सामान्य हिन्दी (व्याकरण) : सन्धि

सन्धि

दो वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि को हैं। इस प्रकार सन्धि के लिए दोनों वर्णों का निकट होना आवश्यक होता है। वर्णों की इस निकट स्थिति को ‘संहिता’ भी कहा जाता है। सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं-

(1) स्वर सन्धि,

(2) व्यंजन सन्धि

(3) विसर्ग सन्धि

1. स्वर सन्धि

स्वर सन्धि के छः उपभाग होते हैं।

(i) दीर्घ सन्धि(Long conjunctions) – जब लघु या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के उपरांत लघु या दीर्घ समान स्वर आए, तो दोनों के स्थान पर दीर्घ स्वर हो जाता है; जैसे – हिम + आलय = हिमालय, देव + अधिपति = देवाधिपति, धर्म + अर्थ = धर्मार्थ, स्वर्ण + अवसर = स्वर्णावसर।

(ii) यण सन्धि (yan sandhi)- जब लघु या दीर्घ इ, उ, ऋ के उपरांत कोई असमान स्वर आए, तो इ, उ, ऋ के स्थान पर क्रमशः य व र हो जाता है; जैसे- मधु + अरि = मध्वरि, इति + आदि = इत्यादि । (iii) अयादि सन्धि- जब ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई स्वर आए, तो ए, ऐ, ओ, औ के स्थान पर क्रमशः अय् आय्, अव्, आव् हो जाता है; जैसे- शे + अन शयन, हो + अन हवन।

(iv) वृद्धि सन्धि (Growth Pact) – जब लघु या दीर्घ ‘अ’ के उपरांत ए, ऐ, ओ, औ आए, तो ए और ऐ के स्थान पर ‘ऐ’ तथा ओ और औ की जगह ‘औ’ हो जाता है; जैसे- परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य, जल + ओक = जलौका

(v) गुण सन्धि (Property Conjunction) – जब अ या आ के उपरांत लघु या दीर्घ इ, उ, ऋ

आए, तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है; जैसे— मृग + इन्द्र = मृगेन्द्र, परम + ईश्वर = परमेश्वर। (vi) पूर्व रूप सन्धि- जब ‘अ’ ए या ओ के बाद आए, तो अ के स्थान पर पूर्व रूप अर्थात् चिह्न ऽ हो जाता है; जैसे-लोको +अयम् = लोकोऽयम्, हरे + अव = हरेऽव, हरे + अत्र = हरेऽत्र, प्रभो + अवतृ = प्रभोऽवतृ।

2. व्यंजन सन्धि

जिन दो वर्णों में सन्धि होती है, उनमें से पहला वर्ण यदि व्यंजन हो और दूसरा वर्ण यदि व्यंजन अथवा स्वर हो, तो जो विकार होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम इस प्रकार  हैं-

(i) यदि सकार या त वर्ग के साथ शकार या च वर्ग आए, तो सकार और त वर्ग के स्थान पर क्रम से शकार और च वर्ग हो जाते हैं;

जैसे – सत् + चयन = सच्चयन, रामस् + शेते रामश्शेते।

(ii) यदि सकार या त वर्ग के साथ षकार या ट वर्ग आए, तो सकार औरत वर्ग की जगह क्रम से षकार और ट वर्ग हो जाते हैं; जैसे- रामस् + टीकते = रामष्टीकते, बृहत् + टिट्टिभ = बृहट्टिट्टिभ

(iii) क्, च्, ट्, त् तथा प् के पश्चात यदि किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण आए अथवा य, र, ल, व अथवा कोई स्वर आए, तो क्, च्, ट्, त् तथा प के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता = है; जैसे- अच् + अन्त = अजन्त वाक् + जाल वाग्जाल |

(iv) त् -द् के बाद यदि लृ रहे, तो त्-द् ‘ल्’ में परिवर्तित हो जाता है और न् के पश्चात ल् रहे, तो न् का अनुनासिक के साथ लृ हो जाता है; जैसे- उत् + लास = उल्लास।

