प्रारंभिक अंकगणित
पूर्ण संख्या
- अंकगणित ((arithmetic)) संख्याओं का विज्ञान है, अतः जरूरी है कि हम अंकगणित (arithmetic) के अध्ययन की शुरुआत (beginning) करते समय संख्या के गुण-धर्म, विभाज्यता, संख्याओं के व्यवहार, संख्याओं के वर्गीकरण इत्यादि से परिचित हो लें। ये सभी जानकारियां संख्या पद्धति अध्याय के अंतर्गत प्रस्तुत किए जाने की परंपरा है। इसीलिए अंकगणित की प्रत्येक पुस्तक में यह अध्याय सर्वप्रथम प्रस्तुत किया जाता है।
- यहां हम इस बात का उल्लेख करना परम आवश्यक समझते है कि संख्या पद्धति के तहत संख्याओं की परिभाषा (Definition), गुण-धर्म, वर्गीकरण इत्यादि जानने की बात सर्वप्रथम तो हो सकती है और यह उचित एवं जरूरी है किंतु यह अनिवार्य नहीं है कि इस अध्याय पर आधारित सभी प्रश्नों को हल करने की क्षमता प्रारंभ में ही अर्जित कर लेना संभव हो जाए। इसका कारण यह है कि इस अध्याय (Chapter) के अंतर्गत बहुत से ऐसे प्रश्न होते हैं जिसमें अंकगणित के दूसरे अध्यायों से संबंधित व्यवहार की जानकारी अपेक्षित होती है। संख्याओं के व्यवहार से यहां आशय यह है कि औसत, अनुपात –समानुपात प्रतिशत, भिन्न तथा घातांक इत्यादि के प्रश्नों में संख्याएं किस प्रकार व्यवहार करती हैं?
दाशमिक प्रणाली (Decimal System)
- हमारे दैनिक कार्यों में जिस संख्या पद्धति का प्रयोग होता है। उसे लिखने के लिए हम 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 का प्रयोग करते हैं। इसलिए इस संख्या पद्धति को ‘दाशमिक संख्या प्रणाली’ कहते है। इसे ‘हिन्दू-अरैबिक प्रणाली’ भी कहते हैं।
- दाशमिक प्रणाली की विशेषताएं (Features of the decimal system) – दाशमिक प्रणाली की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं-
(i) इसमें संख्याओं को लिखने के लिए दस प्रतीकों का प्रयोग होता है (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6,7,8, 9)
(ii) इसमें संख्याओं को लिखने के लिए दाईं से बाईं ओर क्रमशः इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, लाख इत्यादि स्थान होते हैं।
4 5 6 3 7 0
लाख दस हजार हजार सैकड़ा दहाई इकाई
← दाईं से बाईं ओर
- दाई ओर से पहला स्थान अर्थात इकाई का अंक = 0
- दाईं ओर से दूसरा स्थान अर्थात दहाई का अंक = 7
अंकों के मान (digit values)
- किसी भी संख्या में प्रयुक्त प्रत्येक अंक के कुल दो मान होते हैं-
(1) वास्तविक मान एवं (ii) स्थानीय मान ।
- (1) वास्तविक मान – जो कभी नहीं बदलता है। किसी भी संख्य का वास्तविक मान हमेशा स्थिर होता है। इसे ‘जातीय ‘अंकित मान’ अथवा शुद्ध मान भी कहा जाता है। जैसे- संख्या 8768 में अंक ‘8’ के दोनों स्थानों का वास्ति मान 8 होगा। मानव
- (ii) स्थानीय मान – किसी अंक का वह मान जो उसके स्थान विशेष के कारण होता है, ‘स्थानीय मान‘ ‘place value) कहलाता है। जैसे – संख्या 8768 में एक आठ का स्थानीय मान 8000 दूसरे आठ का स्थानीय मान 8 है।
- इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संख्या में एक से अधि बार आए अंक का वास्तविक मान समान होगा जबकि स्थानीय मर भिन्न-भिन्न होंगे।
