सामान्य हिन्दी (व्याकरण) : सन्धि
सन्धि
दो वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि को हैं। इस प्रकार सन्धि के लिए दोनों वर्णों का निकट होना आवश्यक होता है। वर्णों की इस निकट स्थिति को ‘संहिता’ भी कहा जाता है। सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं-
(1) स्वर सन्धि,
(2) व्यंजन सन्धि
(3) विसर्ग सन्धि
1. स्वर सन्धि
स्वर सन्धि के छः उपभाग होते हैं।
(i) दीर्घ सन्धि(Long conjunctions) – जब लघु या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के उपरांत लघु या दीर्घ समान स्वर आए, तो दोनों के स्थान पर दीर्घ स्वर हो जाता है; जैसे – हिम + आलय = हिमालय, देव + अधिपति = देवाधिपति, धर्म + अर्थ = धर्मार्थ, स्वर्ण + अवसर = स्वर्णावसर।
(ii) यण सन्धि (yan sandhi)- जब लघु या दीर्घ इ, उ, ऋ के उपरांत कोई असमान स्वर आए, तो इ, उ, ऋ के स्थान पर क्रमशः य व र हो जाता है; जैसे- मधु + अरि = मध्वरि, इति + आदि = इत्यादि । (iii) अयादि सन्धि- जब ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई स्वर आए, तो ए, ऐ, ओ, औ के स्थान पर क्रमशः अय् आय्, अव्, आव् हो जाता है; जैसे- शे + अन शयन, हो + अन हवन।
(iv) वृद्धि सन्धि (Growth Pact) – जब लघु या दीर्घ ‘अ’ के उपरांत ए, ऐ, ओ, औ आए, तो ए और ऐ के स्थान पर ‘ऐ’ तथा ओ और औ की जगह ‘औ’ हो जाता है; जैसे- परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य, जल + ओक = जलौका
(v) गुण सन्धि (Property Conjunction) – जब अ या आ के उपरांत लघु या दीर्घ इ, उ, ऋ
आए, तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है; जैसे— मृग + इन्द्र = मृगेन्द्र, परम + ईश्वर = परमेश्वर। (vi) पूर्व रूप सन्धि- जब ‘अ’ ए या ओ के बाद आए, तो अ के स्थान पर पूर्व रूप अर्थात् चिह्न ऽ हो जाता है; जैसे-लोको +अयम् = लोकोऽयम्, हरे + अव = हरेऽव, हरे + अत्र = हरेऽत्र, प्रभो + अवतृ = प्रभोऽवतृ।
2. व्यंजन सन्धि
जिन दो वर्णों में सन्धि होती है, उनमें से पहला वर्ण यदि व्यंजन हो और दूसरा वर्ण यदि व्यंजन अथवा स्वर हो, तो जो विकार होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-
(i) यदि सकार या त वर्ग के साथ शकार या च वर्ग आए, तो सकार और त वर्ग के स्थान पर क्रम से शकार और च वर्ग हो जाते हैं;
जैसे – सत् + चयन = सच्चयन, रामस् + शेते रामश्शेते।
(ii) यदि सकार या त वर्ग के साथ षकार या ट वर्ग आए, तो सकार औरत वर्ग की जगह क्रम से षकार और ट वर्ग हो जाते हैं; जैसे- रामस् + टीकते = रामष्टीकते, बृहत् + टिट्टिभ = बृहट्टिट्टिभ
