भूगोल: पारिभाषिक शब्दावली

क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC): मानव निर्मित यह एक ऐसी गैस है जिसका प्रयोग रेफ्रिजरेटर, एसी आदि में किया जाता है। जब इसका सान्द्रण समताप मंडल में बढ़ता है तब यह मुक्त क्लोरीन का उत्सर्जन करता है, जिसके कारण ओजोन परत को काफी नुकसान पहुँचता है।

ओजोन (03): समताप मंडल में ओजोन 20-50 किमी. के बीच एक परत बनाकर पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती है।

मीथेन (CH 4 ) : इस गैस का अधिकांश भाग जैविक स्त्रोतों से उत्पन्न होता हैं। चावल की खेती कम्पोस्ट खाद के निर्माण से मीथेन गैस बनती है जो कि ग्रीन हाऊस प्रभाव के लिए उत्तरदायी प्रमुख गैस है।

गोखुर झील (Oxbow lack) : नदी की वृद्धावस्था में जो कि नदी के विसर्प ग्रीवा के कट जाने से बनती है। ये झीले प्राय: समतल भूमि तथा बाढ़ के मैदान की विशेषताएँ होती है।

ग्रीन हाउस गैस: वायुमंडल में गैसे का ऐसा समूह जो कि सूर्य की लौटती किरणों का अवशोषण अत्यधिक मात्रा में करके पृथ्वी को तेजी से गर्म करती है। IPCC तथा UNEP के तहत मुख्यतः 6 गैसे उत्तरदायी है।

सतत् विकास: विकास की एक ऐसी प्रक्रिया, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जाये जिससे वर्तमान अवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति में कोई कठिनाई न हो ।

हिमपातः जब आकाश में वायु का तापमान त्वरित गति से गिरकर हिमांक अर्थात O’C से भी नीचे पहुँच जाता है तो वाष्प सीधे हिमकणों में बदल जाती है तथा इसके नीचे गिरने को प्रक्रिया ही हिमपात कहलाती है।

व्यापारिक पवनः एक स्थायी पवन जो उष्ण तथा उ कटिबंधीय उच्च वायु दाब पेटी से भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी की ओर प्रवाहित होती है। इसकी दिशा उत्तरी गोलार्ध में उत्तर पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्ध में द.पू. रूप होती है

पूर्ववर्ती नदीः ऐसी नदी जो वर्तमान उच्चावचीय स्वरूप के विकास के पूर्व भी विद्यमान थी और अभी भी अपने यथावत मार्ग पर ही प्रवाहित हो रही है। उदाहरण स्वरूप- सिन्धु,  सतलुज, ब्रह्मपुत्र, यमुना आदि ।

दैनिक तापान्तर: किसी भी स्थान के किसी दिन के न्यूनतम एवं अधिकतम तापमान के अंतर को दैनिक जापान्तर कहते है।

ओसांक : ओसांक से तात्पर्य उस बिन्दु से है जिस पर वायु संतृप्त होकर और अधिक जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता खो देती है तत्पश्चात आर्द्रता छोटी-छोटी बूदों में परिवर्तित हो जाती है।

चक्रवात (Cyclone): चक्रवात अत्यधिक निम्न वायुदाब के केन्द्र होते है जिसमें हवाएँ केन्द्र की ओर गति करती है। इनकी दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की दिशा के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की दिशा की ओर होती है।

उच्च अंक्षाशः आर्कटिक वृत्त ( 66, उत्तरी गोलार्ध) तथा उत्तरी ध्रुव के मध्य और अंटार्कटिक वृत्त तथा दक्षिणी ध्रुव के मध्य स्थित अंक्षाश को उच्च अंक्षाश कहते है।

आम्र वर्षा: सम्पूर्ण दक्षिणा पूर्वी एशिया तथा भारत में अप्रैल तथा मई माह में जो मानसून पूर्व वर्षां होती है, उसे आम्र वर्षा कहते है। यह आम के लिए लाभदायक होती है।

अंत-प्रवाह प्रदेश: अंत प्रवाह प्रदेश से तात्पर्य उन क्षेत्रों से है जिन क्षेत्रों की नदियों का जल किसी खुले समुद्र आदि में न गिरकर विशाल जलाशयों में गिरता है। यूराल, नीपर नीस्टर, डेन्यूब नदियाँ इसके प्रमुख उदाहरण है।

अध-प्रवाह (Underflow): सागर तट पर लहरों एवं धाराओं द्वारा जल एकत्रित होने के कारण सागर की ओर लौटने वाले

जल प्रवाह को अध-प्रवाह कहते है।

उष्मा द्वीप (Heat Island ): किसी नगर के ऊपरी भाग का तापमान जो अपने आसपास के अन्य क्षेत्रो से अधिक रहता है. उष्मा द्वीप कहलाता है।

गोडवानालैण्डः पृथ्वी का समस्त स्थलीय भाग कार्बोनीफेरस युग में एक के रूप में था। सम्पूर्ण भाग पेंजिया कहा गया है। पजिया के टूटने के क्रम में उत्तरी भाग को लारेशिया जबकि दक्षिणी आग को गोड़वानालैण्ड कहा गया है।

गहन कृषिः यह एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें उत्तम बीज, के रूप में परिलक्षित होता है। उर्वरक, कृषि उपकरणों के द्वारा एक ही भूमि पर एक वर्ष में कई फैसलों को तैयार किया जाता है। भारत, श्रीलंका, चीन, जापान आदि देशों में गहन खेती कर प्रचलन है। ग्रीनविच रेखा: शून्य अंश देशान्तर रेखा जो ग्रेट ब्रिटेन के ग्रीनविच नामक स्थान पर स्थित रायल वेधशाला से होकर गुजरती है. ग्रीनविच रेखा कहलाती है। अन्य देशान्तर रेखाओं का निर्धारण इसी रेखा से होता है।

चन्द्रग्रहण (Luner Eclipe ) : जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के मध्य होती है तथा ये तीनों एक सीध में होते है तो ऐसी स्थिति में पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है जिससे चन्द्रग्रहण की स्थिति होती है। यह स्थित पूर्णिमा को ही आती है।

दोआब: दो नदियों के मध्य स्थित जलोढ़ मैदान को दोआब कहते है। यह शब्द विशेषकर दो नदियों के संगम क्षेत्र की भूमि के लिए प्रयुक्त होता है। रचना, बारी, बिस्ट आदि प्रमुख दोआब क्षेत्र है।

ध्रुवतारा (Pole Star): ब्रह्मांड में स्थित एक ऐसा तारा जो सदैव उत्तर की ओर इंगित करता है। उत्तरी गोलार्ध से यह प्रत्येक स्थान से उत्तर दिशा में दिखाई देता है। यह वास्तविक उत्तर को इंगित करता है।

नियतवाही पवनेंः नियतवाही पवनों से तात्पर्य है कि ऐसी पवन जो निरन्तर एक ही दिशा में चलें। विषुवतरेखीय पवनें, व्यापारिक पवने तथा ध्रुवीय पवनें नियतवाही पवनों के उदाहरण हैं।

जेट स्ट्रीम: वायुमंडल में क्षोभ सीमा के आस-पास प्रवाहित होने वाली तीव्र पश्चिमी पवनों को जेट स्ट्रीम कहते है। यह 150 से 500 किमी की चौड़ाई तथा कुछ किमी की मोटाई में 50-60 नॉट के वेग से चलती है।

भ्रंश दरार घाटी (Rift Valley): भूतल पर हुये दरारों के कारण दो अंशो के मध्य का भाग बैँस जाता है, इन्हें दरार घाटी कहा जाता है। जार्डन नदी घाटी, नर्मदा ताप्ती नदी घाटियाँ दरार घाटी की उदाहरण है।