- संख्या के प्रकार-संख्याओं का विभिन्न संदर्भों में और अनेह प्रकारों से प्रयोग किया जाता है। संख्याओं के निम्नलिखित प्रकार हैं-
- परिमेय संख्याएं (Rational Number) – $$\frac{p}{q}$$ के रूप में लिखे जाने वाली संख्याएं ‘परिमेय संख्याएं’ कहलाती हैं जहां p तथा q पूर्णांक हों, q शून्य न हो ( q≠ 0)।
जैसे – $$\frac{0}{1} = 0, \frac{4\ }{1\ } = 4, \frac{4\ }{7} ,\ \frac{9\ \ }{2\ } , \frac{-3\ \ }{8} , \frac{1\ }{-2\ }$$,……..आदि|
सभी धन, ऋण, शून्य, सम, विषम, भाज्य, अभाज्य तथा क्रमागत आदि पूर्ण संख्याएं परिमेय संख्याएं होती हैं क्योंकि हर के स्थान पर 1 लिख देने से वे के रूप में परिवर्तित हो जाती है। q एक परिमेय संख्या को अनंत रूपों में लिखा जा सकता है और अनंत रूपों में लिखी गई प्रत्येक परिमेय संख्या का मान समान होता है;
जैसे- $$\frac{\mathbf{2}\ }{\mathbf{4}} = 0.5, \frac{\mathbf{1}\ \ }{\mathbf{8}\ } = 0. 125 ) तथा आवर्त दशमलव संख्या (जैसे- \frac{4\ \ }{3\ } = 1.3333…….$$
नोट :― दो परिमेय संख्याओं के बीच अनंत परिमेय संख्याएं होती हैं।
जैसे : $$\frac{1\ }{2\ } तथा \frac{1\ }{3\ }$$ के बीच की अनंत परिमेय संख्याएं $$\frac{1\ }{6\ ,\ } \frac{1\ }{7\ \ }, \frac{1\ }{4\ ,\ \ } \frac{1\ }{5\ \ }, \frac{1\ }{8\ \ } $$…….. इत्यादि हैं।
- अपरिमेय संख्या (Irrational Number ) – जो संख्याएं के में नहीं लिखी जा सकती हैं उन्हें ‘अपरिमेय संख्या’ कहते हैं, जहाँ p. 9 धन पूर्णांक हों तथा q शून्य न हो (q ≠ 0 ) । जैसे- 2,15,78, 7 इत्यादि । अपरिमेय संख्या को न तो सीमित दशमलव REDMI NOTE और आवर्त दशमलव संख्या के रूप में लिखा जा सकता है। किसी भी धन पूर्णांक संख्या (जो पूर्ण वर्ग न हो) का वर्गमूल अपरिमेय संख्या होगी क्योंकि उसमें न तो सीमित दशमलव और न आवर्त दशमलव होते हैं
नोट :- $$ \pi = 3.14159 $$ एक अपरिमेय संख्या है जो वृत्त की परिधि तथा व्यास का अनुपात है। उसे $$\frac{p\ \ }{q\ \ }$$ के रूप में नहीं लिखा जा सकता है, किंतु गणना की सुविधा के लिए इसका मान $$\frac{12 }{7 } $$एक परिमेय संख्या है किंतु एक अपरिमेय संख्या है
- वास्तविक संख्याएं (Real Numbers) – सभी परिमेय तथा अपरिमेय संख्याएं ‘वास्तविक संख्याएं’ कहलाती हैं। जैसे- $$ 3, 0, 7, \frac{1\ \ }{3\ \ }, \frac{2\ \ \ }{3\ \ },\ \pi,\sqrt{3\ } , -1 , \sqrt{7\ } $$आदि ‘वास्तविक संख्याएं’ हैं।
- प्राकृतिक संख्याएं (Natural Numbers) – गणना संख्याएं जो एक से शुरू होकर अनंत तक होती हैं, ‘प्राकृतिक संख्याएं’ कहलाती हैं इन्हें सूक्ष्माक्षर में N अथवा n से प्रदर्शित करते हैं।
यथा- N = $$1, 2, 3,…………. \ \infty $$
- पूर्ण संख्याएं (Whole Numbers) – प्राकृतिक संख्याओं के समूह में शून्य को शामिल करने के बाद संख्याओं का जो समूह बनता है, उसे ‘पूर्ण संख्याओं का समूह‘ कहते हैं। पूर्ण संख्याओं के समूह को W से प्रदर्शित किया जाता है-
यथा – W = $$ 0,1, 2, 3, 4, 5,……….. \ \infty $$
- पूर्णांक संख्याएं (Integers Numbers)— ऋण पूर्णांक ($$−1, – 2, – 3,……… \ \infty$$), शून्य (0) और धन पूर्णांक $$ 1,2,3,……… \ \infty $$ के समूह को एक साथ पूर्णांक संख्याएं कहा जाता है इन्हें Iसे प्रदर्शित किया जाता है I