(iii) क्, च्, ट्, त् तथा प् के पश्चात यदि किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण आए अथवा य, र, ल, व अथवा कोई स्वर आए, तो क्, च्, ट्, त् तथा प के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता = है; जैसे- अच् + अन्त = अजन्त वाक् + जाल वाग्जाल |
(iv) त् -द् के बाद यदि लृ रहे, तो त्-द् ‘ल्’ में परिवर्तित हो जाता है और न् के पश्चात ल् रहे, तो न् का अनुनासिक के साथ लृ हो जाता है; जैसे- उत् + लास = उल्लास।
(v) वर्गों के अंतिम वर्णों को छोड़कर यदि शेष वर्णों के बाद ह आए, तोह पूर्व वर्ण के वर्ग का चौथा वर्ण हो जाता है और ह के पूर्व वर्ण वाला वर्ण अपने वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है; जैसे- उत् + हत = उद्धत, उत् + हार = उद्धार
(vi) यदि हस्व स्वर के पश्चात छ हो तो छ के पूर्व च जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के पश्चात छ होने पर यह नियम लागू होता है; जैसे- परि + छेद = परिच्छेद
(vii) यदि किसी पद के अन्त में म आया हो और उसके बाद कोई व्यंजन वर्ण हो, तो उसकी जगह अनुस्वार हो जाता है; जैसे- गृहम् + गच्छति = गृहंगच्छति, दुःखम् + प्राप्नोति दुखंप्राप्नोति, हरिम् = + बंदे = हरिबंदे।
3. विसर्ग सन्धि
विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मिलाने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-
(i) यदि विसर्ग से पहले और बाद भी ‘अ’ हो, तो पहले ‘अ’ और दविसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है; जैसे- तेजः + असि = र तेजोसि यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी ।
(ii) यदि विसर्ग के बाद च, छ हो, तो विसर्ग का ‘श्’ हो जाता है; जैसे – कः + चित् = कश्चित, दुः + शासन = दुश्शासन।
(iii) यदि विसर्ग के बाद क, ख, प या फ हो, तो ऐसी स्थिति में विसर्ग का रूप नहीं बदलता है; जैसे- रजः + कण = रजःकण,
पयः + पान = पयःपान।
(iv) यदि विसर्ग के बाद ट, ठ हो, तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है;
जैसे – दुः + ट = दुष्ट, नः + ट = नष्ट
(v) यदि विसर्ग के पहले ‘इ’ या ‘उ’ हो और बाद में क, ख, प या फ हो, तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है; जैसे-नि: + काम = निष्काम, निः + फल = निष्फल |
(vi) यदि विसर्ग के बाद त, थ हो, तो विसर्ग ‘स्’ हो जाता है; जैसे – मनः + ताप मनस्ताप, नि: + संदेह = निस्सन्देह (vii) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ या ‘आ’ के अलावा कोई अन्य स्वर और इसके पश्चात पाँचों वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व, ह् अथवा कोई स्वर हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है; जैसे-
निः + गुण = निर्गुण, निः + भय = निर्भय