(v) वर्गों के अंतिम वर्णों को छोड़कर यदि शेष वर्णों के बाद ह आए, तोह पूर्व वर्ण के वर्ग का चौथा वर्ण हो जाता है और ह के पूर्व वर्ण वाला वर्ण अपने वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है; जैसे- उत् + हत = उद्धत, उत् + हार = उद्धार

(vi) यदि हस्व स्वर के पश्चात छ हो तो छ के पूर्व च जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के पश्चात छ होने पर यह नियम लागू होता है; जैसे- परि + छेद = परिच्छेद

(vii) यदि किसी पद के अन्त में म आया हो और उसके बाद कोई व्यंजन वर्ण हो, तो उसकी जगह अनुस्वार हो जाता है; जैसे- गृहम् + गच्छति = गृहंगच्छति, दुःखम् + प्राप्नोति दुखंप्राप्नोति, हरिम् = + बंदे = हरिबंदे।

3. विसर्ग सन्धि

विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मिलाने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-

(i) यदि विसर्ग से पहले और बाद भी ‘अ’ हो, तो पहले ‘अ’ और दविसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है; जैसे- तेजः + असि = र तेजोसि यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी ।

(ii) यदि विसर्ग के बाद च, छ हो, तो विसर्ग का ‘श्’ हो जाता है; जैसे – कः + चित् = कश्चित, दुः + शासन = दुश्शासन।

(iii) यदि विसर्ग के बाद क, ख, प या फ हो, तो ऐसी स्थिति में विसर्ग का रूप नहीं बदलता है; जैसे- रजः + कण = रजःकण,

पयः + पान = पयःपान।

(iv) यदि विसर्ग के बाद ट, ठ हो, तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है;

जैसे – दुः + ट = दुष्ट, नः + ट = नष्ट

(v) यदि विसर्ग के पहले ‘इ’ या ‘उ’ हो और बाद में क, ख, प या फ हो, तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है; जैसे-नि: + काम = निष्काम, निः + फल = निष्फल |

(vi) यदि विसर्ग के बाद त, थ हो, तो विसर्ग ‘स्’ हो जाता है; जैसे – मनः + ताप मनस्ताप, नि: + संदेह = निस्सन्देह (vii) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ या ‘आ’ के अलावा कोई अन्य स्वर और इसके पश्चात पाँचों वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व, ह् अथवा कोई स्वर हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है; जैसे-

निः + गुण = निर्गुण, निः + भय = निर्भय

(viii) यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में ‘र’ हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है और यदि विसर्ग का पूर्व स्वर हस्व हो, तो दीर्घ हो जाता है; जैसे- नि: + रस = नीरस,

निः + रज = नीरज ।

(ix) यदि विसर्ग के पहले और बाद में ‘अ’ हो, तो पहले ‘अ’ का ‘ओ’ हो जाता है और दूसरे ‘अ’ का लोप हो जाता है और उस स्थान पर ‘अ’ के स्थान पर चिह्न ‘S’ बना देते हैं; जैसे- प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय, मनः + अनुसार = मनोऽनुसार । ।

(x) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आ जाता है और बाद में ‘अ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर आ जाता है, तो विसर्ग का लोप हो जाता है; जैसे- अतः + एव = अतएव ।

(xi) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ या ‘आ’ हो और बाद में पाँचों वर्गों के तीसरे, चौथे या पाँचवें वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह हो, तो ‘अ’ का ‘ओ’ हो जाता है; जैसे – मनः + ज = मनोज, यशः + दा = यशोदा |