निहारिका (Nebula): ब्रह्मांड में धूल, गैस तथा घने तारों के समूह को निहारिका कहते है। हमारी आकाशगंगा में अनेक निहारिकायें है। ये अत्यधिक तापमान लगभग 6000°C से अधिक की होती है।

वटसॉल: इस श्रेणी की मृदा वर्षा होने पर फैलती है एवं सुख जाने पर इसमें दरारे पड़ जाती है। इसमें क्ले की बहुलता होती है। उदाहरण: काली मिट्टी।

खादर प्रदेशः यह नवीन जलोढ़ से निर्मित अपेक्षाकृत नीचा प्रदेश है। यहाँ नदियों के बाढ़ का पानी लगभग प्रतिवर्ष पहुँचता रहता है। यह उपजाऊ प्रदेश होता है।

मोनोजाइट बालू: भारत में मोनोजाइट का विश्व में सबसे बड़ा संचित भंडार है। यह केरल के तट पर पाया जाता है। मोनाजाइट

से थोरियम प्राप्त किया जाता है।

टोडा: तमिलनाडू में नीलगिरी की पहाड़ियों पर टोडा जनजाति पायी जाती है। यह जनजाति प्रमुख रूप से पशु चारण का कार्य करती है।

कांजीरंगा : यह असम में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान एक सींग वाले गैंडे एवं हाथियों के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2: ब्रह्मपुत्र नदी को सदिया से धुबरी के बीच राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 घोषित किया गया है। इस जलमार्ग की लम्बाई 861 किमी है।

नार्वेस्टर: ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल-मई महीने में शुष्क एवं उष्ण स्थानीय पवनों के आई समुद्री पवनों के मिलने से प्रचंड स्थानीय तूफान जिनसे वर्षा तथा ओले पड़ते हैं। इन्हें पश्चिम बंगाल में नार्वेस्टर या काल वैशाखी कहते हैं।

भोटिया: यह उत्तराखंड में पायी जाने वाली प्रमुख जनजाति है। यह ऋतुप्रवास के लिए प्रसिद्ध है। पशुपालन इनका प्रमुख कार्य

है।

अंतरा पर्वतीय पठार (Inter montane Plateau): ऐसे पठार जो चारों तरफ से पर्वतों से घिरे होते हैं, अंतरा पर्वतीये पठार कहलाते है। एशिया में तिब्बत एण्डीज में बोलीविया एवं पेरू के पठार इसके उदाहरण है।

अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Tine) : ग्लोब पर 180° देशान्तर के लगभग साथ-साथ काल्पनिक रूप से निर्धारित की गयी एक रेखा जो प्रशान्त महासागर के जलीय भाग से गुजरती है। इस तिथि रेखा के दोनों तरफ 24 घण्टे का अंतर होता है।

अनुवर्ती नदी (Consequent river): किसी भी स्थलखण्ड से वास्तविक और प्राथमिक डाल का अनुसरण करने वाली नदी

को अनुवर्ती नदी कहते है सोन बेतवा आदि इसके प्रमुख उदाहरण है।

अश्व अंक्षाश: 30-35 अक्षाश वालों उच्च वायुमण्डलीय दबाव की शांत पेटी जो कि सूर्य के साथ खिसकती रहती है, अश्व अंक्षाश कहलाती है। इस भाग में प्रतिचक्रवातीय हवाएँ चलती है।

क्षुद्र ग्रह: मंगल तथा वृहस्पति ग्रहों के मध्य पाये जाने वाले असंख्य छोटे-छोटे तारासमूहों को क्षुद्र ग्रह कहते है। ये ग्रह अन्य ग्रहों की तरह ही सूर्य की परिक्रमा करते है।

अधिवर्ष (Leap year): जिस वर्ष में फरवरी माह में 29 दिन होते हैं वह वर्ष अधिवर्ष होता है। इसका कारण है कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर 365 दिन में पूरा करती है। जो कि सौर वर्ष कहलाता है। अतिरिक्त समय जो चार वर्षों में एक दिवस के समान होता है, प्रति चौथे वर्ष में एक दिन जोड़ दिया जाता है।

अक्षांश वृत्त (Parallels of latitude): अंक्षाश वृत्त पूर्ण वृत्त होते हैं। ग्लोब पर खींची गयी काल्पनिक रेखाओं से बने ये वृत्त आपस में समानान्तर होते है। ये क्रमश: ध्रुवों की ओर छोटे होते है सबसे बड़ा वृत्त विषुवत वृत्त है।

अल नीनो (El Nino): अल नीनो पूर्वी प्रशांत महासागर में पेरू के तट से उत्तर से दक्षिण की दिशा में प्रवाहित होने वाली गर्म समुद्री धारा है जो हम्बोल्ट धारा को प्रतिस्थापित करके 39 से 360 दक्षिण अंक्षाश के मध्य बहती है। अल नीनो के कारण सागर में स्थित मछलियों के आधारभूत आहार प्लैकटन की कमी के कारण मछलियाँ मरने लगती है। ये धारा मानसून को भी प्रभावित करती है।

अल्पकालिक झंझा (Squall): अल्पकालिक झंझा एक विनाशकारी पवन जो अचानक उत्पन्न होती है तथा कुछ ही मिनट में समाप्त जाती है। इसके आगमन से तापमान गिरावट आ जाती है।

अवरोही पवनः ऐसी पवनें जो रात्रि में ठण्डी होकर पर्वतीय ढालों के नीचे घाटी की ओर प्रवाहित होती है अवरोही पवन कहलाती है। इसे पर्वतीय पवन भी कहते है।

आग्नेय शैल (Igneous rock): आग्नेय शैलों का निर्माण तरल सैग्मा के शीतल तथा ठोस होने से होता है। ये शैल कठोर अथा अप्रवेश्य होते हैं तथा इनमें जीवाश्म का भी अभाव रहता है

उल्का (Meteor ): वे खगोलीय पिण्ड जो पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते ही जलने लगते है उल्का कहलाते हैं। ये प्रायः वायुमण्डल में ही जलकर नष्ट हो जाते है, परन्तु कभी-कभी बड़ा आकार होने के कारण ये पृथ्वी पर आ गिरते है।

उपनगर: किसी वृहद नगर के बाहर परन्तु समीप ग्रामीण नगरीय उपांत स्थित वह नगर क्षेत्र जो मुख्य नगर से घनिष्ट रूप से संबंधित होता है। यह सामान्तया आवासीय होता है।

ऊसर भूमि: ऐसी भूमि जो वनस्पतिक विकास के लिए प्राय: अनुपयुक्त होती है। इस भूखण्ड पर कहीं-कहीं झाड़ियाँ पायी जाती है। इस भूमि का pH मान अधिक होने से ये क्षारीय होती है।

ऋतु परिवर्तनः पृथ्वी द्वारा अपनी कक्षा में परिक्रमण के कारण भूमध्य रेखा के संदर्भ में सूर्य की स्थितियाँ बदलती रहती है, जिसके कारण ऋतु परिवर्तन होता है। 21 मार्च, 23 सितम्बर को दिन और रात बराबर होते है जबकि 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में तथा 22 दिसम्बर को दक्षिणी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन होता है।

कच्छ भू-क्षेत्र: ऐस निम्न भू-क्षेत्र जो जल निकास की प्राकृतिक दशा के अभाव में सदैव जल मग्न रहता है, को कच्छ कहते है। भारत में गुजरात का कच्छ क्षेत्र सबसे बड़ा जल मग्न क्षेत्र है।

चन्द्रमास: वह समयावधि जिसमें चन्द्रमा पृथ्वी को एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। यह अवधि 29 दिन 12 घण्टे एवं 44 मिनट की होती है। एक अमावस्था से अगली अमावस्था तक की अवधि को चन्द्रमास कहते है।

टारनेडो (Tarnado): आकार की दृष्टि से छोटा यह एक उष्ण कटिबंधीय चक्रवात है जो अति प्रबल एवं विनाशकारी होता है। ऐसे तूफान अमेरिका के मिसीसिपी घाटी के मध्य मैदानों में अधिक पाये जाते है।