यथा- I = $$ (\infty\ldots\ldots\ldots-3\ ,-2\ ,\ -1\ ,\ 0\ ,\ 1\ ,\ 2\ ,\ 3\ldots\ldots..\ \infty)$$
- घन पूर्णांक संख्याएं (Positive Integers Numbers) – प्राकृतिक संख्याओं $$(1,2,3, …….. \ \infty ) $$ को ‘धन पूर्णांक’ भी कहा जाता है। इन्हें Z से प्रदर्शित करते हैं।
यथा – z = $$1, 2, 3…….. \infty $$
- ऋण पूर्णांक संख्याएं (Negative Integers Numbers)— ऋण चिह्नयुक्त प्राकृतिक संख्याओं (-1, 2, 3, 0) को ‘ऋण पूर्णांक’ कहा जाता है। इन्हें Z से प्रदर्शित करते हैं।
यथा- Z =$$ -1, -2, -3,…….\ \infty $$
नोट :- ऋण पूर्णांक में सबसे छोटी संख्या $$ – \infty\ $$है जो – प्राप्त नहीं की जा सकती है तथा सबसे बड़ी संख्या 1 है।
- शून्य (Zero) – इसका संकेत 0 है तथा यह सबसे छोटा अंक है। किसी संख्या में शून्य जोड़ने तथा घटाने पर संख्या के मान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। परंतु गुणा करने पर गुणनफल हमेशा शून्य आता है। शून्य को किसी संख्या के बाएं लिखने पर संख्या के मान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन दाहिने लिखने पर संख्या का मान दस गुना बढ़ जाता है।
नोट : – शून्य का शून्य से गुणनफल तथा भागफल अपरिभाषित है
0 * 0 = अपरिभाषित
0 / 0 = अपरिभाषित
- सम संख्याएं (Even Numbers) – वे संख्याएं जो 2 से पूर्णतः विभाजित हो जाती हैं, ‘सम संख्याएं’ कहलाती हैं। यह दो प्रकार की होती हैं-
(i) धन सम संख्याएं (Positive Even Numbers) – 2, 4.6, 8. 10 ,12
(ii) ऋण सम संख्याएं (Negative Even Numbers): $$ -2,-4,-6,….. -\ \infty $$
सम संख्याओं को E से प्रदर्शित किया जाता है। सम संख्याएं जैसे – 2, 4, 6, 8, 10, 12 में 10 अपने परवर्ती 12 से दो कम तथा अपने पूर्ववर्ती 8 से दो अधिक है।
पूर्ववर्ती से 2 अधिक तथा परवर्ती से 2 कम होती हैं।
सम संख्याओं को E से प्रदर्शित किया जाता है। सम संख्याएं जैसे – 2, 4, 6, 8, 10, 12……. में 10 अपने परवर्ती 12 से दो कम तथा अपने पूर्ववर्ती 8 से दो अधिक है।
नोट :- प्रत्येक पूर्णांक अपने पूर्ववर्ती पूर्णांक से 1 अधिक तथा परवर्ती से 1 कम होता है। किसी पूर्णांक में 1 जोड़ देने पर ठीक अगला तथा 1 घटा देने पर ठीक पूर्व वाला पूर्णांक प्राप्त होता है। क्रमागत पूर्णांकों मे 1 का अंतर होता है।
- विषम संख्याएं (Odd Numbers) – वे संख्याएं जो 2 से पूर्णतः विभाजित नहीं होती हैं, ‘विषम संख्याएं’ कहलाती हैं। यह भी दो प्रकार की होती हैं-
(i) धन विषम संख्याएं (Positive Odd Numbers) – $$1, 3, 5 …… \ \infty $$
(Ii) ऋण विषम संख्याएं (Negative Odd Numbers): $$-1, -3, -5, …….. \ \infty $$
विषम संख्याओं को O से प्रदर्शित किया जाता है। इनके भी बीच अपने पूर्ववर्ती तथा परवर्ती से दो-दो का अंतर होता है।
- भाज्य संख्याएं (Composite Numbers) – वे धन संख्याएं जो 1 तथा स्वयं के अलावा भी किसी अन्य संख्या से पूर्णतः विभाजित हो जाए उन्हें ‘भाज्य संख्याएं’ कहते हैं। इन्हें ‘संयुक्त संख्याएं’ भी कहते हैं। जैसे- 6, 8, 9, 10 12 ये सभी भाज्य संख्याएं हैं क्योंकि ये स्वयं तथा 1 के अतिरिक्त संख्याओं से भी पूर्णतः विभाजित होती हैं। भाज्य संख्याओं के लिए आवश्यक यह है कि वे कम से कम तीन संख्याओं से अवश्य विभाजित हों। इन्हें ‘यौगिक संख्याएं‘ भी कहते हैं।
