हिन्दी की सामान्य अशुद्धियाँ

देवनागरी लिपि अन्य लिपियों की तुलना में सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि स्वीकार की गई है। जहाँ इसमें सभी ध्वनियों को व्यक्त करने की क्षमता है, वहीं दूसरी तरफ एक ध्वनि की अभिव्यक्ति हेतु एक ही लिपिचिह्न है। किन्तु अज्ञानतावश लोग कतिपय लिपि एवं उच्चारण सम्बन्धी त्रुटियाँ कर बैठते हैं। जिससे वर्तनी की अशुद्धियाँ हो जाती हैं। वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ वाक्य को दोषपूर्ण बना देती हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा और लेखन में आमतौर पर पाई जाने वाली वर्तनीगत अशुद्धियों का विवरण परीक्षोपयोगी दृष्टि से आगे प्रस्तुत किया जा रहा है।

वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ अनेक प्रकार से हो सकती हैं; जैसे- स्वर एवं मात्रा सम्बन्धी – मालुम (शुद्ध – मालूम ), परिक्षा (शुद्ध-परीक्षा) आदि।

व्यंजन सम्बन्धी – बड़ई (शुद्ध-बढ़ई), योधा (शुद्ध-योद्धा) आदि । उपसर्ग सम्बन्धी — निरजन (शुद्ध-निर्जन), अनचेत (शुद्ध-अचेत) आदि । समास सम्बन्धी – अहोरात्रि ( शुद्ध – अहोरात्र), अष्टवक्र (शुद्ध- अष्टावक्र) आदि।

प्रत्यय सम्बन्धी – धैर्यता (शुद्ध-धैर्य), आधीन (शुद्ध-अधीन) आदि ।

संधि सम्बन्धी—उपरोक्त (शुद्ध-उपर्युक्त), अत्योक्ति (शुद्ध-अत्युक्ति) आदि।

अव्यय सम्बन्धी- मेरे को (शुद्ध-मुझे), अनुवादित (शुद्ध – अनूदित ) आदि।

लिंग सम्बन्धी- घोड़ा से घोड़िन (शुद्ध-घोड़ी)।

वचन सम्बन्धी – पाँच बहन (पाँच बहनें)।

कारक सम्बन्धी- मेज में (शुद्ध-मेज पर)।

ब’ और ‘व’ की अशुद्धियाँ

ब और व के प्रयोग सम्बन्धी हिन्दी में बहुतायत अशुद्धियाँ दृष्टिगत होती हैं। इसका महत्त्वपूर्ण कारण है- शब्दों का अशुद्ध उच्चारण। जहाँ तक दोनों शब्दों के उच्चारण का प्रश्न है- ‘ब’ के उच्चारण में होंठ जुड़ जाते हैं, वहीं ‘व’ के उच्चारण में नीचे का होंठ ऊपर वाले दाँतों के अगले भाग के निकट पहुँच जाता है और साथ ही साथ दोनों होंठों का आकार गोला हो जाता है, किन्तु वे आपस में मिलते नहीं हैं।

ठेठ हिन्दी में ‘ब’ वाले शब्दों की अधिकता है जबकि संस्कृत में इसके ठीक विपरीत ‘व’ वाले शब्दों की अधिकता है। यद्यपि यह कि हिन्दी में संस्कृत से बहुतायत शब्द ग्रहण किए हैं।

संस्कृत के ‘ब’ उच्चारण वाले कतिपय प्रमुख शब्द है- बर्बर, ब्राह्मण, बुभुक्षा, बहु, बन्धु। ‘ण’ और ‘न’ सम्बन्धी अशुद्धियाँ

वस्तुतः ‘ण ं का प्रयोग प्रायः संस्कृत शब्दों में ही होता है और जिन तत्सम शब्दों में ‘ण’ होता है, उनके तद्भव में ‘ण’ के स्थान पर ‘न’ प्रयुक्त हो जाता है; उदाहरणार्थ- कण-कन, फण-पन्,

विष्णु – विसनु, रण-रन |

खड़ी बोली में भी ‘ण’ और ‘न’ का प्रयोग संस्कृत नियमों के अनुसार ही होता है किन्तु पंजाबी एवं राजस्थानी भाषा में ‘ण’ का ही उच्चारण किया जाता है।