पंकिल वर्षा (Mud rain): वायुमण्डल में आधी तूफान तथा ज्वालामुखी द्वारा पहुँचाये गये धूल कणों का वर्षा जल के साथ नीचे आने की क्रिया को पंकिल वर्षा कहते है। प्रायः मरुस्थलीय भागों में ऐसी वर्षा देखने को मिलती है।

प्रकाश वर्ष: यह एक दूरी का मापक होता है। यह एक वर्ष में प्रकाश द्वारा तय की गयी दूरी के बराबर होता है। एक प्रकाश वर्ष की दूरी 9.46x 1012 km होती है।

प्रभामण्डल (Halo): सूर्य तथा चन्द्रमा के चारों ओर निर्मित एक प्रकाश वलय जो उच्च आकाश में पक्षाभ स्तरी मेघ की पतली परत से बनता है। हल्के बादलों में हिमकण तथा जलकण की उपस्थिति से प्रकाश के अपवर्तन से प्रभामण्डल का निर्माण हो जाता है।

प्रवाल जीव (Coral Polyp): उष्ण कटिबंधीय उथले सागर में पाया जाने वाला एक प्रकार का जीव है। जिसका शरीर अत्यन्त कोमल होता है जिसकी रक्षा के लिए यह जल में स्थित चूने से कठोर गृह का निर्माण करता है।

सामाजिक वानिकी: 1978 में सामुदायिक भूमि पर वनारोपण कार्यक्रम की शुरूआत की गयी इस योजना के अन्तर्गत लाये गये वृक्षों से प्राप्त होने वाले लाभ समुदाय को प्राप्त होते है। इसके अन्तर्गत कृषि वानिकी प्रसार वानिकी आदि कार्यक्रम शामिल है।

शुष्क कृषि (Dry farming): अर्द्धशुष्क प्रदेशों में वर्षा की कमी के कारण शुष्क कृषि की जाती है। इस पद्धति में नमी को संचित करने के लिए गहन जुताई की जाती है। ऐसे क्षेत्रों में प्रायः कम सिंचाई वाली फसलों की खेती की जाती है।

बेसाल्ट: सूक्ष्म कणों वाली बाह्य आग्नेय शैल जिसका निर्माण भूसतह पर तप्त तरल लावा के शीतल होकर ठोस होने परिणामस्वरूप होता है। इसमें लौह अंश की अधिकता होती है।”

भारतीय उपमहाद्वीप: भारतीय उपमहाद्वीप का विस्तार सुलेमान किरथर पहाड़ियों से लेकर पूर्व में म्यानमार तथा उत्तर में हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक है। इस सम्पूर्ण स्थलखण्ड  प्राकृतिक तथा मानचित्र दशाओं में समानता पायी जाती है।

भूमध्य रेखाः पृथ्वी की सतह पर स्थिति वह काल्पनिक रेखा जो दोनों ध्रुवों के मध्य से गुजरती है, भूमध्य रेखा कहलाती है। इसका मान 0º होता है। भूमध्य रेखा से उत्तर को क्रमश:- उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध कहते है।

मेगालोपोलिस: एक विस्तृत नगरीय सम्मिश्रण का खुला क्षेत्र जिसके अत्यधिक विस्तार होने की संभावना रहती है। प्रायः इन क्षेत्रों के विस्तार से कई नगर आपस में मिल जाते हैं।

मरुउद्यान: मरुस्थल क्षेत्र में स्थित वह लघु क्षेत्र जहाँ जलस्रोत हो प्रायः ऐसे स्थानों पर बस्तियाँ बस जाती है और जलस्रोत के आस-पास हरे पेड़-पौधे पाये जाते है।

लैगूनः सागर तट का वह भाग जो स्थलीय भागों से घिरा होने के कारण झील का रूप धारण कर लेता है। ऐसा क्षेत्र मुख्य सागर से पूर्णतया अथवा अंशत: अलग हो जाता है। भारत में चिल्का झील इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

लैटेराइटः शैलों के अपक्षय से निर्मित लाल रंग की मिट्टी जो पैतृक शैल के ऊपर एकत्रित रहती है। ये मिट्टी वर्षा के क्षेत्रों में अधिकता से पायी जाती है। ये मिट्टी भारत, इण्डोनेशिया तथा मध्य अफ्रीका में बहुलता से पायी जाती है।

अम्ल मृदाः जिस मृदा में [ मान 7 से कम होता है. उस मृदा को अम्ल वर्षा कहते हैं। यह उन क्षेत्रों में अधिकता से पायी जाती है। जहाँ कैल्शियम तथा सोडियम की कमी पायी जाती है।

शैवालः शैवाल एक अपरिष्कृत तथा विस्तृत जलीय पौधों का एक समूह है। शैवाल समूह में दोनों ही सूक्ष्मदर्शी जैसे ‘डायटम’ तथा बहुभेशिकीय जैसे बड़े आकार के समुद्री शैवाल पाये जाते है।

जलोढ़ शंकु (Allurial cone): पर्वतीय ढाल के आधार तल के पास अर्द्धवृत्ताकार रूप में पदार्थों का निक्षेप होता है, जिसे जलोढ़ पंख कहा जाता है। उन क्षेत्रों में जहाँ स्थायी तुषार भूमि स्थित होती है, व्यापक रूप से जलोढ़ पंख पाये जाते हैं। अक्षांश: भूम्रन्थ सेवा से उत्तर या दक्षिण पर स्थित किसी बिन्दु की पृथ्वी के केन्द्र से मापी गयी दूरी को अक्षांश कहते है।

गरजती चालीसा : 400 और 500 दक्षिणी अक्षांशों के मध्य बहने वाली पछुवा हवाओं का क्षेत्र जहाँ स्थलीय बाधाओं के अति का कारण महासागरीय भाग में इन हवाओं का वेग तीव्र हो जाता है।

स्थल समीर: सागर के तटीय क्षेत्रों में रात्रि में स्थल से सागर और बहने वाली पवन को स्थल समीर कहते हैं।

कुमायूँ हिमालयः यह सतलुज एवं काली नदी के बीच स्थित हैं। इसका विस्तार 320 किमी. लम्बाई में है। गंगा एवं यमुना हिमालय के इसी भाग से निकलती है।

अरावली पर्वतः यह एक अवशिष्ट पर्वत है। यह विश्व का प्राचीनतम मोड़दार पर्वत है। यह दिल्ली से गुजरात तक फैला हुआ है।

कोंकण रेलवे परियोजना: गोवा, महाराष्ट्र तथा केरल के बीच रेलवे मार्ग द्वारा लिंक प्रदान करने वाली परियोजना है। इस परियोजना में आष्टा से मंगलौर के बीच 760 किमी. की दूरी सम्मिलित है।

थालघाट: यह नासिक को मुंबई से जोड़ने का संपर्क मार्ग है। भिलाई: छत्तीसगढ़ में अवस्थित लौह इस्पात के लिए प्रसिद्ध इस नगर में दूसरी पंचवर्षीय परियोजना में सोवियत संघ की सहायता से लौह इस्पात उद्योग की स्थापना की गयी। बोंगाई गांव: यहाँ कच्चे तेल को साफ करने का कारखाना है। यह असम में स्थित है। यहाँ कच्चा तेल डिग्बोई से लाया जाता है।

नाथूला: यह सिक्किम में स्थित एक दर्रा है। यह दार्जिलिंग और चुंबी घाटी से होकर तिब्बत जाने का मार्ग है। वर्तमान में चीन से इस दरें से होकर व्यापार किया जा रहा है।

भावर प्रदेशः यह शिवालिक की तलहतों में सिंधु नदी से तीस्ता नदी के बीच अविच्छिन्न रूप से मिलता है। यहाँ कंकड़ों एवं पत्थरों की पारगम्यता काफी अधिक है जिसके कारण नदियाँ लुप्त हो जाती है।

