विधायी संशोधन तथा ब्रिटिश इंडिया एक्ट, 1935

विधायी संशोधन तथा ब्रिटिश इंडिया एक्ट, 1935 (Legislative Amendments and British India Act, 1935)

  • ब्रिटिश सरकार ने कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुप्रशासन को दूर करने के लिए 1773 ई. का रेग्युलेटिंग एक्ट (Regulating Act of 1773 AD ) पारित किया।
  • रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 के द्वारा (By Regulating Act, 1773 ) सर्वप्रथम कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई, इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा 3 अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई।
  • उच्चतम न्यायालय 1774 ई. में गठित (Supreme Court formed in 1774 AD ) किया गया और एलिजा इम्पे इसके मुख्य न्यायाधीश तथा चेम्बर्ज, लिमेस्टर एवं हाइड अन्य न्यायाधीश नियुक्त हुए।
  • 1786 के अधिनियम (Acts of 1786 ) के अनुसार, विशेष अवस्था में गवर्नर जनरल को अपनी परिषद के निर्णयों को रद्द करने तथा अपने निर्णयों को लागू करने का अधिकार भी दे दिया गया।
  • कार्नवालिस, (Cornwallis )जिला कलेक्टरों को अधिक शक्तिशाली नहीं बनने देना चाहता था, अतः उसने शक्ति के पृथक्करण’ (‘separation of power’ )सिद्धांत को अपनाया।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय व्यापार के एकाधिकार को (चाय एवं चीन के साथ व्यापार के अतिरिक्त) 1813 के चार्टर एक्ट (Charter Act of 1813 ) द्वारा समाप्त किया गया था।
  • 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा भारत में शिक्षा पर एक लाख रुपये वार्षिक खर्च करने का प्रावधान किया गया।
  • चार्टर एक्ट, 1833 (Charter Act, 1833) द्वारा कंपनी के सभी वाणिज्यिक अधिकार समाप्त कर दिए गए तथा उसे भविष्य में केवल राजनैतिक कार्यही करने थे।
  • 1833 के अधिनियम (act of 1833 )द्वारा बंगाल का गवर्नर जनरल अब समूचे भारत का गवर्नर जनरल बन गया।
  • 1833 के अधिनियम (act of 1833 ) द्वारा कानून बनाने के लिए गवर्नर जनरल की परिषद में एक कानूनी सदस्य चौथे सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया।
  • 1858 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act of 1858 )(गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858) द्वारा भारतीय प्रशासन का नियंत्रण कंपनी से छीनकर ब्रिटिश राजमुकुट को सौंप दिया गया।
  • इंडियन काउंसिल एक्ट, 1861 (Indian Council Act, 1861) के द्वारा गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान कर दी गई।
  • ये अध्यादेश अधिकाधिक 6 माह (ordinance maximum 6 months ) तक लागू रह सकते थे।
  • 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम (Indian Councils Act of 1861 ) द्वारा वायसराय की परिषद को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जिसके तहत लॉर्ड कैनिंग ने विभागीय प्रणाली की शुरुआत की।
  • भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 (Indian Council Act, 1861)के द्वारा कानून बनाने के लिए, वायसराय की कार्यकारी परिषद में न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति से उसका विस्तार किया गया।
  • बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता उच्च न्यायालयों की स्थापना ब्रिटिश संसद द्वारा पारित 1861 के भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम के तहत 1862 में की गई थी।
  • मांटेग्यू चेम्सफोर्ड की संस्तुति के आधार पर ही वर्ष 1922 से सिविल सेवा परीक्षा इंग्लैंड एवं भारत में एक साथ आयोजित की जाने लगी।
  • भारत में प्रांतों में द्वैध शासन (dual rule in the provinces )का प्रारंभ मांट-फोर्ड (मांटेग्यू- चेम्सफोर्ड) सुधारों (1919) से प्रारंभ किया गया, जिसे भारत सरकार अधिनियम, 1919 भी कहा जाता है।
  • वर्ष 1926 में (in the year 1926 ) भारत में एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
  • 1935 के अधिनियम के तहत (Under the Act of 1935 )लोक सेवा आयोग के स्थान पर संघीय लोक सेवा आयोग का गठन हुआ।
  • वर्ष 1937 से संघीय लोक सेवा आयोग (Federal Public Service Commission since 1937 )ने ब्रिटिश लोक सेवा आयोग से स्वतंत्र परीक्षा आयोजित करना प्रारंभ किया।
  • वर्ष 1950 में संविधान के लागू होने के बाद संघीय लोक सेवा आयोग (FPSC) का नाम बदलकर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) कर दिया गया।
  • 1935 के अधिनियम के द्वारा (by the 1935 act ) प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर, प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गई एवं केंद्र में द्वैध शासन लागू किया गया।
  • भारत का वर्तमान संवैधानिक ढांचा बहुत कुछ 1935 के अधिनियम पर आधारित है।
  • 1935 के अधिनियम के बारे में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था-“एक कार जिसमें ब्रेक तो है पर इंजन नहीं (“A car that has brakes but no engine.”)।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने लखनऊ अधिवेशन, 1936 भारत सरकार अधिनियम, 1935 को अस्वीकार किया था।
  • पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारत सरकार अधिनियम, 1935 को “गुलामी का अधिकार” या “दासता का आज्ञा पत्र” (“Right to Slavery” or “Mandate of Slavery”)बताते हुये उसकी कठोर आलोचना की।