दर्शन
न्याय दर्शन  
सांख्य दर्शन
मीमांसा दर्शन
योग दर्शन
वैशेषिक दर्शन
  संस्थापक
महर्षि गौतम
महर्षि कपिल
महर्षि जैमिनी
महर्षि पतंजलि
महर्षि कणाद

-अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा

की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है।

तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है।

जेम्स प्रिंसेप James Prinsep को अशोक के अभिलेखों को पढ़ने का श्रेय हासिल किया।

– प्राचीन भारत में खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी।

-अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष लुम्बिनी( Lumbini in the 20th year of the coronation) की यात्र की।

– अशोक ने बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण लुम्बिनी ग्राम का – धार्मिक कर माफ कर दिया तथा भू-राजस्व 1/6 से घटाकर । 8 कर दिया।

अशोक के तेरहवें (XIII) शिलालेख से कलिंग युद्ध के संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं।

अशोक के दीर्घ शिलालेख XII में सभी संप्रदायों के सार की वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु उपाय बता गए हैं।

अशोक के दूसरे (II) एवं तेरहवें (XIII) शिलालेख में संग राज्यों-चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त एवं केरलपुत्त सहित ताम्रपर्ण

(श्रीलंका) की सूचना मिलती है

-मौर्य शासक अशोक के तेरहवें शिलालेख से यह ज्ञात होता कि अशोक के पांच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे जिनमें अंतियोक (एटियोकस – II थियोस- सीरिया का शासक ) तुरमय या तुरमाय (टालेमी II फिलाडेल्फस-मिस्र का राजा अंतकिनी (एंटीगोनस गोनातास मेसीडोनिया या मकदूनिया क राजा), मग (साइरीन का शासक), अलिक सुंदर (एलेक्जेंडर एपाइरस या एपीरस का राजा)।

मेगस्थनीज, सेल्यूकस निकेटर’ द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज सभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था ।

-मेगस्थनीज ने तत्कालीन भारतीय समाज को सात श्रेणियों में विभाजित किया था, जो इस प्रकार हैं – (1) दार्शनिक, (2) कृषक, (3) पशुपालक, (4) कारीगर, (5) योद्धा, (6) निरीक्षक एवं (7) मंत्री

मेगस्थनीज भारतीय समाज में दास प्रथा के प्रचलित होने क उल्लेख नहीं करता है।

-अशोक के अभिलेखों में मौर्य साम्राज्य के 5 प्रांतों के ना मिलते हैं-

      प्रांत
उत्तरापथ
अवंतिरट्ठ
कलिंग
दक्षिणापथ
प्राच्य या पूर्वी प्रदेश
राजधानी
तक्षशिला
उज्जयिनी
तोसली
सुवर्णगिरि
पाटलिपुत्र

 -भाग एवं बलि प्राचीन भारत में राजस्व के खोत थे।

 –मौर्य मंत्रिपरिषद में राजस्व एकत्र करने का कार्य समाहर्ता के द्वारा किया जाता था।

 – अंतपाल सीमा रक्षक या सीमावर्ती दुर्गों की देखभाल करता था, जबकि प्रदेष्टा विषयों या कमिशनरियों का प्रशासक था।

 – मौर्ययुगीन अधिकारी पौतवाध्यक्ष तौल-मान का प्रभारी था।

 – पण्याध्यक्ष वाणिज्य विभाग तथा सूनाध्यक्ष बूचड़खाने के प्रभारी थे।

 – मौर्य युग में नगरों का प्रशासन नगरपालिकाओं द्वारा चलाया जाता था, जिसका प्रमुख ‘नागरक’ या ‘पुरमुख्य’ था।

 –यूनानी लेखकों ने बिंदुसार को अमित्रोकेडीज कहा है, विद्वानों के अनुसार अमित्रोकेडीज का संस्कृत रूप है अमित्रघात (शत्रुओं का नाश करने वाला)।

-पुष्यमित्र शुंग ने 184 ई.पू. में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके शुंग राजवंश की स्थापना की।