NEERI : यह राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीरियरिंग एवं शोध संस्थान है। यह नागपुर में स्थित है।

भुजः गुजरात में कच्छ जिले का मुख्यालय है। इस क्षेत्र में प्राय: भूकंप आते रहते हैं।

भद्रावती: यह कर्नाटक के शिमोगा जिले में अवस्थित लौह इस्पात उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कच्चा लोहा बाबा बूदन की पहाड़ियों से लाया जाता है।

भाखड़ा नांगल परियोजना: सतलुज नदी पर निर्मित एक बहुउद्देशीय परियोजना है। इसके जलाशय का नाम गोविन्दसागर है। इस परियोजना से हिमाचल प्रदेश पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान को बिजली प्राप्त होती है।

केप कैमोरिनः तमिलनाडू का दक्षिणी छोर जहाँ अरब सागर, हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी का जल मिलता है।

वुलर झील: यह कश्मीर की घाटी में श्री नगर के पूर्वी भाग पर अवस्थित, झेलम नदी द्वारा निर्मित गोखुर झील है। इसके

चारों ओर श्रीनगर का विस्तार हो गया है।

तराई प्रदेशः इसका विस्तार भावर प्रदेश के दक्षिण में है जहाँ महीन कंकड़, पत्थर, रेत, चिकनी मिट्टी का निक्षेप मिलता है। तराई प्रदेश में भावर प्रदेश को लुप्त नदियाँ पुनः सतह पर प्रकट हो जाती है।

कार्डमम पहाड़ियाँ: केरल तथा तमिलनाडु की सीमा पर अवस्थित यह पहाड़ियाँ इलायची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

चिल्का झील: चिल्का भारत की सबसे बड़ी लैगून खारे पानी की झील है। उड़ीसा के तट पर स्थित यह झील वर्तमान में अत्यंत प्रदूषित हो चुकी है।

डाचीगाम नेशनल पार्क: श्रीनगर के निकट डाचीगाम नेशनल पार्क अवस्थित है। यह नेशनल पार्क कस्तूरी मृग एवं तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है।

संवहनीय वर्षाः स्थानीय तापमान वृद्धि के कारण संवहनीय वर्षा होती है। वायु गर्म होकर ऊपर उठती है और ठंडी होकर स्थानीय रूप से वर्षा करती है।

काली मृदा: इसे ‘रेगुर’ एवं ‘कपास मृदा’ के नाम जाना जाता है। इस मृदा का निर्माण लावा पदार्थ के विखंडने से हुआ है। यह मिट्टी गीली होने पर काफी चिपचिप हो जाती हैं। सूख जाने पर इसमें दरारें पर जाती हैं।

ज्वारीय वनस्पतिः इस प्रकार की वनस्पति तट एवं निम्न डेल्टाई भागों में पायी जाती है, जहाँ उतारे के कारण नमकीन जल का फैलाव होता है। बनिहाल दर्रा पीरपंजाल पर्वत श्रेणी में स्थित यह दर्रा जम्मू को कश्मीर से जोड़ता है।

इंदिरा गांधी नहर: यह सतलुज एवं व्यास नदियों के संगम पर स्थित हरिके बैराज से निकाली गई नहर है। इंदिरा गांधी कमांड एरिया विश्व का प्रमुख कमांड एरिया है।

पीली क्रांतिः पीली क्रांति के अन्तर्गत तिलहन उत्पादन में आत्म निर्भरता प्राप्त करने की दृष्टि से उत्पादन, प्रसंस्करण और

प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम उपयोग करने के उद्देश्य से तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन प्रारंभ किया गया।

बांदीपुर नेशनल पार्क: कर्नाटक के मैसूर जिले में अवस्थित नेशनल पार्क है। यहाँ हिरण, मगरमच्छ आदि को संरक्षण प्रदान किया गया है।

बांगरः यह पुराने जलोढ़ से निर्मित मैदान है इस भाग में बाढ़ का पानी सामान्यतः नहीं पहुँच पाता है।

बैरनद्वीपः अंडमान के पूर्वीभाग में अवस्थित यह द्वीप एक सक्रिय ज्वालामुखी है। ऑपरेशन फ्लड: श्वेत क्रांति के अंतर्गत दूध उत्पादन को बढ़ाने हेतु ऑपरेशन फ्लड आरंभ किया गया। ऑपरेशन फ्लड सूत्राधार वर्गीस कुरियन है।

CAZRI: यह केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र शोध संस्थान है। यह जोधपुर में स्थित है।

अलिया बंट द्वीपः खंबात की खाड़ी में नर्मदा एवं तापी नदियों के मुख के समीप स्थित गुजरात का द्वीप है। इस द्वीप से भड़ौच बंदरगाह के विकास में सहायता मिली।

अनाईमुडी शिखरः तमिलनाडु एवं केरल को सीमा पर अवस्थित यह शिखर भारतीय प्रायद्वीप की सबसे ऊँची चोटी है। मानसूनी जंगलों से ढँकी इस शिखर की ढलानों पर अनेकों जनजातियाँ रहती है।

आनन्द: गुजरात का एक नगर है। यह दुग्ध उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।

धौलाधर पर्वत श्रेणी: जम्मू कश्मीर से हिमांचल प्रदेश तक फैली यह लघु हिमालय की एक श्रेणी है। यह चीड़ एवं देवदार के जंगलों की है। डलहौजी एवं कुल्लू मनाली जैसे पर्यटन स्थल ) पर्वत श्रेणियों में ही विकसित हुए हैं।

दुधवा नेशनल पार्क: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में फैला हुआ राष्ट्रीय उद्यान है। इस उद्यान में चीता, तेंदुआ आदि

साथ ही साथ साल के पुराने वृक्षों को संरक्षित किया गया

एर्नाकुलमः केरल का एक जिला है। भारतीय नौसेना का एक मुख्यालय है। इस बंदरगाह नगर में जलपोत निर्माण, रासायनिक खाद्य और सुतीवस्त्र के कारखाने है।

गंगोत्री: ग्लेशियर गंगोत्री ग्लेशियर से भागीरथी नदी का उद्गम होता है यह हिमनद प्रतिवर्ष लगभग 500 मीटर की दर से पिघल रहा है।

गिर नेशनल पार्क: गुजरात में स्थित गिर नेशनल पार्क एशियाई शेरों के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान में यहाँ शेरों की संख्या में कमी दर्ज की जा रही है।

हल्दियाँ: हुगली नदी के मुख पर अवस्थित एक बंदरगाह है। यहाँ तेल शोधक कारखाना भी है। इस बंदरगाह के बनने से

कोलकाता बंदरगाह के दबाव में कमी आयी है।

हुसैन सागर: हैदराबाद में स्थित मानव निर्मित झील है। यह झोल मूसी नदी को एक सहायक नदी पर बनायी गयी है। इससे हैदराबाद को जलापूर्ति की जाती है।

जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह : मुम्बई बंदरगाह के भार को कम करने के लिए उसके निकट यह बंदरगाह स्थापित किया गया है। इस बंदरगाह में अत्याधुनिक सुविधायें उपलब्ध है।

जोग जलप्रपातः यह जलप्रपात कर्नाटक के शिमोगा जिले में शारावती नदी पर स्थित है। यह भारत के ऊँचे जल प्रपातों में से एक है।

काकीनाड़ा: आंध्रप्रदेश में बंगाल की खाड़ी तटीय क्षेत्र पर अवस्थित एक बंदरगाह है इस बंदरगाह से लोहा, कपास, तम्बाकू आदि का निर्यात किया जाता है।

सरिस्का टाइगर रिजर्व: राजस्थान के अलवर नगर के पास अवस्थित इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघ को संरक्षण प्रदान किया गया है। बाघ के अतिरिक्त चीतल, चिंकारा एवं सांभर आदि को संरक्षित किया गया है।