(viii) यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में ‘र’ हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है और यदि विसर्ग का पूर्व स्वर हस्व हो, तो दीर्घ हो जाता है; जैसे- नि: + रस = नीरस,
निः + रज = नीरज ।
(ix) यदि विसर्ग के पहले और बाद में ‘अ’ हो, तो पहले ‘अ’ का ‘ओ’ हो जाता है और दूसरे ‘अ’ का लोप हो जाता है और उस स्थान पर ‘अ’ के स्थान पर चिह्न ‘S’ बना देते हैं; जैसे- प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय, मनः + अनुसार = मनोऽनुसार । ।
(x) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आ जाता है और बाद में ‘अ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर आ जाता है, तो विसर्ग का लोप हो जाता है; जैसे- अतः + एव = अतएव ।
(xi) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ या ‘आ’ हो और बाद में पाँचों वर्गों के तीसरे, चौथे या पाँचवें वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह हो, तो ‘अ’ का ‘ओ’ हो जाता है; जैसे – मनः + ज = मनोज, यशः + दा = यशोदा |
1. स्वर सन्धि
(i) दीर्घ सन्धि
अ + अ | आ |
परम + अर्थ | परमार्थ |
कल्प + अन्त | कल्पान्त |
पुस्तक + अर्थी | पुस्तकार्थी |
उत्तम + अंग | उत्तमांग |
धन + अर्थी | धनार्थी |
दैत्य + अरि | दैत्यारि |
देह + अन्त | देहान्त |
वेद + अन्त | वेदान्त |
सत्य + अर्थी | सत्यार्थी |
सूर्य + अस्त | सूर्यास्त |
राम + अवतार | रामावतार |
राम + अयन | रामायण |
शिव + अयन | शिवायन |
अन्न + अभाव | अन्नाभाव |
पुष्प + अवली | पुष्पावली |
शब्द + अर्थ | शब्दार्थ |
काम + अरि | कामारि |
शरण + अर्थी | शरणार्थी |
चरण + अमृत | चरणामृत |
अ + आ | आ |
शिव + आलय | शिवालय |
परम + आत्मा | परमात्मा |
रत्न + आकर | रत्नाकर |
कुश + आसन | कुशासन |
पुस्तक + आलय | पुस्तकालय |
देव + आलय | देवालय |
राम + आधार | रामाधार |
राम + आश्रय | रामाश्रय |
गुण + आलय | गुणालय |
धर्म + आत्मा | धर्मात्मा |
परम + आनन्द | परमानन्द |
नित्य + आनन्द | नित्यानन्द |
परम + आवश्यक | परमावश्यक |
भोजन + आलय | भोजनालय |
आ + अ | आ |
विद्या + अर्थी | विद्यार्थी |
विद्या + अभ्यास | विद्याभ्यास |
सेवा + अर्थ | सेवार्थ |
माया + अधीन | मायाधीन |
करुणा + अवतार | करुणावतार |
तथा + अपि | तथापि |
युवा + अवस्था | युवावस्था |
आज्ञा + अनुसार | आज्ञानुसार |
परीक्षा + अर्थी | परीक्षार्थी |
शिक्षा + अथी | शिक्षार्थी |
आ + आ | आ |
महा + आशय | महाशय |
विद्या + आलय | विद्यालय |
इ + इ | ई |
कवि + इन्द्र | कवीन्द्र |
रवि + इन्द्र | रवीन्द्र |
गिरि + इन्द्र | गिरीन्द्र |
अभि + इष्ट | अभीष्ट |
कवि + इच्छा | कवीच्छा |
इ + ई | ई |
हरि + ईश | हरीश |
कवि + ईश | कवीश |
गिरि + ईश | गिरीश |