-‘वायु पुराण के अनुसार, अंतिम कण्व शासक सुशर्मा अपने आंध्र जातीय भृत्य सिमुक (सिंधुक) द्वारा मार दिया गया था।

गिरनार क्षेत्र में चंद्रगुप्त मौर्य ने सुदर्शन झील खुदवाई तथा अशोक ने ई.पू. तीसरी शताब्दी में इससे नहरें निकालीं ।

-शक क्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में इन दोनों के कार्यों का वर्णन है।

गुप्त वंश : समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय

  • गुप्त वंश (Gupta Dynasty) ने 275-550 ई. तक शासन किया। इस वंश की स्थापना लगभग 275 ई. में महाराज श्रीगुप्त द्वारा की गई थी।
  • गुप्त वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक चंद्रगुप्त (Chandragupta ) था, जिसने 319-335 ई. तक शासन किया।
  • चंद्रगुप्त I  ने अपनी महत्ता सूचित करने के लिए अपने पूर्वजों के विपरीत महाराजाधिराज (‘Maharajadhiraj’)की उपाधि धारण की।
  • वाकाटक शासक प्रवरसेन प्रथम ने चार अश्वमेघ (four ashwamedha )यज्ञों का संपादन किया।
  • कन्नौज को महोदया‘, ‘महोदयाश्री (‘Madam’, ‘Madam’)आदि नामों से अभिव्यक्त किया गया है।
  • इतिहासकार विंसेंट स्मिथ (vincent smith )ने अपनी रचना ‘अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ में समुद्रगुप्त की वीरता एवं विजयों पर मुग्ध होकर उसे भारतीय नेपोलियन (‘Indian Napoleon’ )की संज्ञा दी है।
  • इलाहाबाद का अशोक स्तंभ अभिलेख (Ashoka Pillar Inscription of Allahabad )समुद्रगुप्त (335-375 ई.) के शासन के बारे में सूचना प्रदान करता है।
  • इलाहाबाद स्तंभ पर समुद्रगुप्त के संधि विग्रहिक हरिषेण (Harishen )ने संस्कृत भाषा में प्रशंसात्मक वर्णन प्रस्तुत किया है, जिसे प्रयाग प्रशस्ति (‘Prayag Prashasti’)कहा गया है।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य’ वह प्रथम गुप्त शासक था, जिसने परम भागवत (‘Param Bhagwat’)की उपाधि धारण की थी।
  • गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य को शक विजेता (‘Shaq the winner’ )कहा गया है।
  • पश्चिम भारत के अंतिम शक राजा रुद्रसिंह III (Rudrasingh III )को चंद्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ ने पांचवीं सदी के प्रथम दशक में परास्त कर पश्चिमी भारत में शक सत्ता का उन्मूलन किया था।
  • शकों को हराने के कारण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की एक अन्य उपाधि शकारि‘(‘Shakari’)भी है।
  • चंद्रगुप्त ने इस उपलक्ष्य में चांदी के सिक्के (silver coins ) भी चलाए ।
  • हूणों का पहला भारतीय आक्रमण गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त के शासनकाल (Skandagupta’s reign )में हुआ तथा स्कंदगुप्त के हाथों वे बुरी तरह परास्त हुए।
  • गुप्तकाल में बंगाल में ताम्रलिप्ति (copper plating )एक प्रमुख बंदरगाह था, जहां से उत्तर भारतीय व्यापार एवं साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, लंका, जावा, सुमात्रा आदि देशों के साथ व्यापार होता था।
  • गुप्तकाल में गुजरात, बंगाल, दक्कन एवं तमिलनाडु वस्त्र उत्पादन के लिए (for clothing production ) प्रसिद्ध थे।
  • धन्व॑तर चंद्रगुप्त II विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे, ये आयुर्वेद शास्त्र के प्रकांड पंडित थे।