शालीमार बाग: श्रीनगर की डल झील के पूर्वीतट पर अवस्थित शालीमार गार्डन एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह चिनार के वृक्षों के लिए विख्यात है।

साइलेंट वैली: केरल के पालघाट जिले में अवस्थित साइलेंट वैली अपनी जैवविविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसमें विषुवतरेखीय एवं मानसूनी वृक्षों को संरक्षण प्रदान किया गया है।

सरहिंद नहरः रावी नदी के माधवपुर बैराज से निकाली गई सरहिन्द नहर, पंजाब की मुख्य नहरों में से एक है। इस नहर से बारी दोआब (व्यास रावी नदियों का दोआब ) को सिंचित किया जाता है।

जूनागढ़: गुजरात का ऐतिहासिक एवं औद्योगिक नगर है। चीनी उद्योग, रासायनिक खाद उद्योग, सीमेंट उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।

करेवा: कश्मीर में प्लोस्टोसीन युग में अवसादी निक्षेपों से निर्मित है। करेवा की मिट्टी में कैंसर की खेती की जाती है।

लिपुलेख दर्रा : उत्तराखंड में अवस्थित यह दर्रा भारत को तिब्बत से जोड़ता है मानसरोवर तथा कैलाश पर्वत को जाने वाले यात्री इसी दर्रे का प्रयोग करते है।

महादेव की पहाड़ियाँ: मध्य प्रदेश के बैतूल तथा छिंदवाड़ा जिलों में फैली महादेव की पहाड़ियाँ, सतपुड़ा पर्वत की एक श्रेणी हैं। इसकी सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ है।

पोर्टब्लेयर: अंडमान निकोबार की राजधानी एवं प्राकृतिक बंदरगाह है। इस नगर की सेलुलर जेल ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों को दर्शाती हुई प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

कोलेरू झील: आंध्र प्रदेश में अवस्थित यह भारत की पीठे पानी की बड़ी झीलों में से एक है। इसको वाइल्ड लाइफ से घोषित किया गया है। रामसर कंवेंशन के अंतर्गत इसे बदल भी घोषित किया गया है।

गंगासागर द्वीपः सुन्दर वन डेल्टा के सामने बंगाल में अवस्थित द्वीप है। यह रायल बंगाल टाइगर मकरसंक्रान्ति के समय इस द्वीप पर एक बड़ा मेला लगता है।

साभर झील: भारत में लवणीय जल की सबसे बड़ी झील जो जयपुर नगर से 60 किमी. की दूरी पर अवस्थित है। इस झील से भारी मात्रा में नमक प्राप्त किया जाता

कोवलम बीच: तिरुवनन्तपुरम से 10 किमी. की दूरी पर अवस्थित सागरीय तट है अमावस्या एवं पूर्णिमा के दीर्घ ज्वार के समय भारी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं।

काठियावाड़ प्रायद्वीप: यह खम्भात की खाड़ी अरबसागर एवं कच्छ की खाड़ी से घिरा हुआ है। इसमें गिर नेशनल पार्क है। इसके औद्योगिक केन्द्रों में भावनगर, जामनगर जूनागढ़, राजकोट आदि प्रसिद्ध है।

सोनाई रूपा नेशनल पार्क: यह नेशनल पार्क असम में स्थित है। इसमें हाथी, गैंडा, हिरन आदि को संरक्षित किया गया है।

श्री हरिकोटा: आंध्र प्रदेश की पुलिकट झील के उत्तरी छोर पर स्थित भारत का एक मुख्य उपग्रह प्रक्षेपण केन्द्र है।

सुंदरवन: यह यूनेस्को द्वारा विश्व की धरोहर के रूप में घोषित किया गया। बायोस्फेयर रिजर्व है। सुंदरवन में मैग्रोव वनस्पतियाँ पायी जाती है।

उकाई परियोजना: यह परियोजना तापी नदी पर स्थापित की गयी है। इस बहुउद्देशीय परियोजना से गुजरात को जलविद्युत की प्राप्ति होती है।

विशाखापट्टनम: आंध्रप्रदेश के तट पर स्थित भारत का सबसे गहरा बंदरगाह है। लोहा इस्पात उद्योग तथा जलपात निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।

व्हीलर द्वीप: महानदी एवं ब्राह्मणी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में स्थित द्वीप है। इस द्वीप में मैग्रोव वनस्पति पायी जाती है।

बोम्बे हाईः यह तेल क्षेत्र मुम्बई से 175 किमी उत्तर पूर्व में अरब सागर में स्थित है। यह भारत का प्रमुख तेल क्षेत्र है।

इस क्षेत्र के तेल गंधक की मात्रा अत्यंत कम होती है।

कावारती: अरबसागर में अवस्थित लक्षद्वीप की राजधानी है। यह प्रवाल द्वारा निर्मित द्वीप पर स्थित है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 7: यह भारत का सर्वाधिक लम्बा राजमार्ग, यह वाराणसी से नागपुर, हैदराबाद, बैंगलोर को जोड़ते हुए कन्याकुमारी को जोड़ता है।

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1: इलाहाबाद से हल्दिया तक के जलमार्ग की राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1 घोषित किया गया है। इसकी लम्बाई 1620 किमी. है।

बकिंघम नहरः यह नहर कोरोमंडल तट पर मद्रास को कृष्णा डेल्टा से जोड़ती है। इसकी लम्बाई 400 किमी. है।

कंबुल लामजो नेशनल पार्क: मणिपुर की लोकतक झील के निकट स्थित एक तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान है। यह प्रसिद्ध

पर्यटन स्थल है।

अक्टूबर हीट: यह अक्टूबर महीने में अचानक उत्पन्न होने वाली असहनीय तापीय घटना है, जो लौटते हुए मानसून के तुरंत बाद उत्पन्न होती है। यह गर्मी के मौसम, जितना गर्म तो नहीं होता लेकिन यह बहुत ही असहनीय मौसम को जन्म दे देती है।

एल्बिडो: सूर्य ऊर्जा के विकिरण के पश्चात् ऊपरी सतह से परावर्तन होने की मात्रा को एल्बिडो कहते हैं। कुछ सतहें सूर्य की ऊर्जा को परावर्तित करती हैं तथा अन्य उपायों की अपेक्षा वायु को अत्यधिक गर्म करने में समर्थ होती हैं।

ग्रीन एकाउंटिंग: आर्थिक निर्णयों द्वारा पर्यावरणीय मूल्यों तथा पर्यावरणीय लाभों को संवर्धित करने का यह एक तरीका है। इसे ही प्राकृतिक संसाधन एकाउंटिंग भी कहते हैं।

चाय वृष्टिः असम में मई में नावेंस्टर के द्वारा होने वाली ‘वर्षा’ चाय की खेती के लिए लाभदायक होती है इसी कारण यह चाय वृष्टि कहलाती है।

चेरी ब्लॉसमः कर्नाटक में आई सागरीय पवनों तथा शुष्क गर्म पवनों के मिलन से अप्रैल मई माह में ‘कॉफी’ के रोपण के लिए उपयोगी स्थानीय तूफानों को ‘चेरी ब्लॉसम’ कहा जाता है।

जलवर्षा कृषि: भू-जल स्तर को उठाने के लिए वर्षा के जल के प्रवाह को रोककर भूजल स्तर के ऊपर उठाने के उपाय की जलवर्षा कृषि कहा जाता है।

ट्रक फार्मिंग: इस प्रकार की कृषि जहाँ फल, सब्जी आदि उगाए जाते हों, जिन्हें जल्दी बाजार तक पहुँचाना जरूरी होता है. अन्यथा पदार्थ के खराब होने का भय रहता है।