1. स्वर सन्धि

(i) दीर्घ सन्धि

अ + अ
परम + अर्थपरमार्थ
कल्प + अन्तकल्पान्त
पुस्तक + अर्थीपुस्तकार्थी
उत्तम + अंगउत्तमांग
धन + अर्थीधनार्थी
दैत्य + अरिदैत्यारि
देह + अन्तदेहान्त
वेद + अन्तवेदान्त
सत्य + अर्थीसत्यार्थी
सूर्य + अस्तसूर्यास्त
राम + अवताररामावतार
राम + अयनरामायण
शिव + अयनशिवायन
अन्न + अभावअन्नाभाव
पुष्प + अवलीपुष्पावली
शब्द + अर्थशब्दार्थ
काम + अरिकामारि
शरण + अर्थीशरणार्थी
चरण + अमृतचरणामृत
अ + आ
शिव + आलयशिवालय
परम + आत्मापरमात्मा
रत्न + आकररत्नाकर
कुश + आसनकुशासन
पुस्तक + आलयपुस्तकालय
देव + आलयदेवालय
राम + आधाररामाधार
राम + आश्रयरामाश्रय
गुण + आलयगुणालय
धर्म + आत्माधर्मात्मा
परम + आनन्दपरमानन्द
नित्य + आनन्दनित्यानन्द
परम + आवश्यकपरमावश्यक
भोजन + आलयभोजनालय
आ + अ
विद्या + अर्थीविद्यार्थी
विद्या + अभ्यासविद्याभ्यास
सेवा + अर्थसेवार्थ
माया + अधीनमायाधीन
करुणा + अवतारकरुणावतार
तथा + अपितथापि
युवा + अवस्थायुवावस्था
आज्ञा + अनुसारआज्ञानुसार
परीक्षा + अर्थीपरीक्षार्थी
शिक्षा + अथीशिक्षार्थी
आ + आ
महा + आशयमहाशय
विद्या + आलयविद्यालय
इ + इ
कवि + इन्द्रकवीन्द्र
रवि + इन्द्ररवीन्द्र
गिरि + इन्द्रगिरीन्द्र
अभि + इष्टअभीष्ट
कवि + इच्छाकवीच्छा
इ + ई
हरि + ईशहरीश
कवि + ईशकवीश
गिरि + ईशगिरीश
कपि + ईशकपीश
मुनि + ईश्वरमुनीश्वर
बुद्धि + ईशबुद्धीश
रति + ईशरतीश
ई + इ
मही + इन्द्रमहीन्द्र
लक्ष्मी + इच्छालक्ष्मीच्छा
ई + ई
नदी + ईशनदीश
जानकी + ईशजानकीश
मही + ईशमहीश
पृथ्वी + ईशपृथ्वीश
रजनी + ईशरजनीश
भारती + ईश्वरभारतीश्वर
उ + उ
मानु + उदयभानूदय
लघु + उक्तिलघूक्ति
कटु + उक्तिकटूक्ति
रघु + उत्तमरघूत्तम
मृत्यु + उपरांतमृत्यूपरांत
सु + उक्तिसूक्ति
उ + ऊ
लघु + ऊर्मि  लघूर्मि
मंजु + ऊषामंजूषा
सिन्धु + ऊर्मिसिन्धूर्मि
ऊ + उ
वधू + उत्सववधूत्सव
भू + उपरिभूपरि
वधू + उल्लासवधूल्लास
भू + उत्तमभूत्तम
ऊ + ऊ
वधू + ऊर्मिवधूर्मि
सरयू + ऊर्मिसरयूर्मि
भू + ऊर्ध्वभूर्ध्व
ऋ + ऋ
मातृ + ऋणाम्मातृणाम
होतृ + ऋकारहोतृकार
पितृ + ऋणपितॄण

