मिश्रित अर्थव्यवस्था का विकास :निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र (Development of mixed economy: private and public sector)

  • उत्पादन के आधार पर अर्थव्यवस्था 1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था, 2. राज अर्थव्यवस्था तथा 3. मिश्रित अर्थव्यवस्था
  • एडम स्मिथ की प्रसिद्ध पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ (The Wealth of Nations) का प्रकाशन 1776 ई. में हुआ था। मिश्रित अर्थव्यवस्था की धारणा को प्रतिपादित करने का श्रेय जॉन मेनार्ड कीन्स को है।
  • प्राथमिक क्षेत्र के तहत कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र आते हैं।
  • द्वितीयक क्षेत्र में विनिर्माण एवं निर्माण गतिविधियों को सम्मिलित किया जाता है।
  • तृतीयक क्षेत्र में बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन इत्यादि सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है। इस क्षेत्र को ‘सेवा क्षेत्र’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्र विद्यमान होते हैं – मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था, मिश्रित अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख उदाहरण है।

हरित क्रांति

(Green Revolution)

  • हरित क्रांति भारत में कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में तीव्र वृद्धि @ लाकर भारत को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने हेतु अनेक कार्यक्रमों का एक समुच्चय था।
  • मैक्सिको के एक वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग ने बीजों पर अनुसंधान कर अधिक उत्पादकता वाले बीजों (HYV) की खोज की।
  • इन बीजों को उचित सुविधाएं एवं संरक्षण मिलने पर इनसे काफी अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त किया जा सकता था।
  • इसी कारण बोरलॉग को हरित क्रांति का जनक माना जाता है।
  • भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले एम. एस. स्वामीनाथन ने मैक्सिको की पद्धति को भारत में भी अपनाने पर बल दिया तथा भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाने की नींव रखी।
  • हरित क्रांति एक पैकेज कार्यक्रम था, जिसके अंतर्गत उच्च उत्पादकता वाले बीजों (HYV) को उर्वरक एवं सिंचाई के माध्यम से पोषण दिया गया तथा कीटनाशकों के माध्यम से इसे संरक्षित किया गया।
  • इसके अतिरिक्त कृषि को आधुनिक एवं वैज्ञानिक बनाने हेतु कृषि में मशीनीकरण को भी बढ़ावा दिया गया।
  • प्रायोगिक तौर पर वर्ष 1960-61 में गहन कृषि जिला कार्यक्रम के तहत इसे अपनाया गया तथा 1966 से इसे पूरे देश में लागू किया गया।
  • द्वितीय हरित क्रांति में फसलों के दायरे तथा क्षेत्रों में वृद्धि के साथ-साथ कृषि पद्धति को सम्पोषणीय बनाने हेतु कार्बनिक कृषि को अपनाने पर जोर दिया गया है।
  • इसमें पूर्वी उत्तर भारत सहित अनेक ऐसे क्षेत्रों पर फोकस किया गया है जहां संभाव्यता तो है, परंतु हरित क्रांति सफल नहीं हो पाई थी।
  • इसमें दलहन जैसी फसलों के उत्पादन पर भी फोकस किया गया है।

कृषि वित्त

  • कृषि वित्त की आवश्यकता अलग-अलग समस्याओं के लिए होती है।
  • अल्प अवधि में कृषि आगतों (Inputs) के लिए अल्पवधि ऋ (15 माह से कम) मशीनें आदि खरीदने हेतु मध्यवधि ऋण (1 माह 5 वर्षों हेतु) तथा भूमि स्थायी सुधार करने, बड़ा निर्दे – करने आदि जैसी जरूरतों के लिए 5 वर्ष से अधिक अवधि है लिए दीर्घावधिक ऋणों की आवश्यकता होती है।

कृषि वित्त के स्रोत

        1. संस्थागत स्रोत

  • संस्थागत स्रोतों में कृषि वित्त की सर्वोच्च संस्था कृषि एवं ग्राम विकास बैंक (नाबार्ड) है।
  • इसकी स्थापना 1982 में की गई थी। यह प्रत्यक्ष तौर पर ऋण देकर कृषि ऋण देने वाली संस्थाओं का विनियमन करती है।

2. गैर-संस्थागत स्रोत

  • महाजन / साहूकार, मित्र / संबंधी जमींदार, व्यापारी आदि ।
  • स्वतंत्रता के समय इनकी भूमिका काफी अधिक थी।
  • कृषि वित्त के संस्थागत स्रोतों में वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंक तथा सरकार हैं।
  • वर्ष 2018-19 में कृषि वित्त में सर्वाधिक योगदान वाणिज्यिक बैंको (75.68%) का है। इसके बाद शीर्ष स्थान सहकारी बैंकों (12.26%) एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (12.05%) का स्थान है।

दुग्ध विकास एवं ऑपरेशन फ्लड

(Milk Development and Operation Flood)

  • ऑपरेशन फ्लड II दुग्ध आपूर्ति से संबंधित है।
  • श्वेत क्रांति दुग्ध उत्पादन से संबंधित है।
  • कृष्ण क्रांति पेट्रोलियम (Petroleum) उत्पाद से संबंधित है।
कृषि क्रांतिउत्पादन क्षेत्र
हरित क्रांति
श्वेत क्रांति
पीली क्रांति
नीली क्रांति
रजत क्रांति
लाल क्रांति
रजत रेशा क्रांति
स्वर्ण रेशा क्रांति
गोल्डेन क्रांति
भूरी (धूसर ) क्रांति गोल क्रांति
गुलाबी क्रांति
खाद्यान्न उत्पादन
दुग्ध उत्पादन
तिलहन उत्पादन
मत्स्य उत्पादन
अंडा / मुर्गी पालन
मांस एवं टमाटर उत्पादन
कपास उत्पादन
जूट उत्पादन
फल उत्पादन
उर्वरक उत्पादन
आलू उत्पादन
प्याज, झींगा उत्पादन