ण’ और ‘न’ विशेष ध्यातव्य तथ्य

(i) संस्कृत भाषा की जिन धातुओं में ‘ण’ होता है उनसे बने शब्दों में भी ‘ण’ ही रहता है; उदाहरण के लिए क्षण. वरुण, निपुण, गुण, गण आदि ।

(ii) कतिपय तत्सम शब्दों में प्रायः ‘ण’ ही होता है; जैसे- कोण, गुण, गणिका, मणि, माणिक्य, बाण, वाणी, वणिक, वीणा, वेणु, लवण, क्षण इत्यादि ।

(iii) यदि किसी एक ही शब्द में ॠ, र् और ष् के उपरांत न हो तो न् के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है चाहे इनके बीच कोई स्वर च्, व्, ह, क वर्ग, प वर्ग का वर्ण या अनुस्वार आया हो; उदाहरणार्थ – ऋण, कृष्ण, भूषण, रामायण, श्रवण, विष्णु, उष्ण आदि । किन्तु ध्यातव्य है कि इनसे कोई भिन्न वर्ण आए तो ‘ण’ का ‘न’ हो जाता है; जैसे रचना, प्रार्थना, मूर्च्छना, अर्चना इत्यादि ।

‘छ’ और ‘क्ष’ सम्बन्धी अशुद्धियाँ

जहाँ ‘क्ष’ एक संयुक्त व्यंजन है वहीं ‘छ’ एक स्वतंत्र व्यंजन। ‘क्ष’, क् और ‘ष्´ के मेल से बना है। यह व्यंजन संस्कृत एवं हिन्दी के तत्सम शब्दों में सर्वाधिक प्रयुक्त होता है; जैसे- समीक्षा, परीक्षा, शिक्षा, दीक्षा, क्षत्रिय, निरीक्षक, अधीक्षक आदि ।

‘श, ‘ष’ और ‘स’ सम्बन्धी अशुद्धियाँ

वस्तुतः श, ष और स तीनों पृथक अक्षर हैं और इनका उच्चारण भी पृथक ही है। उनके उच्चारण सम्बन्धी दोष के परिणामस्वरूप ही वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्रायः देखने को मिलती हैं। अतएव उच्चारण में विशेष सावधानी बरतना अभीष्ट है। एतद् सम्बन्धित निम्न बातों पर सावधानी अपेक्षित है-

(i) व व्यंजन के प्रयोग केवल संस्कृत से आए तत्सम शब्दों में ही मिलते है; जैसे कृषक, भाषा, संतोष, मूषक, पीयूष, पुरुष, शुश्रूषा आदि।

(ii)  सन्धि करने में क, ख, ट, ठ, प और फ के पहले आगत विसर्ग (:) सर्वदा ‘ष’ हो जाता है।

(iii) यदि किसी शब्द में ‘स’ हो और उसके पहले ‘अ’ या ‘आ’ के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर हो तो ‘स’ के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है।

(iv) ट वर्ग के पहले केवल ‘ष’ का ही प्रयोग होता है; जैसे- षोडस, षडानन, कष्ट, नष्ट।

(v) ऋ के उपरांत प्रायः ‘ष’ ही आता है; जैसे ऋषि, कृषि, वृष्टि,वृषा।

(vi) जहाँ पर श और स एक साथ आते हैं, वहाँ पर ‘श’ पहले प्रयुक्त होता है; जैसे शासक, शासन, प्रशंसा आदि।

(vii) जिस शब्द में ‘श’ और ‘ष’ एक साथ आते हैं, यहाँ ‘श’ के उपरांत ‘ष’ आता है; जैसे शोषण, विशेष, शेष आदि।

(viii) उपसर्ग के रूप में निः वि आदि आने पर मूल शब्द का ‘स’ पहले जैसा ही बना रहता है; जैसे निस्संदेह, निःसंशय, – विस्तार, विस्तृत आदि।

(ix) कदाचित ‘सूठ’ के स्थान पर ‘स’ लिखकर और कभी शब्द के प्रारंभ में ‘सू’ के साथ किसी अक्षर का भेद होने पर अशुद्धियाँ होती हैं; जैसे-स्नान (शुद्ध)- अस्नान (अशुद्ध), परस्पर (शुद्ध)- परसपर (अशुद्ध), स्त्री (शुद्ध)- इस्त्री (अशुद्ध) आदि ।