कपि + ईश | कपीश |
मुनि + ईश्वर | मुनीश्वर |
बुद्धि + ईश | बुद्धीश |
रति + ईश | रतीश |
ई + इ | ई |
मही + इन्द्र | महीन्द्र |
लक्ष्मी + इच्छा | लक्ष्मीच्छा |
ई + ई | ई |
नदी + ईश | नदीश |
जानकी + ईश | जानकीश |
मही + ईश | महीश |
पृथ्वी + ईश | पृथ्वीश |
रजनी + ईश | रजनीश |
भारती + ईश्वर | भारतीश्वर |
उ + उ | ऊ |
मानु + उदय | भानूदय |
लघु + उक्ति | लघूक्ति |
कटु + उक्ति | कटूक्ति |
रघु + उत्तम | रघूत्तम |
मृत्यु + उपरांत | मृत्यूपरांत |
सु + उक्ति | सूक्ति |
उ + ऊ | ऊ |
लघु + ऊर्मि | लघूर्मि |
मंजु + ऊषा | मंजूषा |
सिन्धु + ऊर्मि | सिन्धूर्मि |
ऊ + उ | ऊ |
वधू + उत्सव | वधूत्सव |
भू + उपरि | भूपरि |
वधू + उल्लास | वधूल्लास |
भू + उत्तम | भूत्तम |
ऊ + ऊ | ऊ |
वधू + ऊर्मि | वधूर्मि |
सरयू + ऊर्मि | सरयूर्मि |
भू + ऊर्ध्व | भूर्ध्व |
ऋ + ऋ | ॠ |
मातृ + ऋणाम् | मातृणाम |
होतृ + ऋकार | होतृकार |
पितृ + ऋण | पितॄण |
(ii) यण सन्धि
इ + अ | य |
यदि + अपि | यद्यपि |
अधि + अयन | अध्ययन |
इति + अर्थ | इत्यर्थ |
अति + अधिक | अत्यधिक |
रीति + अनुसार | रीत्यनुसार |
इ + आ | या |
इति + आदि | इत्यादि |
अति + आचार | अत्याचार |
अति + आवश्यक | अत्यावश्यक |
इ + उ | यु |
प्रति + उत्तर | प्रत्युत्तर |
प्रति + उपकार | प्रत्युपकार |
उपरि + उक्त | उपर्युक्त |
अति + उक्ति | अत्युक्ति |
अति + उत्तम | अत्युत्तम |
इ + ऊ | यू |
नि + ऊन | न्यून |
इ + ए | ये |
प्रति + एक | प्रत्येक |
इ + अं | यं |
अति + अंत | अत्यंत |
ई + अ | य |
नदी + अर्पण | नद्यर्पण |
देवी + अर्थ | देव्यर्थ |
देवी + अर्पण | देव्यर्पण |
ई + आ | या |
देवी + आगम | देव्यागम |
देवी + आलय | देव्यालय |
सरस्वती + आराधन | सरस्वत्याराधन |
ई + उ | यु |
सखी + उचित | सख्युचित |
देवी + उक्ति | देव्युक्ति |
ई + ऊ | यू |
नदी + ऊर्मि | नघूर्मि |
वाणी + ऊर्मि | वाण्यूर्मि |
ई + ऐ | यै |
देवी + ऐश्वर्य | देव्यैश्वर्य |
ई + ओ | यो |
देवी + ओज | देव्योज |
ई + औ | यौ |
देवी + औदार्य | देव्यौदार्य |
ई + अं | यं |
देवी + अंग | देव्यंग |
उ + अ | व |
मनु + अन्तर | मन्वन्तर |
अनु + अय | अन्वय |
अनु + अर्थ | अन्वर्थ |
मधु + अरि | मध्वरि |
ऋतु + अन्त | ऋत्वन्त |
उ + आ | या |
सु + आगत | स्वागत |
मधु + आलय | मध्वालय |
अनु + आदेश | अन्वादेश |
भानु + आगमन | भान्वागमन |
ऊ + अ | व |
वधू + अर्थ | वध्वर्थ |
उ + इ | वि |
अनु + इत | अन्वित |
अनु + इष्ट | अन्विष्ट |
धातु + इक | धात्विक |
उ + ई | वी |
अनु + ईक्षण | अन्वीक्षण |
ऊ + इ | वि |
वधू + इष्ट | वध्विष्ट |
उ + ओ | वो |
मधु + ओदन | मध्वोदन |
उ + ए | वे |
अनु + एषण | अन्वेषण |
उ + औ | चौ |