डीप ओसीन एसेसमेंट एण्ड रिपोटिंग सेंटर (DOARS) : यह समुद्र में 6 किमी की गहराई पर स्थापित की जाने वाली प्रणाली है, जिसमें दाबीय सेंसर भी लगे होते हैं. जिससे जल के प्रवाह को मापा जाता है। इससे सेंसर उपग्रह से जुड़े होते हैं. यही पृथ्वी तल पर संदेश पहुँचाते हैं। इसका प्रयोग सुनामी की पूर्व सूचना के लिए किया जाता है।

प्लाया: मुख्यतः समतल सतह और अप्रवाहित द्रोणी वाली छोटी झीलें होती हैं जिनमें वर्षा जल जल्दी भाप बनकर उड़ जाता है. उन्हें प्लाया कहते हैं। उदाहरणार्थ डीडवाना, कुचामन, सरगोल और खात् झोलें आदि भारत के प्लाया क्षेत्र हैं।

बादल का बीजनः बादल का बीजन वर्षा में वृद्धि करने का एक तरीका है। इन बादलों में सूक्ष्म कणों के बिखराव से प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा तेजी से बारिश होती है। बादल का बीजन दो प्रकार का होता है, एक गर्म बादल और दूसरा शरद बादल।

बोर्डोचिल्ला: असम और पश्चिम बंगाल में आई सागरीय पवनों तथा स्थानीय शुष्क पवनों के मिलन पर आने वाले स्थानीय तीव्र तूफान जो जोरदार वर्षा तथा अत्यधिक हानि करते हैं। असम में इन्हें बड़चिल्ला कहते हैं।

बॉलसनः प्रायः पहाड़ियों से घिरे अभिकेन्द्रीय अपवाह वाले विस्तृत समतल गर्त को बॉलसन कहते हैं। उदाहरणार्थ: सांभर झील (राजस्थान) प्रमुख बॉलसन है।

मृदा रूग्णता (Soil Fatigue): लंबे समय से अत्याधिक एवं अनियोजित रासायनिक उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की पैदावार में कमी ला देता है, इसे ही मृदा रूग्णता कहते हैं।

याजू नदी: यह वह नदी है जो मुख्य नदी के समानान्तर बहती है लेकिन यह कमी भी मुख्य नदी से जुड़ नहीं पाती है ‘बाजू

नदी’ कहलाती है।

रोही एवं भिटः बांगर क्षेत्रों की उपजाऊ भूमि को रोही कुछ ऊर्ध्वाधर मिट्टी के स्तूप साधारण अवस्था में भी पाये जाते हैं, जिन्हें क्षेत्रीय भाषा में भिट के नाम से जाना जाता है

विषुवः यदि सूर्य की किरणें सीधे विषुवत वृत्त पर पड़ती हैं. तब दिन और रात बराबर होते हैं. इन्हें ही विषुव कहते हैं। उदाहरणतः 21 मार्च को बसंत विषुव तथा सितम्बर को शरद विषुव होता है।

हिमानी: एक विस्तृत क्षेत्र पर बर्फ से ढका वह क्षेत्र है जिसके गुरुत्व के प्रभाव के कारण नीचे की तरफ लोन को दर्शाता है तथा नेव एवं फिन के पुनः क्रिस्टलीकरण निर्माण होता है, यह हिमानी कहलाता है।

कृषि वानिकी : यह एक उत्पादक तकनीक है, जिसमें एक भू भाग का कृषि एवं वानिकी के लिए संयुक्त उपयोग होता है। इसके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों जैसे सूर्यप्रकाश, मृदा, जल, पोषक तत्वों आदि का संतुलित उपभोग किसानों के लिए अतिरिक्त आय का प्रबंध, भोजन, चारा एवं ईंधन की अतिरिक्त उपलब्धता तथा मृदा एवं जल संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।

अल्पाइन वनस्पतिः अधिक ऊंचाईयों प्राय: समुद्र तल से 3600 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति को अल्पाइन वनस्पति कहते हैं। सिल्वर, फर, जूनियर, पाइन व वर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं। हिमरेखा के निकट अग्रसर होने पर इन वृक्षों का आकार छोटा होता जाता है। इनका उपयोग गुज्जर तथा बक्करवाल जैसी घुमक्कड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है।

जीव- आरक्षण क्षेत्र (Biosphere Reserve) : यह एक बहुउद्देशीय आरक्षित क्षेत्र है, जहाँ विशेष पारिस्थितिक तंत्र में आनुवांशिक विविधता को सुरक्षित रखा जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य, प्राकृतिक विरासत की विविधता तथा पूर्णता को इसके पूरे स्वरूप में अर्थात् प्राकृतिक वातावरण, वनस्पति एवं जीवों के रूप में बनाए रखना एवं संरक्षित रखना है। अभी तक भारत में 13 ऐसे क्षेत्रों की स्थापना हो चुकी है।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): यह एक कार्यक्रम है. जिसके अनुसार कई प्रकार की विकास परियोजनाओं के लिए उनके पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन एवं पर्यावरणीय समाशोधन प्राप्त करना अनिवार्य है। ऐसी परियोजनाएँ मुख्यतः ऊर्जा, परिवहन, खनन उद्योग आदि से संबद्ध होती है। परियोजना की स्थिति एवं प्रकृति के अनुसार अनुमोदन के दौरान कुछ सुरक्षा उपाय निर्देशित किए जाते हैं।

सुपोषणः जन को पोषक तत्वों, मुख्यत फॉस्फोरस के द्वारा संवर्द्धन, जिसे कारण जलीय पादपों का अत्यधिक विकास रहा हैं. सुपोषण कहलाता है। इसके कारण जल क्षेत्रों में – ऑक्सीजन मांग बढ़ जाती है जो पारिस्थितिकीय असंतुलन को जन्म देता है।

भोगोलिक सूचना तंत्र जी.आई.एस.): यह एक समकालीन संगणक उपकरण है, जिनका उपयोग भौगोलिक आंकड़ों के प्रक्रमण तथा विश्लेषण करने में किया जाता है। इसमें निजी संगणकों तथा कार्यस्थलों के साथ-साथ उपकरणों की संभालने तथा भौगोलिक सूचनाओं के उच्च क्षमता वाले जाल जैसे इंटरनेट, अल्पभाषी सॉफ्टवेयर शामिल हैं।

 अंतउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आई.टी.सी. जैड.): विषुवत् रेखा के निकट दो पवन पट्टियों, उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के अभिसरण का क्षेत्र आई.टी.सी. जेड कहलाता है। इस क्षेत्र का भारतीय मुख्य भूमि के ऊपर ग्रीष्म ऋतु में असामान्य स्थानातरण, मानसून के आगमन में मुख्य भूमिका निभाता है।

वृहत् बांधः बृहत् बांध वे बांध हैं जिनकी ऊंचाई नींव से शीर्ष तक 15 मीटर या उससे अधिक हो, अर्थात् जो चार तले वाले भवनों से ऊंचे हो। आजकल वृहत् बांध परियोजनाओं को सामाजिक एवं पर्यावरणीय दृष्टि से अधारणीय समझा जा रहा है।

रोपण-कृषि: वृहत पैमाने पर की जाने वाली एक फसली कृषि, जिसकी व्यवस्था कारखानों की उत्पादन व्यवस्था से मिलती-जुलती है। इसमें अधिकतर बड़े-बड़े फार्म अत्यधिक पूजी का विनियोग तथा कृषि और व्यापार में आधुनिक एवं वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी अपनाई जाती है। इस प्रकार की खेती का संबंध मुख्यतः चाय रबर, गन्ना, कोको, केला, तेल-ताड़ आदि फसलों के उत्पादन से है।

नीली क्रांति: भारत में मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी जनित विकास को नीली क्रांति कहते हैं।

कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रमः केन्द्र द्वारा प्रायोजित कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रमों 1974-75 में शुरू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई क्षमता के उपयोग में सुधार लाना और सिंचित खेती से संबद्ध सभी कार्यों का समन्वय करके सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता एवं उत्पादन में बढ़ोतरी करना था।