  • चरक कनिष्क के राजवैद्य (royal doctor )थे, जिन्होंने चरक संहिता (‘Charak Samhita’ )की रचना की थी।
  • भास्कराचार्य (Bhaskaracharya ) प्रख्यात खगोलज्ञ एवं गणितज्ञ थे। उन्होंने सिद्धांत शिरोमणि (‘Siddhant Shiromani’ ) तथा लीलावती (‘Lilavati’) नामक ग्रंथों की रचना की।
  • गुप्तकाल में स्वर्ण मुद्रा को दीनार (dinar to gold currency ) कहा जाता था।
  • चीनी यात्री फाह्यान (Fa-Hian ) के अनुसार लोग दैनिक क्रय-विक्रय में कौड़ियों का प्रयोग करते थे।
  • सती प्रथा का प्रथम अभिलेखिक साक्ष्य एरण (Eran ) से प्राप्त हुआ है।
  • एरण अभिलेख 510 ई. का है, जिसमें गोपराज नामक सेनापति की स्त्री के सती होने का उल्लेख (Mention of woman being sati ) है।
  • गुप्त संवत् (‘Gupta Samvat’ ) का प्रवर्तक चंद्रगुप्त प्रथम था ।
  • गुप्त संवत् की तिथि 319 ई. 319 AD) है।
  • गुप्त वंश के शासकों ने मंदिरों (temples )एवं ब्राह्मणों (Brahmins ) को सबसे अधिक ग्राम अनुदान में दिए थे।
  • गुप्तकाल में कला एवं साहित्य में हुई प्रगति के आधार पर इस काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग(‘Golden Age’)कहा जाता है।
  • प्राचीन भारत में सिंचाई कर को उदकभाग (flying part ) अथवा बिदकभागम(bidakbhagam ) कहा गया है।
  • गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल में रेशम के लिए कौशेय (‘Kaushey’) शब्द का प्रयोग होता था।
  • तीसरी शताब्दी में वारंगल लोहे के यंत्रों / उपकरणों (iron instruments/instruments ) हेतु प्रसिद्ध था।
  • तोरमाण (Torman ) भारत पर दूसरे हूण आक्रमण का नेता था।
  • शतरंज का खेल (chess game) भारत में गुप्तकाल (Gupta period )के दौरान उद्भूत हुआ था, जहां इसे चतुरंग (‘Chaturanga’) के नाम से जाना जाता था।
  • भारत से यह ईरान एवं तत्पश्चात यूरोप (Europe) में पहुंचा।
  • महर्षि कपिल ने सांख्य दर्शन (Sankhya philosophy ) का प्रतिपादन किया था।
  • महर्षि पतंजलि को योग दर्शन का संस्थापक (founder of yoga philosophy )आचार्य माना जाता है।
  • न्याय दर्शन (justice philosophy ) का प्रवर्तन गौतम ने किया, जिन्हें अक्षपाद भी कहा जाता है।
ऐतिहासिक इमारतें / मंदिर एवं स्थिति
इमारतें / मंदिरस्थिति
अजंता एवं एलोरा गुफा
शांतिनिकेतन
एलिफेंटा गुफा
महाबलिपुरम मंदिर
सांची स्तूप
लिंगराज मंदिर
सूर्य मंदिर (काला पैगोडा )
दक्षिणेश्वर काली मंदिर
सोमनाथ मंदिर
कैलाश मंदिर
त्र्यंबकेश्वर मंदिर
महाबलेश्वर मंदिर
दिलवाड़ा जैन मंदिर
ब्रह्मा मंदिर
होयसलेश्वर मंदिर  रामेश्वरम मंदिर
मीनाक्षी मंदिर
बृहदेश्वर मंदिर
नटराज मंदिर
वेंकटेश्वर मंदिर
जगन्नाथ मंदिर
वैष्णो देवी मंदिर   
खजुराहो मंदिर
 औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
वीरभूमि (प. बंगाल)
मुंबई (महाराष्ट्र)
मामल्लपुरम,
कांचीपुरम (तमिलनाडु)
रायसेन (मध्य प्रदेश)
भुवनेश्वर (ओडिशा)
कोणार्क (ओडिशा)
कोलकाता (प. बंगाल)
गिर सोमनाथ (गुजरात)
एलोरा (महाराष्ट्र)
नासिक (महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र
माउंट आबू (राजस्थान )
पुष्कर (राजस्थान)
हेलेबिड (कर्नाटक)
तमिलनाडु मदुरई (तमिलनाडु)
तंजावुर (तमिलनाडु)
चिदंबरम (तमिलनाडु)
तिरुपति (आंध्र प्रदेश)
पुरी (ओडिशा)
जम्मू-कश्मीर      
छतरपुर (म.प्र.)