(ii) यण सन्धि

इ + अ
यदि + अपियद्यपि
अधि + अयनअध्ययन
इति + अर्थइत्यर्थ
अति + अधिकअत्यधिक
रीति + अनुसाररीत्यनुसार
इ + आया
इति + आदिइत्यादि
अति + आचारअत्याचार
अति + आवश्यकअत्यावश्यक
इ + उयु
प्रति + उत्तरप्रत्युत्तर
प्रति + उपकारप्रत्युपकार
उपरि + उक्तउपर्युक्त
अति + उक्तिअत्युक्ति
अति + उत्तमअत्युत्तम
इ + ऊयू
नि + ऊनन्यून
इ + एये
प्रति + एकप्रत्येक
इ + अंयं
अति + अंतअत्यंत
ई + अ
नदी + अर्पणनद्यर्पण
देवी + अर्थदेव्यर्थ
देवी + अर्पणदेव्यर्पण
ई + आया
देवी + आगमदेव्यागम
देवी + आलयदेव्यालय
सरस्वती + आराधनसरस्वत्याराधन
ई + उयु
सखी + उचितसख्युचित
देवी + उक्तिदेव्युक्ति
ई + ऊयू
नदी + ऊर्मिनघूर्मि
वाणी + ऊर्मिवाण्यूर्मि
ई + ऐयै
देवी + ऐश्वर्यदेव्यैश्वर्य
ई + ओयो
देवी + ओजदेव्योज
ई + औयौ
देवी + औदार्यदेव्यौदार्य
ई + अंयं
देवी + अंगदेव्यंग
उ + अ
मनु + अन्तरमन्वन्तर
अनु + अयअन्वय
अनु + अर्थअन्वर्थ
मधु + अरिमध्वरि
ऋतु + अन्तऋत्वन्त
उ + आया
सु + आगतस्वागत
मधु + आलयमध्वालय
अनु + आदेशअन्वादेश
भानु + आगमनभान्वागमन
ऊ + अ
वधू + अर्थवध्वर्थ
उ + इवि
अनु + इतअन्वित
अनु + इष्ट  अन्विष्ट
धातु + इकधात्विक
उ + ईवी
अनु + ईक्षणअन्वीक्षण
ऊ + इवि
वधू + इष्टवध्विष्ट
उ + ओवो
मधु + ओदनमध्वोदन
उ + एवे
अनु + एषणअन्वेषण
उ + औचौ
मधु + औषधमध्वौषध
गुरु + औदार्यगुर्वौदार्य
ऊ + एवे
वधू + एषणवध्वेषण
ऊ + ईवी
वधू + ईर्ष्यावध्वीर्ष्या
ऊ + आवा
वधू + आगमनवध्वागमन
वधू + आदेशवध्वादेश
ऊ + अंवं
वधू + अंगवध्वंग
ऋ + अंरं
मातृ + अंगमात्रंग
ऋ + अर्
मातृ + अर्थमात्रार्थ
पितृ + अनुमतिपित्रनुमति
पितृ + अनुदेशपित्रनुदेश
ऋ + आरा
पितृ + आज्ञापित्राज्ञा
मातृ + आनन्दमात्रानन्द
मातृ + आदेशमात्रादेश
पितृ + आदेशपित्रादेश
ऋ + एरे
भ्रातृ + एषणाभ्रात्रेषणा
ऋ + ओरो
भ्रातृ + ओकभ्रत्रोक

 (iii) अयादि सन्धि

ए + अ अय्
ने + अननयन
चे + अनचयन
ऐ + अआय्
गै+ अकगायक
नै + अकनायक
सै + अकसायक
गै + अनगायन
ओ + ईअव्
गो + ईशगवीश
रो + ईशरवीश
ओ + इअव्
पो + इत्रपवित्र
ओ + अअव्
पो + अनपवन
श्री + अनश्रवण
गो + अनगवन
भो + अनभवन
औ + अआवृ
पौ + अकपावक
पौ + अनपावन
धौ + अकधावक

(iv) वृद्धि सन्धि

अ + ए
तत्र + एवतत्रैव
एक + एवएकैव
एक + एकएकैक
दिन + एकदिनैक
अ + ऐ
मत + ऐक्यमतैक्य
देव + ऐश्वर्यदेवैश्वर्य
धर्म + ऐक्यधर्मैक्य
विश्व + ऐक्यविश्वैक्य
नव + ऐश्वर्यनवैश्वर्य
अ + ओ
वन + ओषधिवनौषधि
उष्ण + ओदनउष्णौदन
परम + ओजपरमौज
जल + ओसजलौस
अ + औ
परम + औषधपरमौषध
परम + औदार्यपरमौदार्य
जल + औषधजलौषय
आ + ए
सर्वदा + एवसर्वदैव
सदा + एवसदैव
एकदा + एवएकदैव
तथा + एवतथैव
आ + ऐ
महा + ऐश्वर्यमहैश्वर्य
आ + ओ
महा + ओजमहौज
आ + औ
महा + औदार्यमहौदार्य
महा + औषधमहौषध