युग्म सुरक्षा दर: किसी भी अनुमोदित परिवार नियोजन की विधियों द्वारा बच्चे के जन्म के विरुद्ध सुरक्षित किए गए सक्षम युग्मों के प्रतिशत को युग्म सुरक्षा दर कहते हैं।

ड्रिप सिंचन: यह सिंचाई की एक विधि है, जिसमें पाइपों के एक जाल द्वारा पानी का कम दबाव पर धीरे-धीरे एवं बारबार उपयोग किया जाता है। इसमें पौधों के आधार के पास नोदकों के जरिए पानी छोड़ा जाता है ताकि जड़ क्षेत्र में अपेक्षित आर्द्रता स्थिति सुनिश्चित की जा सकें। यह विधि शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों के विरल जल संसाधन के अधिक उत्पादक – एवं प्रभावी उपयोग को संभव बनाती है।

हॉट स्पॉट्स: ब्रिटिश पारिस्थितिको विज्ञानी नार्मन मॉपर्स द्वारा 1988 में यह परिकल्पना प्रस्तुत की गई। विश्व के कुछ क्षेत्र जैव-विविधता की दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न हैं तथा साथ ही संकटग्रस्त भी हैं। ऐसे ही स्थलों को हॉट स्पॉट कहा जाता हैं। विश्व भर में ऐसे 25 हॉट स्पॉट्स की पहचान की गई हैं, जो विश्व भू-क्षेत्र के 14% पर विस्तृत हैं। भारत में दो हॉट स्पॉट्स हैं पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय

काल- बैसाखी: ग्रीष्म ऋतु में समुद्री आई पवनों एवं स्थानीय गरम और शुष्क पवनों के मिलन स्थलों पर अक्सर प्रचंड स्थानीय तूफान बन जाते हैं। इन तूफानों के साथ तेज हवाएं, मूसलाधार वर्षा और ओले आते हैं, जिनसे भारी विनाश होता है। इन तूफानों को पश्चिम बंगाल में काल बैसाखी तथा असम में बोडोंइचिल्ला कहते हैं। इन तूफानों द्वारा लाई गई वर्षा चाय की फसल एवं धान की उगती बसन्ती फसल के लिए लाभदायक है

आम्रवृष्टिः दक्षिण भारत में ग्रीष्म ऋतु में मुख्यतः अप्रैल-मई में अनियमित तड़ित झंझाओं के रूप में होने वाली वर्षा आम्र वृष्टि कहते हैं। ये शुष्क जमीनी उत्तर-पश्चिमी हवाओं) द्वारा अन्यथा शुष्क मौसम में लाए गए मानसून स्वाओं अस्थायी प्रवेश से उत्पन्न मानसून पूर्व झंझावात है

दक्षिणी प्रदोलनः यह प्रशांत महासागर एवं हिन्दू महासागर के वायु – संहतियों एवं वायुदाबों के बीच एक प्रकार के संबंध

में इंगित करता है। इससे विषुवत् रेखा को व्यापारिक पवनों द्वारा पार किए जाने का समय एवं उनकी शक्ति पता चलता है।

इससे मानसून आगमन का अनुमान लगाने में मदद मिलती है। दक्षिणी प्रदोलन एल-नीनों से भी प्रभावित होता है और साथ

मिलाकर दोनों को एनसी कहते हैं।

शहरी पुंज: यह अनवरत शहरी विस्तार को इंगित करता है। तथा सामान्यतः इसमें एक शहर एवं उसके आस-पास शहरी बहिवृद्धि शामिल होती है परन्तु दो या अधिक भौतिक रूप से जुड़े शहरों एवं उनके सुचिन्हित विस्तार को भी इसमें शामिल किया जाता है।

शहरी वानिकी: शहरी केंद्रों में अथवा उनके आस-पास की निजी एवं सरकारी जमीनों पर पेड़ों को उगाने एवं उनके प्रबंधन की प्रक्रिया को शहरी वानिकी कहते हैं। इनमें हरित पट्टी, सड़क सीमा रेखा, मनोरंजन उद्यान, वन्यजीव उद्यान आदि शामिल हैं। इनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण प्रदूषण को कम करना, मनोरंजन एवं सौन्दर्य मूल्यों को बढ़ाना है।

ला नीनो: एल-नीनो के विपरीत यह शीत सामुद्रिक धाराओं के दोलन से उत्पन्न पेरू तट के असामान्य रूप से ठंडे होने की घटना है। एल-नीनो की तरह यह भी मानसून को प्रभावित करता है।

मिश्रित कृषिः यह एक खेत में एक ही मौसम में दो या अधिक फसलों को उपजाने की प्रक्रिया है जैसे गेहूं, चना एव सरसों की रबी फसलें एक साथ ही बोई जा सकती हैं। इसमें वर्षा एवं बाढ़ वाले इलाकों में किसानों का जोखिम कम हो जाता है तथा मृदा पोषकों की आपूर्ति भी हो जाती है।

प्रसारण कृषि: यह एक कृषि विधि है, जिसमें एक ही खेत में एक ही वर्ष में विभिन्न फसल रिले पैटर्न में एक के बाद एक बोई जाती है। उदाहरणत: एक ही खेत में ज्वार, सरसों, गेहूं एवं मूंग दाल क्रमिक रूप से मई, अगस्त, अक्टूबर एवं फरवरी में बोए जाएंगे एवं सितम्बर, दिसम्बर, फरवरी एवं मई में काटे जाएंगे। इससे फसल हानि का जोखिम कम हो जाता है। तथा मिट्टी का पोषक स्तर भी बना रहता है। यह कृषि विधियों में विकास, जैसे छोटी अवधि की फसल, निश्चित सिचाई एवं खाद आदि के कारण संभव हो सकता है।

सीढ़ीनुमा कृषिः यह एक कृषि विधि है, जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों में ढालों पर सीढ़ीनुमा खेत तैयार किए जाते हैं। इससे सतही बहाव की गति धीमी हो जाने के कारण भू-क्षरण कम हो जाता है, जबकि उपलब्ध उर्वर भूमि का अधिकतम उपयोग संभव हो

आद्यमहाकल्पीय शैल समूहः इसमें पृथ्वी की सबसे पहले मी चट्टानें शामिल हैं प्रायद्वीप पर ये चट्टानें मुख्यतः तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में पाई जाती हैं। ये चट्टानें मुख्य रूप से नीस और ग्रेनाइट हैं। इनमें जीवाश्म के कोई चिन्ह नहीं मिलते हैं। ये चट्टानें हिमालय में भी पाई जाती हैं।

धारवाड़ शैल समूहः ये सबसे पहले बनी हुई अवसादी शैले हैं, जो अब कायान्तरिक रूप से मिलते हैं। इनमें भी जीवाश्म नहीं मिलते हैं। ये चट्टानें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, झारखंड, मेघालय और राजस्थान में फैली हैं। ये मध्य और उत्तरी हिमालय में भी पाई जाती हैं। इस शैल समूह में सोना, मैगनीज अयस्क. लौह अयस्क क्रोमियम, तांबा, यूरेनियम, थोरियम और अभ्रक जैसे खनिज पाए जाते हैं।

कड़प्पा शैल समूहः मुख्यतः लौह अयस्क, मैगनीज अयस्क. स्लेट और संगमरमर वाली ये चट्टानें राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में फैली हुई हैं।

विंध्वीय शैल समूहः कड़प्पा की चट्टानों पर बिछे इस शैल समूह में भवन निर्माण के लिए उपयुक्त चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, शैल और स्लेट नामक चट्टानें पाई जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के विशाल क्षेत्रों में इनका विस्तार है।