राजपूत काल

  • ‘गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक नागमट्ट प्रथम (Nagamatt I) (730-756 ईस्वी) था
  • राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 736 ई. में दंतिदुर्ग (dentition) ने की। उस मान्यखेट को अपनी राजधानी बनाया।
  • दंतिदुर्ग के संबंध में कहा जाता है कि उज्जयिनी में उस हिरण्यगर्भ (महादान) यज्ञ (Hiranyagarbha (Mahadan) Yagya) करवाया था।
  • राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष I का (Of Amoghavarsha I) जन्म 800 ई. में नर्मदा नदी के किनारे श्रीभावन नामक स्थान पर सैनिक छावनी में हुआ था
  • गुर्जर जाति का प्रथम उल्लेख पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल (कर्नाटक) लेख (Aihole (Karnataka) Articles)  में हुआ है।
  • ऐहोल अभिलेख (Aihole Records) 634 ई. में प्राप्त हुआ है। यह संस्कृत काव्य लिखा है।
  • ऐहोल अभिलेख जैन कवि रवि कीर्ति (Ravi Kirti) द्वारा रचित है।
  • नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) को यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची शामिल किया है।
  • नालंदा विश्वविद्यालय बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji) के अधीन तुर्क मुस्लि आक्रमणकारियों द्वारा 1193 ई. में नष्ट किया गया था।
  • विक्रमशिला (Vikramshila) के प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना बंगाल के पाल वंशीय शासक धर्मपाल (770-810 ई.) द्वारा की गई थ मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो में चंदेल राजाओं (Chandela kings)  द्वारा निर्मित मंदिर आज भी चंदेल स्थापत्य की उत्कृष्ट का बखान कर रहे हैं।
  • खजुराहो के मंदिरों में कंदरिया महादेव (Kandariya Mahadev) मंदिर सर्वोत्तम है। – यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल म. प्र. ऐतिहासिक स्थलों में खजुराहो का मंदिर, भीमबेटका की गुफाएं (Khajuraho Temple, Bhimbetka Caves) एवं सांची का स्तूप शामिल हैं।
  • खजुराहो (Khajuraho) मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है।
  • दशावतार मंदिर देवगढ़ (ललितपुर) (Dashavatara Temple Deogarh (Lalitpur)) में स्थित है तथा यह मंदिर गुप्तकालीन है।
  • माउंट आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिर (Dilwara Jain Temple) संगमरमर के बने हैं, जिनका निर्माण गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) शासक भीमदेव प्रथम (Bhimdev I) के सामंत विमलशाह ने करवाया था।
  • एलीफैंटा के प्रसिद्ध गुफा मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों द्वारा कराया गया था।
  • एलीफैटा से कुल सात गुफाएं मिली हैं, जिसमें से पांच गुफा- मंदिर प्राप्त हुए हैं जिनमें हिंदू धर्म (मुख्यतः शिव) (Hinduism (mainly Shiva) से संबंधित मूर्तियां हैं। साथ ही यहां दो बौद्ध गुफाएं भी हैं।
  • एलोरा का कैलाश मंदिर (Kailash Temple) शैलकृत स्थापत्य का उदाहरण है।
  • द्रविड़ शैली (Dravidian style) के विश्व प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने करवाया था।

गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर

(Major Gupta Temple)