- अभाज्य संख्याएं (Prime Numbers) – वे धन संख्याएं जो स्वयं तथा 1 के अलावा किसी अन्य संख्या से पूर्णतः विभाजित न हों, ‘अभाज्य संख्याएं’ कहलाती हैं। जैसे- 2, 3, 5, 7, 11….. आदि । अभाज्य संख्याओं के लिए यह आवश्यक है कि वे केवल दो संख्याओं से विभाजित हों। 2 एक ऐसी अभाज्य संख्या है जो सम है। यह सबसे भाज्य छोटी अभाज्य संख्या भी है। संख्या । केवल स्वयं से विभाजित होती 1 अतः यह न तो भाज्य संख्या है और न अभाज्य संख्या है।
- सह अभाज्य संख्याएं (Co- Prime Numbers) – संख्याओं के ऐसे जोड़े जिनमें 1 के अतिरिक्त कोई अन्य गुणनफल उभयनिष्ठ न हो, तो ऐसे जोड़े की दो संख्याएं परस्पर अभाज्य संख्याएं अथवा सह-अभाज्य संख्याएं कहलाएंगी। जैसे – (7,3 ) में 1 के अतिरिक्त अन्य कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है। अतः 3 और 7 परस्पर अभाज्य या सह-अभाज्य संख्याएं हैं। कुछ और सह-अभाज्य संख्याएं (4,7), (16,25) (15,17 ), ( 27, 32 ) इत्यादि हैं। दूसरे शब्दों में सह-अभाज्य संख्याएं, संख्याओं का वह समूह है जिसका म. स. प. 1 होता है। सह अभाज्य संख्याएं होने के लिए कम से कम दो संख्याएं होना अति आवश्यक है। समूह की संख्याएं भाज्य अथवा अभाज्य दोनों ही तरह की हो सकती हैं।
‘शून्य संख्या के कुछ सामान्य नियम-
सिद्धांत नियम उदाहरण
जोड़ 𝑥 +0 = 𝑥 3+0=3
घटाना 𝑥 – 0 = 𝑥 3-0=3
गुणा 𝑥 * 0 = 0 3 × 0 = 0
भाग $$ \frac{0}{x} =0 ( जब x≠ 0) \frac{0}{\ 3\ } = 0 $$
$$ \frac{0}{x} = अपरिभाषित \frac{x\ }{0} = अपरिभाषित $$
घातांक 0 x= 0 03 = 0
x0 = 1 30 = 1
वर्गमूल $$ \sqrt0 = 0 $$
Sine Sin 0° = 0
Cosine Cos 0° = 1
Tangent tan 0° = 0
किसी संख्या में शून्य से गुणा करने पर शून्य ही प्राप्त होता है
$$ \frac{0}{1} = 0 => 0 = 0 x 1 = 0 $$
$$ \frac{0}{2} = 0 => 0 = 0 x 2 = 0 $$
$$ \frac{0}{3} = 0 => 0 = 0 x 3 = 0 $$
अतः शून्य में किसी संख्या से भाग देने पर शून्य प्राप्त होता है।
माना $$ \frac{3}{0} = A $$ =0 x A……..(i)
शून्य का A में गुणा करने पर शून्य ही प्राप्त होगा, : समीकरण (i) में A का ऐसा कोई मान नहीं हो सकता जी समीकरण को संतुष्ट कर सके क्योंकि किसी संख्या में शून्य से गुण करने पर शून्य ही प्राप्त होता है। अतः $$ \frac{x}{0} $$अपरिभाषित हैI
X0 = 1
यदि किसी संख्या की घात शून्य हो तो उसका मान 1 है, इस प्रकार से-
$$ \frac{x2}{x2} x2 -2 = x0 ………………(i) $$
$$ \frac{x2}{x2} = 1………………………(ii) $$
समीकरण (i) = समीकरण (ii)
अतः x° = 1
किसी संख्या की घात शून्य हो तो उसका दूसरा अर्थ उ संख्या को उसी संख्या से भाग देना है। जिसका प्रतिफल सदैव || प्राप्त होगा।
नोट :- किसी संख्या का उसी संख्या में भाग देने पर प्रतिफल 1 प्राप्त होता है लेकिन शून्य का शून्य में भाग अपरिभाषित है क्योंकि :
यदि $$ \frac{0}{0} = 1=> 0 = 1 x 0 = 0,\ \frac{0}{0} = 2 => 0 = 2 x 0 = 0 $$
यदि, $$ \frac{0}{0} = 3 => 0 = 3 x 0 = 0 $$ अतः प्रत्येक स्थिति में शून्य ही प्राप्त होता है।