(x) संस्कृत शब्दों में ‘च’, ‘छ’ के पहले ‘श्’ हो जाता है; जैसे- निश्छल, निश्चला

(xi) कतिपय शब्दों के रूप वैकल्पिक हुआ करते हैं जो दोनों ही शुद्ध होते हैं; जैसे कौशल्या कौसल्या, वशिष्ठ वसिष्ठ, -केशरी – केसरी, कशा – कथा आदि।

इस खण्ड में वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों पर विस्तृत जानकारी के लिए अशुद्ध एवं शुद्ध शब्दों की सूची दी जा रही है जिसका ध्यानपूर्वक अध्ययन परीक्षार्थियों के लिए लाभकारी होगा।

अशुद्धशुद्ध
अपनअर्पण
अनभिग्यअनभिज्ञ
अहारआहार
अस्विकारअस्वीकार
अपरान्हअपराह्न
अमिसेकअभिषेक
अनुग्रहीतअनुगृहीत
आधीनअधीन
अनुवादितअनूदित
अन्तर्कथाअन्तःकथा
अकृतिमअकृत्रिम
अनाधिकारअनधिकार
अनुशरणअनुसरण
आर्शीवादआशीर्वाद
अमावश्याअमावस्या / अमावास्या
अपन्हुतिअपहनुति
असुद्धअशुद्ध
अध्यनअध्ययन
आर्दआर्द्र
आल्हादआहलाद
आतीथेयआतिथेय
आकंक्षाआकांक्षा
आट्टालिकाअट्टालिका
आधिक्यताआधिक्य
अवश्यकीयआवश्यक
अर्न्तराष्ट्रीयअन्तर्राष्ट्रीय/अन्तरराष्ट्रीय
अक्षादनआच्छादन
अध्यात्मकआध्यात्मिक
आजिवकाआजीविका
अदितीयअद्वितीय
अमिसआमिष
अराधनाआराधना
आसाआशा
आसाढ़आषाढ़
अश्मसानश्मशान
उज्वलउज्ज्वल
उलंघनउल्लंघन
उतपातउत्पात
उन्नतीउन्नति
उन्मिलितउन्मीलित
उरीड़उऋण
ऊर्मीलाउर्मिला
उदिग्नउद्विग्न
उपरऊपर
उदेश्यउद्देश्य
उपलक्षउपलक्ष्य
ऐक्यताऐक्य
ऐकदन्तएकदन्त
एश्वर्यऐश्वर्य
ऐतीहासिकऐतिहासिक
कुवर कौशिल्याकुंअर
कृत्यकृत्यकौशल्या
कार्यकर्मकृतकृत्य कार्यक्रम
कृतघ्नीकृतघ्न
करोणकरोड़
केन्द्रीयकरण कियारीकेन्द्रीकरण
क्रिपाक्यारी
किर्तिकृपा
करयकीर्ति
कृप्याक्रय
कवियत्रीकृपया
कैलाशकवयित्री
कन्हैयाकैलास
कालीदासकन्हैया
कर्त्तव्यपालनकालिदास
ईर्षाकर्तव्य पालन
इश्वरईर्ष्या
उपाशनाईश्वर
उद्धरड़उपासना
गायिकीउद्धरण
गृहीणीगायकी
गौवेंगृहिणी
गाधीगाँधी
गरुणगरुड़
गरीष्ठगरिष्ठ
गोपनियगोपनीय
ग्रीहस्थगृहस्थ
गर्मीयोंगर्मियों
गावगाँव
चिहनचिह्न
चन्चलचंचल
छत्रीक्षत्रिय
छमाक्षमा
छुधाक्षुधा
छेमक्षेम
ज्योत्सनाज्योत्स्ना
जमाताजामाता
जानितिजागृति
जात्याभिमानजात्यभिमान
जगत जननीजगज्जननी / जगज्जनी
जगधात्रीजगद्धात्री
तलावतालाब
त्यज्यत्याज्य
तरुछायातरुच्छाया
तत्कालिकतात्कालिक
तृकालत्रिकाल
तालासीतलाशी
त्रिगूड़त्रिगुण
तिलांजलीतिलांजलि
दारिद्रतादरिद्रता
दांतदाँत
देश- निकालादेशनिकाला
दयालदयालु
दुरावस्थादुरवस्था
द्रस्टव्यद्रष्टव्य
दृष्यदृश्य
दोसदोष
द्रिगदृग
धनुसधनुष
धिमान्धीमान्