विष्णु मंदिर
शिव मंदिर
पार्वती मंदिर
दशावतार मंदिर
शिव मंदिर
भीतर गांव मंदिर
तिगवा (मध्य प्रदेश)
भूमरा (मध्य प्रदेश)
नचना कुठार (मध्य प्रदेश)
देवगढ़ (उत्तर प्रदेश)
खोह (मध्य प्रदेश)
कानपुर (उत्तर प्रदेश)
  • अजंता की गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण ‘मरणासन्न राजकुमारी (‘dying princess) का चित्र एलोरा में प्रशंसनीय है।
  • पुरी स्थित कोणार्क का विशाल सूर्यदेव का मंदिर नरसिंह देववर्मन प्रथम चोडगंग (Temple of Sun God Narasimha Devvarman I Chodaganga) ने बनवाया था।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर को ‘काला पैगोडा‘ (black pagoda) भी कहा जाता है।
  • मोढेरा का सूर्य मंदिर (Sun Temple of Modhera) गुजरात में स्थित है। इसका निर्माण सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा कराया गया था।
  • लिंगराज मंदिर (Lingaraj Temple)  ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित है। इस मंदिर की शैली नागर है।
  • जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) ओडिशा राज्य के पुरी जिले में स्थित है।
  • यह मंदिर नागर शैली में बना है।
  • अंकोरवाट मंदिर (Angkorwat Temple) समूह का निर्माण कंपूचिया (वर्तमान कम्बोडिया) के शासक सूर्यवर्मन II द्वारा 12वीं शताब्दी (12th century by II) के प्रारंभ में अपनी राजधानी यशोधरपुर (वर्तमान अंगकोर) में कराया गया था।
  • बोरोबुदुर (Borobudur) का प्रख्यात स्तूप इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर स्थित है। बोरोबुदुर एक यूनेस्को द्वारा मान्य ‘विश्व विरासत स्थल’ (World Heritage Site) है।
  • बोरोबुदुर एक यूनेस्को द्वारा मान्य ‘विश्व विरासत स्थल’ (World Heritage Site) है।
  • पाण्ड्यों (Pandyas) के राज्यकाल में द्रविड़ शैली में मंदिरों का निर्माण हुआ।
  • महाबलिपुरम (Mahabalipuram) में रथ मंदिरों का निर्माण पल्लव शासकों द्वारा करवाया गया था।
  • पल्लवकालीन मामल्ल शैली (case style) में बने रथों या एकाश्मक मंदिरों में द्रौपदी रथ सबसे छोटा है।
  • संगम युग में दक्षिण भारत में पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में तीन संगम आयोजित (Three Sangams were organized under the patronage of the Pandya kings.) किए गए थे।
संगमस्थानअध्यक्षता
प्रथम संगममदुरईअगस्त्य ऋषि
द्वितीय संगमकपाटपुरम (अलैवाई)अगस्त्य ऋषि तथा तोल्कापियर
तृतीय संगममदुरईनक्कीरर
  • दक्षिण भारत के आर्यकरण का श्रेय महर्षि अगस्त्य (Maharishi Agastya) को दिया जाता है।
  • महर्षि अगस्त्य को तमिल साहित्य के जनक (father of literature) के रूप में जाना जाता है।
  • ‘शिलप्पादिकारम‘ (‘Shilappadikaram’) का लेखक इलंगो आडिगल था।
  • संगम साहित्य में केवल चोल, चेर एवं पाण्ड्य (Chola, Chera and Pandya) राजाओं के उद्भव और विकास का विवरण प्राप्त होता है।
  • कुरल तमिल साहित्य का बाइबिल (Bible of Tamil Literature) तथा लघुवेद (Laghuveda) माना जाता है।
  • इसे मुप्पाल (Muppal) भी कहा जाता है।
  • इसकी रचना सुप्रसिद्ध कवि तिरुवल्लुवर (thiruvalluvar) ने की थी।
  • चोल स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने तंजौर के शैव मंदिर,( Shaiva Temples of Tanjore) जो राजराजेश्वर या वृहदीश्वर (Rajarajeshwar or Brihadishwar) नाम से प्रसिद्ध हैं, का निर्माण राजराज प्रथम के काल में हुआ था।
  • चोलों की राजधानी तंजौर (Tanjore) थी। इसके अतिरिक्त गंगैकोंडचोलपुरम भी चोलों की राजधानी बनी थी।
  • संगम काल में चोलों की राजधानी उरैयूर (Uraiyur) थी।
  • परांतक प्रथम ने मदुरा के पाण्ड्य राजा को हराकर ‘मदुरैकोंड उपाधि (Maduraikonda title) धारण की।
  • कुलोत्तुंग प्रथम (Kulottunga I) के समय में श्रीलंका के राजा विजयबाहु ने अपनी स्वतंत्रता घोषित की।
  • चोल शासक कुलोत्तुंग-1 के शासनकाल में 1077 ई. में 72 सौदागरों का एक चोल दूत मंडल चीन (A Chola embassy of 72 merchants to China) भेजा गया था।
  • ‘शिव की ‘दक्षिणामूर्ति’ (‘Dakshinamurthy’) प्रतिमा उन्हें गुरु (शिक्षक) के रूप में प्रदर्शित करती है।
  • ‘चालुक्यों के शासनकाल में प्रायः महिलाओं को उच्च पदों पर नियुक्त (appointing women to high positions) किया जाता था।
  • कम्बन ने 12वीं शती ई. में तमिल रामायणम या रामावतारम (Tamil Ramayanam or Ramavataram) की रचना तमिल भाषा में की थी।
  • राष्ट्रकूट वंश की राजधानी मान्यखेट थी।
  • होयसलों की राजधानी द्वारसमुद्र (dwarsamudra) थी।
  • हर्ष को संस्कृत के तीन नाटक ग्रंथों का रचयिता माना जाता है- प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानंद
  • जयदेव ने हर्ष को भास, कालिदास, बाण, मयूर आदि कवियों की समकक्षता में रखते हुए उसे कविताकामिनी का साक्षात हर्ष (Kavitakamini’s real joy) निरूपित किया है।