प्लेट: स्थलमंडल के मध्यम दृढ अंग, जो अधिक गतिशील एस्थेनोस्फेयर पर निरंतर तैर रहे हैं, प्लेट कहलाता है। इन प्लेटों की अभिसरण, अपसरण एवं रूपांतर गतिविधियों के कारण विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों जैसे महादेश पर्वत आदि का निर्माण होता है।

निर्वाह कृषि:  एक कृषि व्यवस्था जिसमें फसलों का उत्पादन स्व-उपयोग अथवा सामाजिक तंत्र के भीतर आनुष्ठानिक एवं औपचारिक प्रयोजनों में परिसंरचण के लिए होता है। इसके बहुत थोड़े से भाग को बाजारों में बेचा जाता है। भारत में कृषि का एक बड़ा अंश इस व्यवस्था के अंतर्गत आता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातः वे चक्रवात महासागरों के ऊपर, उत्तरी एवं दक्षिणी दोनों गोलाद्धों में 80 से 150 अक्षांश के मध्य उत्पन्न होते हैं। ये व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर संचलन करते हैं। इनकी प्रमुख जलवायविक विशेषता व्यापक वर्षा करना है, जो मुख्यतः मूसलाधार एवं कम क्षेत्रफल को घेरने वाली होती हैं। ये अपनी उग्रता एवं व्यापक विनाशक क्षमता के लिए विख्यात है। भारत में इनकी प्रचंडता का सर्वाधिक अनुभव बंगाल की खाड़ी में पूर्वी तट पर होता है।

अग्नि-वलय: ज्वालामुखियों की सबसे लम्बी श्रृंखला, जिसका निर्माण प्रशांत महासागर को घेरने वाली अभिसारी प्लेटों की निरंतर गतिविधियों के कारण हुआ है, को अग्नि-वलय कहते हैं।

पश्चिमी विक्षोभ: ये भूमध्य सागर तथा पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होने वाले निम्न दाब प्रक्रम हैं, जो पूर्व की ओर आगे बढ़ते हैं और भारत में पछुआ जेट स्ट्रीम द्वारा लाए जाते हैं। इनमें मैदानी भागों में बहुप्रतीक्षित वर्षा तथा हिमालय क्षेत्रों में हिमपात होता है। यह वर्षा रबी की फसल के लिए बहुत मूल्यवान हैं।

क्वार की उमसः अक्टूबर-नवम्बर के महीने में मानसून के पीछे हटने से आसमान स्वच्छ हो जाता है एवं तापमान बढ़ जाता है जिसके कारण उच्च तापमान एवं आर्द्रता की दशाएं उत्पन्न हो जाती हैं। परिणामस्वरूप दिन का मौसम कष्टदायक हो जाता है, जिसे सामान्य भाषा में क्वार की उमस कहते हैं।

ईको मार्क: उन उपभोक्ता उत्पादों पर लेबल लगाने के लिए ईको मार्क लेबल की शुरूआत की गई है. पर्यावरण अनुकूल होते हैं। मंत्रालय ने विभिन्न उत्पादों मानदंडों से सम्बन्धित 18 अधिसूचनाएं जारी की हैं।

नागार्जुनसागर परियोजना: आंध्र प्रदेश राज्य में कृष्णा नदी पर बनौ नागार्जुनसागर परियोजना एक बहु उद्देशीय नदी घाटी परियोजना नदी घाटी परियोजना है, जिससे इस मुख्यत: सिंचाई की सुविधा एवं विद्युत शक्ति प्राप्त होती है।

हीराकुंड परियोजना: हीराकुंड परियोजना उस राज्य के महानदी नामक नदी पर बनाई गई है। यह विश्व का सबसे बड़ा मेनस्ट्रीम डैम है। यह एक बहुउद्देशीय परियोजना हैं। हीराकुंड परियोजना से छोड़े गये पानी के उपयोग के लिए महानदी डेल्टा में सिंचाई स्कीम चलाई जा रही है।

हिमनद: हिमनद धीमी गति से चलने वाली बर्फ की नदी है, जो प्रायः स्नों लाइन के ऊपर पायी जाती है। यह गुरुत्वाकर्षण के बल के कारण धीरे-धीरे चलती रहती है। गंगोत्री हिमनद या गोमुख भारत की गंगा नदी का स्रोत हैं हिमनद के द्वारा जब एक गहरे U टर्फ का निर्माण होता है, तब हैंगिंग वैली बनती है। हाल के दिनों में गंगोत्री हिमनदी अपने आकार को लेकर काफी चर्चित रही है।

झूम कृषिः झूम कृषि को स्थानांतरित कृषि भी कहा जाता है। इसका प्रचलन आदिम जनजातियों में हैं खेती के लिए वनस्पतियों को जला दिया जाता है और कृषि कार्य किया जाता है। दो वर्ष के बाद जब उस जगह की उर्वर क्षमता घटने लगती हैं, तो निवासी कहीं अन्यत्र चले जाते हैं। झूम कृषि के चलते पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम मिट्टी का अपरदन है। जिस जगह की वनस्पति को जलाया जाता है, वहाँ ऐसी झाड़ियां उग जाती है जो आर्थिक दृष्टि से अनुपयोगी होती है।

खेतड़ी तांबा परियोजनाः खेतड़ी तांबा परियोजना, राजस्थान के झुंझनू जिले में स्थित है। हिन्दुस्तान कापर लिमिटेड द्वारा यह परियोजना निर्देशित होती है।

सबरकंथा और वनासकथाः सवरकथा एवं वनासकथा गुजरात के दो जिले है। सबरकथा सुखग्रस्त क्षेत्र है एवं यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। वनासंकथा इन डेयरी वाथियारी बैल एवं कंकराज गाय के लिए प्रसिद्ध है।

भारत में शीतकालीन वर्षा: भारत में शीतकालीन वर्षां भूमध्यसागर एशिया में उठने वाले अवदावों के प्रभाव से होती हैं। ये अवदाब मध्य एशिया ईरान तथा अफगानिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश करते हैं तथा उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भारत तथा हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों में वर्षण करते है।

न्यूमूरे द्वीपः यह शाल की खाड़ी में गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा स्थित एक द्वीप आरत एवं बांग्लादेश के बीच दावे-प्रतिदावे के कारण विवा जहा

राष्ट्रीय जल ग्रिडः राष्ट्रीय जल ग्रिड जल वितरण की एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा जलाधिक्य वाले क्षेत्रों से जलाभाव वाले की ओर जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। हाल ही में नदी जोड़ो परियोजना’ को भी इसी उद्देश्य से शुरू किया गया है।

इनसेप्टिसोल: यह नवीन मृदा वर्गीकरण के अन्तर्गत मृदा (मिट्टी) का एक प्रकार है। यह भूरी मिट्टी है, जिसकी मृदा परिच्छेदिका अविकसित होती है। इस मिट्टी में एल्युमिनियम एवं लोहे की कमी होती है।

जारवा: जारवा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की आदिम जनजाति है। वर्तमान इस जनजाति है। वर्तमान में इस जनजाति के विलुप्त हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया हैं।

इंदिरा प्वाइंट: इंदिरा प्वांइट भारत का दक्षिणतम बिन्दु है। यह निकोबार द्वीप समूह पर स्थित है।

चंबल खड्ड (रेबिनों): चंबल नदी के खड्डे अवनालिका अपदरन के परिणाम है। जब जल डालदार अथवा निम्न भूमि पर बहती है, तो मिट्टी को यह कुछ गहराई तक काट डालती है जिससे नालीदार खड्डों का कालान्तर में निर्माण हो जाता है। कार्बनिक कृषि:

कार्बनिक कृषि: खेती का वह तरीका है जिसमें मृदा की उत्पादकता बनाये रखने एवं कीट नियमन हेतु फसल चक्र, हरित साधनों, कम्पोस्ट, जैविक कीट नाशकों तथा यांत्रिक जुताई पर निर्भर रहा जाता है। इस कृषि में संश्लेषित उर्वरकों का सीमित प्रयोग किया जाता है।