मधु + औषध | मध्वौषध |
गुरु + औदार्य | गुर्वौदार्य |
ऊ + ए | वे |
वधू + एषण | वध्वेषण |
ऊ + ई | वी |
वधू + ईर्ष्या | वध्वीर्ष्या |
ऊ + आ | वा |
वधू + आगमन | वध्वागमन |
वधू + आदेश | वध्वादेश |
ऊ + अं | वं |
वधू + अंग | वध्वंग |
ऋ + अं | रं |
मातृ + अंग | मात्रंग |
ऋ + अ | र् |
मातृ + अर्थ | मात्रार्थ |
पितृ + अनुमति | पित्रनुमति |
पितृ + अनुदेश | पित्रनुदेश |
ऋ + आ | रा |
पितृ + आज्ञा | पित्राज्ञा |
मातृ + आनन्द | मात्रानन्द |
मातृ + आदेश | मात्रादेश |
पितृ + आदेश | पित्रादेश |
ऋ + ए | रे |
भ्रातृ + एषणा | भ्रात्रेषणा |
ऋ + ओ | रो |
भ्रातृ + ओक | भ्रत्रोक |
(iii) अयादि सन्धि
ए + अ | अय् |
ने + अन | नयन |
चे + अन | चयन |
ऐ + अ | आय् |
गै+ अक | गायक |
नै + अक | नायक |
सै + अक | सायक |
गै + अन | गायन |
ओ + ई | अव् |
गो + ईश | गवीश |
रो + ईश | रवीश |
ओ + इ | अव् |
पो + इत्र | पवित्र |
ओ + अ | अव् |
पो + अन | पवन |
श्री + अन | श्रवण |
गो + अन | गवन |
भो + अन | भवन |
औ + अ | आवृ |
पौ + अक | पावक |
पौ + अन | पावन |
धौ + अक | धावक |
(iv) वृद्धि सन्धि
अ + ए | ऐ |
तत्र + एव | तत्रैव |
एक + एव | एकैव |
एक + एक | एकैक |
दिन + एक | दिनैक |
अ + ऐ | ऐ |
मत + ऐक्य | मतैक्य |
देव + ऐश्वर्य | देवैश्वर्य |
धर्म + ऐक्य | धर्मैक्य |
विश्व + ऐक्य | विश्वैक्य |
नव + ऐश्वर्य | नवैश्वर्य |
अ + ओ | औ |
वन + ओषधि | वनौषधि |
उष्ण + ओदन | उष्णौदन |
परम + ओज | परमौज |
जल + ओस | जलौस |
अ + औ | औ |
परम + औषध | परमौषध |
परम + औदार्य | परमौदार्य |
जल + औषध | जलौषय |
आ + ए | ऐ |
सर्वदा + एव | सर्वदैव |
सदा + एव | सदैव |
एकदा + एव | एकदैव |
तथा + एव | तथैव |
आ + ऐ | ऐ |
महा + ऐश्वर्य | महैश्वर्य |
आ + ओ | औ |
महा + ओज | महौज |
आ + औ | औ |
महा + औदार्य | महौदार्य |
महा + औषध | महौषध |
(v) गुण सन्धि
अ + इ | ए |
देव + इन्द्र | देवेन्द्र |
सुर + इन्द्र | सुरेन्द्र |
उप + इन्द्र | उपेन्द्र |
नर + इन्द्र | नरेन्द्र |
प्र + इत | प्रेत |
अ + ई | ए |
सुर + ईश | सुरेश |
नर + ईश | नरेश |
खग + ईश | खगेश |
देव + ईश | देवेश |
गण + ईश | गणेश |
अ + उ | ओ |
सूर्य + उदय | सूर्योदय |
जल + उदय | जलोदय |
चन्द्र + उदय | चन्द्रोदय |
पर + उपकार | परोपकार |
परम + उत्सव | परमोत्सव |
लोक + उपयोग | लोकोपयोग |
अ + ऊ | ओ |
जल + ऊर्मि | जलोर्मि |
समुद्र + ऊर्मि | समुद्रोर्मि |
दीर्घ + ऊपल | दीर्घोपल |
अ + ऋ | अर् |
देव + ऋषि | देवर्षि |
सप्त + ऋषि | सप्तर्षि |
आ + इ | ए |
महा + इन्द्र | महेन्द्र |
आ + ई | ए |
रमा + ईश | रमेश |
महेश्वर | महा + ईश्वर |
महा + ईश | महेश |
आ + उ | ओ |
महा + उत्सव | महोत्सव |