धराहरधरोहर
निलकंठनीलकंठ
नीवारणनिवारण
नीरवाणनिर्वाण
निस्चेस्टनिश्चेष्ट
नारायड़नारायण
नबाबनवाब
निःपराधनिरपराध
निर्दयीनिर्दय
निरसतानीरसता
निष्कपटीनिष्कपट
नराजनाराज
नारिनारी
निरोग्यनिरोग
पतीतपतित
पुष्पवलिपुष्पावली
प्रेयसिप्रेयसी
प्रदर्शनीप्रदर्शनी
प्रतीज्ञाप्रतिज्ञा
प्रत्यछप्रत्यक्ष
प्रशन्नप्रसन्न
प्राशादप्रासाद
पुरष्कारपुरस्कार
पोशकपोषक
पद्मीनीपद्मिनी
परिछेदपरिच्छेद
पुस्पपुष्प
परिनामपरिणाम
पृष्टपृष्ठ
पारड़पारण
पयपानपयःपान
पिता भक्तिपितृभक्ति
पैत्रिकपैतृक
परीच्छापरीक्षा
पुजापूजा
पौरुसपौरुष
परिसदपरिषद
परेमप्रेम
पुलिंगपुल्लिंग
पिशाचिनीपिशाची
प्रादेसिकप्रादेशिक
पूर्णयपूर्ण
प्राप्तीप्राप्ति
प्रमाणिकप्रामाणिक
प्रनामप्रणाम
प्राज्वलितप्रज्वलित
प्रतिछायाप्रतिच्छाया
प्रसंसाप्रशंसा
वृक्षवृक्ष
वीराजमानविराजमान
वाल्मीकीवाल्मीकि
विरहीणीविरहिणी
दाहनीवाहिनी
ब्रम्हाब्रह्मा
वीधिविधि
व्यापितव्याप्त
बहुल्यताबहुलता
विश्लेसणविश्लेषण
बहिस्कारबहिष्कार
विषेसविशेष
भस्मिभूतभस्मीभूत
भव-सागरभवसागर
महात्ममाहात्म्य
म्रित्युञ्जयमृत्युञ्जय
मान्यनीयमाननीय
मनोग्यमनोज्ञ
मेनहतमेहनत
मन्त्रीमंडलमन्त्रिमंडल
मट्टीमिट्टी
महायग्यमहायज्ञ
यद्यपियद्यपि
योधायोद्धा
यसयश
यावत जीवनयावज्जीवन
यशलाभयशोलाभ
यसस्वीयशस्वी
राजनैतिकराजनीतिक
राजागणराजगण
रीतुऋतु
राजऋषिराजर्षि
रिणऋण
विश्वभरविश्वम्भर
विसमृतविस्मृत
वीदेहविदेह
विकाशविकास
विशमविषम
वेषदेश
व्यवहारिकव्यावहारिक
शिरोपींड़ाशिरः पीड़ा
शशीशशि
शताब्दिशताब्दी
शान्तमयशान्तिमय
साप्ताहीकसाप्ताहिक
सन्याससंन्यास
स्वास्थस्वास्थ्य
साम्यतासाम्य
सन्मुखसम्मुख
संग्रहितसंगृहीत
सर्वस्यसर्वस्व
हतिबुद्धहतबुद्धि
हस्तछेपहस्तक्षेप
हिरण्यकश्यपुहिरण्यकशिपु
ऋषीकेसऋषिकेश
स्वक्षस्वच्छ
सन्चारसंचार
स्थितीस्थिति
सहस्त्रसहस्र
सतीगुणसत्वगुण
सम्भवतहसम्भवतः
स्थाईस्थायी
सम्वादसंवाद
सौन्दर्यतासुन्दरता
सवारनासंवारना
सम्राज्यसाम्राज्य
सौजन्यतासौजन्य
सार्वजनीकसार्वजनिक
स्वालम्बनस्वावलम्बन
साहीत्यिकसाहित्यिक
सन्मानसम्मान
दृष्टाद्रष्टा
जागृतजाग्रत
सृष्टास्रष्टा
अनुदितअनूदित
सुश्रुषाशुश्रूषा
पैत्रिकपैतृक
विक्षवृक्ष
ऐषणाएषणा
एकान्तिकऐकान्तिक
अन्त्यक्षरीअन्त्याक्षरी
परलौकिकपारलौकिक
मालनमालिन
अहिल्याअहल्या
निरसतानीरसता
संग्रहितसंगृहीत
निर्दयीनिर्दय
अनुगृहअनुग्रह
अनाधिकृतअनधिकृत
भगीरथीभागीरथी
स्थायीत्वस्थायित्व
आजीवकाआजीविका
कुमदनीकुमुदिनी