 (v) गुण सन्धि

अ + इ
देव + इन्द्रदेवेन्द्र
सुर + इन्द्रसुरेन्द्र
उप + इन्द्रउपेन्द्र
नर + इन्द्रनरेन्द्र
प्र + इतप्रेत
अ + ई
सुर + ईशसुरेश
नर + ईशनरेश
खग + ईशखगेश
देव + ईशदेवेश
गण + ईशगणेश
अ + उ
सूर्य + उदयसूर्योदय
जल + उदयजलोदय
चन्द्र + उदयचन्द्रोदय
पर + उपकारपरोपकार
परम + उत्सवपरमोत्सव
लोक + उपयोगलोकोपयोग
अ + ऊ
जल + ऊर्मिजलोर्मि
समुद्र + ऊर्मिसमुद्रोर्मि
दीर्घ + ऊपलदीर्घोपल
अ + ऋअर्
देव + ऋषिदेवर्षि
सप्त + ऋषिसप्तर्षि
आ + इ
महा + इन्द्रमहेन्द्र
आ + ई
रमा + ईशरमेश
महेश्वरमहा + ईश्वर
महा + ईशमहेश
आ + उ
महा + उत्सवमहोत्सव
महा + उपदेशमहोपदेश
आ + ऊ
गंगा + ऊर्मिगंगोर्मि
महा + ऊर्जस्वीमहोर्जस्वी
महा + ऊर्मिमहोर्मि
आ + ऋअर्
महा + ऋषिमहर्षि
राजा + ऋषिराजर्षि

2. व्यंजन सन्धि

वाक् + ईशवागीश
दिक् + अम्बरदिगम्बर
दिक् + अन्तरदिगन्तर
दिक् + गजदिग्गज
वाक् + धारावाग्धारा
दिक् + भ्रमदिग्भ्रम
अच् + आदिअजादि
षट् + आननषडानन
तत् + इच्छातदिच्छा
सत् + आचारसदाचार
वृहत् + रथवृहद्रथ
तत् + रूपतद्रूप
सत् + आनन्दसदानन्द
सत् + उपयोगसदुपयोग
जगत् + ईशजगदीश
उत् + अयउदय
कृत् + अन्तकृदन्त
सत् + वाणीसद्वाणी
जगत् + आनन्दजगदानन्द
सुप् + अन्तसुबन्त
अप् + जअब्ज
अप् + धिअब्धि
एतत् + मुरारीएतन्मुरारी
जगत् + नाथजगन्नाथ
वाक् + दत्तवाग्दत्त
वाक् + दानवाग्दान
भगवत् + भक्तिभगवद्भक्ति
षट् + दर्शनषडदर्शन
उत् + योगउद्योग
सत् + वंशसदवंश
उत् + घाटनउद्घाटन
षट् + मासषण्मास
वाक् + मात्रवाङ्मात्र
चित् + मयचिन्मय
भगवत् + गीताभगवद्गीता
उत + गमउद्गम
वाक् + मयवाङ्मय
रूच् + मयरूञ्मय
सत् + मार्गसन्मार्ग
उत् + नतिउन्नति
उत् + चारणउच्चारण
महत् + छत्रमहच्छत्र
उत् + छेदउच्छेद
सत् + छात्रसच्छात्र
शरत् + चन्द्रशरच्चन्द्र
सत् + चित्सच्चित
उत् + चाटनउच्चाटन
पद् + छेदपच्छेद
सत् + जनसज्जन
उत् + ज्वलउज्ज्वल
विपद् + जालविपज्जाल
उत् + डयनउड्डयन
तत् + लीनतल्लीन
उत् + लंघनउल्लंघन
उत् + लासउल्लास
उत् + श्वासउच्छवास
उत् + शिष्टउच्छिष्ट
तत् + श्रुत्वातच्छ्रुत्वा
उत् + श्रृंखलउच्छृंखल
महत् + शक्तिमहच्छक्ति
तत् + हिततद्धित
उत् + हरणउद्धरण
आ + छादनआच्छादन
वि + छेदविच्छेद
वृक्ष + छायावृक्षच्छाया
अनु + छेदअनुच्छेद
अव + छेदअवच्छेद
किम् + वाकिंवा
सम् + योगसंयोग
सम् + यमसंयम
सम् + लापसंलाप
सम् + सारसंसार
सम् + हारसंहार
सम् + वादसंवाद
सम् + शयसंशय
सम् + वेगसंवेग
सम् + कल्पसंकल्प
किग् + चित्किञ्चित्
सम् + चयसंचय
सम् + पर्कसंपर्क
सम् + क्रान्तिसंक्रान्ति
सम् + तोषसन्तोष
सम् + पूर्णसम्पूर्ण
सम् + तापसंताप
पम् + चमपंचम
भर् + अनभरण
प्र + मानप्रमाण
भूष् + अनभूषण
ऋ + नऋण
तृष + नातृष्णा
नि + सिद्धनिषिद्ध
अभि + सेकअभिषेक
सु + समासुषमा
वि + समविषम
सु + सुप्तसुषुप्त