महा + उपदेश | महोपदेश |
आ + ऊ | ओ |
गंगा + ऊर्मि | गंगोर्मि |
महा + ऊर्जस्वी | महोर्जस्वी |
महा + ऊर्मि | महोर्मि |
आ + ऋ | अर् |
महा + ऋषि | महर्षि |
राजा + ऋषि | राजर्षि |
2. व्यंजन सन्धि
वाक् + ईश | वागीश |
दिक् + अम्बर | दिगम्बर |
दिक् + अन्तर | दिगन्तर |
दिक् + गज | दिग्गज |
वाक् + धारा | वाग्धारा |
दिक् + भ्रम | दिग्भ्रम |
अच् + आदि | अजादि |
षट् + आनन | षडानन |
तत् + इच्छा | तदिच्छा |
सत् + आचार | सदाचार |
वृहत् + रथ | वृहद्रथ |
तत् + रूप | तद्रूप |
सत् + आनन्द | सदानन्द |
सत् + उपयोग | सदुपयोग |
जगत् + ईश | जगदीश |
उत् + अय | उदय |
कृत् + अन्त | कृदन्त |
सत् + वाणी | सद्वाणी |
जगत् + आनन्द | जगदानन्द |
सुप् + अन्त | सुबन्त |
अप् + ज | अब्ज |
अप् + धि | अब्धि |
एतत् + मुरारी | एतन्मुरारी |
जगत् + नाथ | जगन्नाथ |
वाक् + दत्त | वाग्दत्त |
वाक् + दान | वाग्दान |
भगवत् + भक्ति | भगवद्भक्ति |
षट् + दर्शन | षडदर्शन |
उत् + योग | उद्योग |
सत् + वंश | सदवंश |
उत् + घाटन | उद्घाटन |
षट् + मास | षण्मास |
वाक् + मात्र | वाङ्मात्र |
चित् + मय | चिन्मय |
भगवत् + गीता | भगवद्गीता |
उत + गम | उद्गम |
वाक् + मय | वाङ्मय |
रूच् + मय | रूञ्मय |
सत् + मार्ग | सन्मार्ग |
उत् + नति | उन्नति |
उत् + चारण | उच्चारण |
महत् + छत्र | महच्छत्र |
उत् + छेद | उच्छेद |
सत् + छात्र | सच्छात्र |
शरत् + चन्द्र | शरच्चन्द्र |
सत् + चित् | सच्चित |
उत् + चाटन | उच्चाटन |
पद् + छेद | पच्छेद |
सत् + जन | सज्जन |
उत् + ज्वल | उज्ज्वल |
विपद् + जाल | विपज्जाल |
उत् + डयन | उड्डयन |
तत् + लीन | तल्लीन |
उत् + लंघन | उल्लंघन |
उत् + लास | उल्लास |
उत् + श्वास | उच्छवास |
उत् + शिष्ट | उच्छिष्ट |
तत् + श्रुत्वा | तच्छ्रुत्वा |
उत् + श्रृंखल | उच्छृंखल |
महत् + शक्ति | महच्छक्ति |
तत् + हित | तद्धित |
उत् + हरण | उद्धरण |
आ + छादन | आच्छादन |
वि + छेद | विच्छेद |
वृक्ष + छाया | वृक्षच्छाया |
अनु + छेद | अनुच्छेद |
अव + छेद | अवच्छेद |
किम् + वा | किंवा |
सम् + योग | संयोग |
सम् + यम | संयम |
सम् + लाप | संलाप |
सम् + सार | संसार |
सम् + हार | संहार |
सम् + वाद | संवाद |
सम् + शय | संशय |
सम् + वेग | संवेग |
सम् + कल्प | संकल्प |
किग् + चित् | किञ्चित् |
सम् + चय | संचय |
सम् + पर्क | संपर्क |
सम् + क्रान्ति | संक्रान्ति |
सम् + तोष | सन्तोष |
सम् + पूर्ण | सम्पूर्ण |
सम् + ताप | संताप |
पम् + चम | पंचम |
भर् + अन | भरण |
प्र + मान | प्रमाण |
भूष् + अन | भूषण |
ऋ + न | ऋण |
तृष + ना | तृष्णा |
नि + सिद्ध | निषिद्ध |
अभि + सेक | अभिषेक |
सु + समा | सुषमा |