प्रमुख लेखक एवं उनकी रचनाएं

लेखकरचनाएं
सर्ववर्माकातंत्र
भारविकिरातार्जुनीयम्
राजशेखरकर्पूरमंजरी
चंदबरदाईपृथ्वीराज रासो
विशाखदत्तदेवी चंद्रगुप्तम
जयानकपृथ्वीराज विजय
सारंगदेवहमीर रासो
विल्हणविक्रमांकदेवचरित
  • पालवंशी शासक देवपाल (Devpal) बौद्ध मतानुयायी था। लेखों में उसे ‘परम सौगत’ कहा गया है।
  • देवपाल (Devpal) ने जावा के शैलेंद्रवंशी शासक बालपुत्रदेव के अनुरोध पर उसे नालंदा में एक बौद्ध विहार बनवाने के लिए पांच गांव दान में दिए थे।
  • जेजाकभुक्ति (jejakabhukti) बुंदेलखंड का प्राचीन नाम था। धर्मपाल ने विक्रमशिला तथा सोमपुरी (पहाड़पुर ) में प्रसिद्ध विहारों की स्थापना की थी।
  • प्रतिहार वंश का महानतम शासक मिहिरभोज (Mihirbhoj) था। इसका शासनकाल 836-885 ई. था।
  • विज्ञानेश्वर, हिमाद्रि एवं जीमूतवाहन मध्यकालीन भारत के प्रसिद्ध विधिवेत्ता (jurist) थे।
  • विज्ञानेश्वर (Vigyaneshwar) ने याज्ञवल्क्य स्मृति पर ‘मिताक्षरा’ (Mitakshara’) शीर्षक से टीकाग्रंथ लिखा।
  • जीमूतवाहन ने ‘दायभाग’ (‘Dayabhaag’) नामक ग्रंथ की रचना की।
  • भोजशाला मंदिर (Bhojshala Temple) म.प्र. के धार जिले में स्थित है।
  • यहां पर वाग्देवी (भगवती सरस्वती देवी) (Vagdevi (Goddess Saraswati Devi)) अधिष्ठात्री (स्थापित) हैं।
  • रुद्रमा देवी (Rudrama Devi) का संबंध जिस वंश से था, वह काकतीय था।
  • काकतीय साम्राज्य की राजधानी वारंगल (warangal) थी।