3. विसर्ग सन्धि

निः + छलनिश्छल
धनुः + टंकारधनुष्टंकार
निः + चयनिश्चय
निः + चेष्टनिष्वेष्ट
ततः + ठकारततष्ठकार
निः + चलनिश्चल
दुः+ टदुष्ट
निः + तेजनिस्तेज
दुः + तरदुस्तर
निः + छिद्रनिश्छिद्र
निः + तारनिस्तार
हरिः + शेतेहरिशेत या हरिः शेते
निः + सारनिस्सार या निःसार
निः + शंकनिशंक या निःशंक
रजः + कणरजःकण
पयः + पानपयःपान
अन्तः + करणअन्तःकरण
अघः + फलितअधः फलित
अन्तः + पुरअन्तःपुर
प्रातः + कालप्रातःकाल
अधः + पतनअधःपतन
पुरः + कारपुरस्कार
मनः + कामनामनोकामना
नमः + कारनमस्कार
तिरः + कारतिरस्कार
दुः + खदुःख
निः + कपटनिष्कपट
निः + पापनिष्पाप
निः + पंकनिष्पंक
चतुः + पदचतुष्पद
दु: + कर्मदुष्कर्म
दुः + प्रकृतिदुष्प्रकृति
दुः + करदुष्कर
दुः + खचितदुष्खचित
दुः + फलदुष्फल
वयः + वृद्धवयोवृद्ध
अघः + घातअधोघात
तपः + बलतपोबल
तेजः + मयतेजोमय
पयः + दपयोद
पुरः + हितपुरोहित
यश: + लाभयशोलाभ
सरः + वरसरोवर
यशः + गानयशोगान
मनः + बलमनोबल
तमः + गुणतमोगुण
मनः + राज्यमनोराज्य
तपः + धनतपोधन
अधः + गतिअधोगति
अधः + जलअधोजल
मनः + रथमनोरथ
मनः + ज्ञमनोज्ञ
मनः + योगमनोयोग
मनः + वेगमनोवेग
मनः + हरमनोहर
यशः + धरायशोधरा
मनः + नयनमनोनयन
सरः + रुहसरोरुह
मनः + विकारमनोविकार
पयः + घरपयोधर
निः + आशानिराशा
निः + दयनिर्दय
निः + झरनिर्झर
निः + जरनिर्जर
निः + लेपनिर्लेप
निः + यातनिर्यात
निः + हारनिर्हार
निः + ऐक्यनिरैक्य
निः + एकीभावनिरेकीभाव
निः + घोषनिर्घोष
निः + गमनिर्गम
निः + आधारनिराधार
निः + उपायनिरुपाय
निः + औषधनिरौषय
निः + आदरनिरादर
निः + ईहनिरीह
निः + अर्थकनिरर्थक
दुः + उपयोगदुरुपयोग
दु: + दशादुर्दशा
दुः + गुणदुर्गुण
दुः + जनदुर्जन
दुः + भाग्यदुर्भाग्य
दु: + शीलदुश्शील
दुः + बलदुर्बल
दु: + वचनदुर्वचन
दु: + यशदुर्यश
दु: + लाभदुर्लभ
दु: + लक्ष्यदुर्लक्ष्य
दु: + गन्धदुर्गन्ध
दु: + आत्मादुरात्मा
दु: + धर्षदुर्धर्ष
दुः + नामदुर्नाम
वहिः + गतवहिर्गत
निः + ओकनिरोक
निः + अंकनिरंक
निः + ऊमिनिरूर्मि
निः + उत्तरनिरुत्तर
निः + रोगनीरोग
निः + रवनीरव
दु: + राजदुराज