वि + सम | विषम |
सु + सुप्त | सुषुप्त |
3. विसर्ग सन्धि
निः + छल | निश्छल |
धनुः + टंकार | धनुष्टंकार |
निः + चय | निश्चय |
निः + चेष्ट | निष्वेष्ट |
ततः + ठकार | ततष्ठकार |
निः + चल | निश्चल |
दुः+ ट | दुष्ट |
निः + तेज | निस्तेज |
दुः + तर | दुस्तर |
निः + छिद्र | निश्छिद्र |
निः + तार | निस्तार |
हरिः + शेते | हरिशेत या हरिः शेते |
निः + सार | निस्सार या निःसार |
निः + शंक | निशंक या निःशंक |
रजः + कण | रजःकण |
पयः + पान | पयःपान |
अन्तः + करण | अन्तःकरण |
अघः + फलित | अधः फलित |
अन्तः + पुर | अन्तःपुर |
प्रातः + काल | प्रातःकाल |
अधः + पतन | अधःपतन |
पुरः + कार | पुरस्कार |
मनः + कामना | मनोकामना |
नमः + कार | नमस्कार |
तिरः + कार | तिरस्कार |
दुः + ख | दुःख |
निः + कपट | निष्कपट |
निः + पाप | निष्पाप |
निः + पंक | निष्पंक |
चतुः + पद | चतुष्पद |
दु: + कर्म | दुष्कर्म |
दुः + प्रकृति | दुष्प्रकृति |
दुः + कर | दुष्कर |
दुः + खचित | दुष्खचित |
दुः + फल | दुष्फल |
वयः + वृद्ध | वयोवृद्ध |
अघः + घात | अधोघात |
तपः + बल | तपोबल |
तेजः + मय | तेजोमय |
पयः + द | पयोद |
पुरः + हित | पुरोहित |
यश: + लाभ | यशोलाभ |
सरः + वर | सरोवर |
यशः + गान | यशोगान |
मनः + बल | मनोबल |
तमः + गुण | तमोगुण |
मनः + राज्य | मनोराज्य |
तपः + धन | तपोधन |
अधः + गति | अधोगति |
अधः + जल | अधोजल |
मनः + रथ | मनोरथ |
मनः + ज्ञ | मनोज्ञ |
मनः + योग | मनोयोग |
मनः + वेग | मनोवेग |
मनः + हर | मनोहर |
यशः + धरा | यशोधरा |
मनः + नयन | मनोनयन |
सरः + रुह | सरोरुह |
मनः + विकार | मनोविकार |
पयः + घर | पयोधर |
निः + आशा | निराशा |
निः + दय | निर्दय |
निः + झर | निर्झर |
निः + जर | निर्जर |
निः + लेप | निर्लेप |
निः + यात | निर्यात |
निः + हार | निर्हार |
निः + ऐक्य | निरैक्य |
निः + एकीभाव | निरेकीभाव |
निः + घोष | निर्घोष |
निः + गम | निर्गम |
निः + आधार | निराधार |
निः + उपाय | निरुपाय |
निः + औषध | निरौषय |
निः + आदर | निरादर |
निः + ईह | निरीह |
निः + अर्थक | निरर्थक |
दुः + उपयोग | दुरुपयोग |
दु: + दशा | दुर्दशा |
दुः + गुण | दुर्गुण |
दुः + जन | दुर्जन |
दुः + भाग्य | दुर्भाग्य |
दु: + शील | दुश्शील |
दुः + बल | दुर्बल |
दु: + वचन | दुर्वचन |
दु: + यश | दुर्यश |
दु: + लाभ | दुर्लभ |
दु: + लक्ष्य | दुर्लक्ष्य |
दु: + गन्ध | दुर्गन्ध |
दु: + आत्मा | दुरात्मा |
दु: + धर्ष | दुर्धर्ष |
दुः + नाम | दुर्नाम |
वहिः + गत | वहिर्गत |
निः + ओक | निरोक |
निः + अंक | निरंक |
निः + ऊमि | निरूर्मि |
निः + उत्तर | निरुत्तर |
निः + रोग | नीरोग |
निः + रव | नीरव |
दु: + राज | दुराज |