स्वर मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
युधिष्ठरयुधिष्ठिर
विरहणीविरहिणी
द्वारिकाद्वारका
निरपराधीनिरपराध
तदान्तरतदनन्तर
प्रमाणिकप्रामाणिक
बृजब्रज
विशिष्ठविशिष्ट
निष्कपटीनिष्कपट
उर्ध्वऊर्ध्व
गृहीतग्रहीत
प्रिथाप्रथा

व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
प्रवृतनीयप्रवर्तनीय
पटाच्छेपपटाक्षेप
सौन्दर्यत्वसौन्दर्य
पारंगकपारंगत
आहवानआह्वान
महात्ममाहात्म्य
आल्हादआह्लाद
स्मसानश्मशान
असाम्यता बिस्मृतअसाम्य
उश्रृंखलविस्मृत
यथेष्ठउच्छृंखल
वहिरंगयथेष्ट
सर्जनबहिरंग
गरिष्टसृजन
अन्तर्ध्यानगरिष्ठ
अशुद्धअन्तर्धान

संधि सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
परिछेदपरिच्छेद
विद्युत्तलताविद्युत्लता
तत्मयतन्मय
परमोषधिपरमौषधि
मनोकामनामन:कामना
यशलाभयशोलाभ
रीत्यानुसाररीत्यनुसार
उदिग्नउद्विग्न
अधगतिअधोगति
विद्युतचालकविद्युच्चालक
राजऋषिराजर्षि
नदेशनदीश
दिगजालदिग्जाल
दुरावस्थादुरवस्था
सत्वंशसवंश
पुनरामिनयपुनरभिनय
मनोकष्टमनः कष्ट
इतिपूर्वइतः पूर्व
अन्तरप्रान्तीयअन्तः प्रान्तीय
निरोपमनिरुपम
अक्षोहिणीअक्षौहिणी
बाङगमयवाङ्गमय
मक्यमतैक्य
पुष्पवलीपुष्पावली
सत्गतिसद्गति
उपरोक्तउपर्युक्त
स्वयम्बरस्वयंवर
स्वयम्बरस्वयंवर
अत्योक्तिअत्युक्ति
मनझमनोज्ञ
जगतनाथजगन्नाथ
निरपायनिरुपाय
मनहरमनोहर
निष्छलनिश्छल
निष्तारनिस्तार
दुतरदुस्तर

समास सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
दिवारात्रिदिवारात्र
दुरात्मागणदुरात्मगण
सानन्दितसानन्द
गुणीगणगुणिगण
आतागणभ्रातृगण
योगीवरयोगिवर
सतगणसत्वगण
प्राणीवृन्दप्राणिवृन्द
कृतघ्नोंকৃतन
मंत्रीवरमंत्रिवर
वक्तागणवक्तृगण
सलज्जितसलज्ज
अहर्निशिअहिर्निश
सशंकितसशंक
आत्मापुरुषआत्मपुरुष
शान्तमयशान्तिमय

उपसर्ग और प्रत्यय सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
गोपितगुप्त
चरुताईचारुता
अभलअनभल
द्वैवार्षिकद्विवार्षिक
प्रफुल्लितप्रफुल्ल
औगुणअवगुण
ज्ञानमानज्ञानवान
औतारअवतार
अविदैविकअधिदैविक
अग्नेयआग्नेय
अनवासिकअनावासिक
अनुषांगिकआनुषंगिक
लब्धप्रतिष्ठिलब्धप्रतिष्ठ
भुजंगनीभुजंगी
कृशाँगिनीकृशांगी
प्रेयसिप्रेयसी
सुलोचनीसुलोचना
कोमलांगिनीकोमलांगी
चातकनीचातकी

हलन्त सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
अकस्मातअकस्मात्
राजनराजन्
वणिकवणिक्
विद्वानविद्वान्
बिराटविराट्
भविष्यतभविष्यत्
हुतभुकहुतभुक्
सततसतत्
दृश्यमानदृश्यमान्
श्रीयुतश्रीयुत्
प्रत्युतप्रत्युत्